उत्तराखंड : जंगल में लगी है आग, वन विभाग के पास आग बुझाने वाले कर्मचारियों का टोटा
[ad_1]
उत्तराखंड के जंगल में लगी आग की फाइल फोटो.
नॉर्थ डिवीजन के वन संरक्षक प्रवीण कुमार भी मान रहे हैं कि जरूरी अधिकारी और कर्मचारियों के पद खाली होने से विभागीय कार्य तो प्रभावित हो ही रहे थे, अब जंगलों में लगी आग पर काबू पाना भी कठिन होता जा रहा है.
बिन कर्मचारी आग पर काबू पाना मुश्किल
कुमाऊं के अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, बागेश्वर और चम्पावत जिलों के नॉर्थ डिवीजन वन संपदा से भरपूर हैं. इस डिवीजन बरसात के मौसम को छोड़कर आग लगने के हादसे भी खूब होते हैं. मगर हैरानी इस बात है कि आग पर काबू पाने के जरूरी साधन इस डिवीजन के पास न के बराबर हैं. हालात ये हैं कि वन रक्षक से लेकर डिप्टी रेंजर तक के कई अहम पद बरसों से खाली पड़े हैं. नॉर्थ डिवीजन के वन संरक्षक प्रवीण कुमार भी मान रहे हैं कि जरूरी अधिकारी और कर्मचारियों के पद खाली होने से विभागीय कार्य तो प्रभावित हो ही रहे थे, अब जंगलों में लगी आग पर काबू पाना भी कठिन होता जा रहा है.
पद हैं पर कर्मचारी नहींइस डिवीजन में वन रक्षक के 479 पदों के मुकाबले मात्र 183 पदों पर ही कर्मचारी हैं. जबकि वन दरोगा के 347 पद स्वीकृत हैं, मगर तैनाती है सिर्फ 201 पदों पर. कुछ ऐसा ही हाल डिप्टी रेंजरों का भी है. डिप्टी रेंजर के 60 पद यहां हैं, जिनमें 19 पद खाली पड़े हैं. अब तक इस वन प्रभाग में आग लगने के 400 से अधिक हादसे हो चुके हैं. यही नहीं, जंगल की आग ने 3 लोगों की जिंदगी भी लील ली है.
विपक्ष है हमलावर
विभाग की इस बदहाली के लेकर विपक्ष भी हमलावर है. कांग्रेसी विधायक और उत्तराखंड के पूर्व स्पीकर गोविंद कुंजवाल का कहना है कि सरकार को न तो वनों की चिंता है और न लोगों के स्वास्थ्य की. अगर विभाग में जरूरी पद भरे गए होते तो शायद हालात इतने खराब नहीं होते.
कोर्ट ने नियुक्ति के लिए दिया वक्त
इस साल मार्च से ही जंगल में आग धधक रही है. वन विभाग के पास जरूरी साधन नहीं होने के कारण वह कुछ भी कर पाने में नाकाम है. नैनीताल हाईकोर्ट ने 6 महीनों के भीतर वन महकमे में जरूरी पदों को भरने का आदेश जारी किया है. लेकिन अब देखना है कि सरकार जंगलों में धधक रही आग और कोर्ट की फटकार के बाद जागती है या सबकुछ पहले की तरह राम भरोसे चलता है.
[ad_2]
Source link