उत्तराखंड

उत्तराखंड में वाइल्ड लाइफ रिर्जव क्षेत्र भी आग की जद में, 17 जानवर जलकर मरे

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 टिहरी में 166 तो नैनीताल में 158 घटनाएं हो चुकी हैं. (फाइल फोटो)

टिहरी में 166 तो नैनीताल में 158 घटनाएं हो चुकी हैं. (फाइल फोटो)

आग (Fire) का ये भीषण रूप अब तक 2,296 हेक्टेयर वन क्षेत्र को अपनी चपेट में ले चुका है. एक हेक्टेयर में दस हजार वर्ग मीटर होता है.

देहरादून. उत्तराखंड (Uttarakhand) के जंगलों में आग का तांडव जारी है. इस साल आग पुराने सभी रिकॉर्ड तोड़ने पर आमादा है. आग लगने की सौलह सौ से ऊपर घटनाएं पहुंच चुकी हैं. इनमें गढ़वाल (Garhwal) में सबसे अधिक 989 तो कुमाऊं में 592 आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं. इसके अलावा वाइल्ड लाइफ रिजर्व क्षेत्र भी आग से अछूते नहीं हैं. करीब 62 से अधिक घटनाएं वाइल्ड लाइफ (Wild Life) के लिए रिजर्व क्षेत्रों में हुई है. आग का ये भीषण रूप  अब तक 2,296 हेक्टेयर वन क्षेत्र को अपनी चपेट में ले चुका है.  एक हेक्टेयर में दस हजार वर्ग मीटर होता है, यानि दो करोड़ 29 लाख साठ हजार वर्ग मीटर एरिया  में अभी तक वन संपदा आग की चपेट में आ चुकी है.

कल्पना कीजिए की इतने बडे भू-भाग में कितने जंगली जानवर आग की भेंट चढ़े होंगे. वन विभाग इस नुकसान का आंकलन नहीं करता. विभागीय आंकड़ों के अनुसार, अभी तक की आग में 17 जानवर जलकर मर गए. 22 जानवर घायल हुए हैं. इसमें सभी फालतू मवेशी हैं. यानि की जंगली जानवर कितने मरे इसकी कोई गिनती नहीं है. न वन विभाग इसका रिकॉर्ड रखता है.वन विभाग ने आग से अब तक हुए नुकसान का 61 लाख 84 हजार के लॉस के रूप में आंकलन किया है.

नैनीताल में 158 घटनाएं हो चुकी हैं
आग से तीस हजार से अधिक चीड़ के वो पेड़ जल गए, जिनसे वन विभाग लीसा निकालता था. एक लीसा घाव वाला पेड़ जलने पर वन विभाग 240 रूपए का नुकसान आंकता है. इसके अलावा करीब बारह हजार 630 अन्य पेड़ भी जल गए. सौ हेक्टेयर से अधिक के क्षेत्र में प्लांटेशन भी जल कर नष्ट हो गया. वन विभाग के रिकॉर्ड के अनुसार, उसने  साढ़े सात हजार वनकर्मी, 4138 स्थानीय लोग आग बुझाने में लगाए हैं. आग लगने की सबसे अधिक 474 घटनाएं पौड़ी जिले में हुई हैं. इसके बाद दूसरे नंबर पर अल्मोड़ा जिला है. यहां आग लगने की 172 घटनाएं हो चुकी हैं. टिहरी में 166 तो नैनीताल में 158 घटनाएं हो चुकी हैं.





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