उत्तराखंड

किन्नरों के सदा सुहागन होने का क्या है राज, किन्नर अखाड़े की आचार्य लक्ष्मी त्रिपाठी ने किया खुलासा, पढ़िए पूरी खबर…

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किन्नर अखाडे़ की पहली महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताई किन्नरों के श्रृंगार की कहानी.

किन्नर अखाडे़ की पहली महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताई किन्नरों के श्रृंगार की कहानी.

Haridwar Mahakumbh: हरिद्वार कुम्भ में शामिल होने आए किन्नर अखाड़े की क्या होती है दिनचर्या. किन्नरों के लिए श्रृंगार का कितना महत्व है. इसके बारे में खुद किन्नर अखाड़े की पहली महामंडलेश्वर आचार्य लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने न्यूज18 को बताई पूरी कहानी.


  • Last Updated:
    April 3, 2021, 11:43 PM IST

हरिद्वार. उत्तराखंड के हरिद्वार महाकुंभ में शामिल होने आए किन्नर अखाड़े रहने वाले किन्नरों की दिनचर्या कैसी होती है. किन्नरों के लिए श्रृंगार करना महत्वपूर्ण होता है. न्यूज़18 किन्नर अखाड़े पहुंचा और ये जानने की कोशिश की. सनातन धर्म में किन्नरों को उपदेवता कहा गया है, उनको सन्यासी नहीं बल्कि वो उपदेवता की क्षेणी मेंआते हैं,  ये वो समाज है, जिसे प्रभु श्रीराम ने सबसे बड़ा आशीर्वाद दिया है. इन्हें मंगलमुखी कहा गया है, इनकी गिनती भगवान शिव के प्रमुख गणों में की जाती और ये अपने इष्ट के लिए ही श्रृंगार करते हैं.

किन्नरों के लिए कहा जाता है कि ये सदा सुहागन हैं. इनके सृंगार से लेकर रोजाना की दिनचर्या में ऐसी चीजें शामिल होती हैं, जो इन्हें और से एकदम अलग करती हैं, किन्नर अखाड़े की आचार्य महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी कैसे करती हैं श्रृंगार और क्या है उनकी पूरी दिनचर्या. यह जानने के लिये हम महाकुम्भ में आई किन्नर अखाडे की प्रमुख और महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी के साथ रहे. लोगों के बीच जाने से पहले लक्ष्मी नारायण कैसे तैयार होती हैं, उन्होंने बताया की वह भगवान शिव के लिए श्रृंगार करती हैं.

मां रेणुका को मानती हैं अपना ईष्ट

महाकुंभ में किन्नरों को बुध दान का बड़ा महत्व माना जाता है, अगर महाकुंभ में एक महीने तक बुधवार को किन्नरों को बुध दान करने से व्यक्ति के बुध दोष खत्म होता है, महाकुंभ में किन्नर लगातार अपनी इसी परंपरा को बढ़ाने के मकसद से आए हैं. महामंडलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी ने बताया कि रेणुका मां को किन्नर समाज अपना इष्ट मानता है. किन्नर अखाड़े में महामंडलेश्वर बनने के बाद किन्नर भी मानते हैं जिंदगी बदल जाती है. उनका दिन ही भगवान की आराधना से शुरू होता है और गहनों से खुद को तैयार करना अपना सौंदर्य बढ़ाना माना जाता है.’महामंडलेश्वर दीपा नंदगिरी, किन्नर अखाड़ा पुणे से बताती है कि 40 मिनट उन्हें तैयार होने में लगते है किन्नर सनातन धर्म को आगे बढ़ाने और खुद को मुख्य धारा में जोड़ना पर लगातार संघर्ष कर रहे है. उनका मकसद भगवान शिव की आराधना और साथ में अपने अस्तित्व के लिए लगतार काम करना बना हुआ है. हरिद्वार कुम्भ में पहली बार शामिल होकर उनकी ये कोशिश जारी है.







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