उत्तराखंड

कोरोना महामारी: अपनी परवाह न कर, सेवा भाव से मरीजों के लिए जुटे हैं जी-जान से…

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दून अस्पताल के कई स्टाफ यहां भर्ती कोरोना मरीजों की सेवा में लगातार जुटे हुए हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

दून अस्पताल के कई स्टाफ यहां भर्ती कोरोना मरीजों की सेवा में लगातार जुटे हुए हैं (प्रतीकात्मक तस्वीर)

देहरादून (Dehradun) के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में यूं तो हर कोई अपना फर्ज निभा रहा है, फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनका जिक्र करना जरूरी हो जाता है. इस सबसे बड़े कोविड डेडिकेटेड दून अस्पताल (Doon Hospital) में करीब चार सौ मरीज भर्ती हैं. यूं तो अस्पताल की अपनी कैंटीन है, फिर भी अधिकांश मरीजों के परिजन रोज खाना लेकर आते हैं

देहरादून. कोविड महामारी (Corona Virus) की मार हर कोई झेल रहा है. संकट की इस घड़ी में लोग अपनों को सेफ कर लेना चाहते हैं. ऐसे में कई लोग ऐसे भी हैं, जिनका काम सामान्य तौर पर हर किसी को नजर नहीं आता, लेकिन यकीन मानिए उनके बिना इस महामारी से लड़ना आसान नहीं है. उत्तराखंड की राजधानी देहरादून (Dehradun) के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल में यूं तो हर कोई अपना फर्ज निभा रहा है, फिर भी कुछ लोग ऐसे हैं, जिनका जिक्र करना जरूरी हो जाता है. इस सबसे बड़े कोविड डेडिकेटेड दून अस्पताल (Doon Hospital) में करीब चार सौ मरीज भर्ती हैं. यूं तो अस्पताल की अपनी कैंटीन है, फिर भी अधिकांश मरीजों के परिजन रोज खाना लेकर आते हैं.

सोचिए यदि आपको खुद कोविड वार्ड में जाकर मरीज को खाना देना पडे़, तो शायद आप सौ बार सोचेंगे. संक्रमण का खतरा अलग से बना रहेगा. इसके लिए अस्पताल के गेट पर काउंटर बनाया गया है, जहां तीमारदार खाना रखकर जाते हैं और फिर अस्पताल का स्टाफ उसे पेशेंट तक पहुंचाता है. इन्हीं में से एक हैं विपिन नेगी. विपिन अस्पताल में ओटी एसिस्टेंट के पद पर कार्यरत हैं. खुद की परवाह न कर विपिन रोज कई-कई बार इस काउंटर से खाना उठाकर मरीजों के बेड तक पहुंचाते हैं. हाई रिस्क जोन में होने के कारण विपिन पिछले कई दिनों से अपने बच्चों से ठीक से नहीं मिल पाये हैं. वो घर पर ही आइसोलेट रहते हैं. लेकिन, उन्हें इस बात का मलाल नहीं.

‘सुकून है कि ऐसे समय हजारों लोगों के काम आ रहा’

विपिन को सुकून है कि वो ऐसे समय हजारों लोगों के काम आ रहा है. न्यूज़ 18 से बातचीत में विपिन नेगी ने बताया कि उसके पिछले साल भी कई महीने ऐसे ही बीते थे. एक बार फिर से कोराना संक्रमण बढ़ गया है. ऐसे में हर मरीज के घर से आने वाला खाना उसे समय पर पहुंचाना पड़ता है. कई बार मरीज की अपनी कुछ डिमांड होती हैं, वो भी पूरी करनी होती है. वो कोशिश करते हैं कि लोगों की परेशानियां कम हो.दून अस्पताल में ही कार्यरत विजयराज का काम और भी जोखिम भरा है. विजयराज सबसे कठिन मोर्चे पर जूझते हैं. वो मरीज की मौत होने पर उसे मोर्चेरी तक लाते हैं. संक्रमित बॉडी को पॉलीथीन में पैक करना होता है. मृतक के परिजनों को सूचित करना पड़ता है और फिर उन्हें डेड बॉडी हैंडओवर करना भी विजयराज का काम है. कोरोना के सेकेंड वेव में बड़ी संख्या में मौतें हो रही हैं. विजयराज एक दिन में कई-कई बॉडी शिफ्ट करते हैं. गनीमत है कि विजयराज आज तक वायरस की चपेट में नहीं आये. वो कहते हैं कि शायद कोरोना हो भी गया हो, लेकिन मैने कभी टेस्ट नहीं कराया. विजयराज के लिए अब यह सब नॉर्मल बात हो चुकी है. जोखिम के सवाल पर विजयराज कहते हैं किसी न किसी को तो यह काम करना ही है. कभी-कभी तीमारदार जब बॉडी लेने आते हैं, तो कई बार बहुत कुछ सुनना भी पड़ता है. लेकिन, जिसका अपना चला गया हो, उसे क्या बोल सकते हैं.

सोचिए अगर विपिन नेगी, विजयराज जैंसे लोग सिस्टम का हिस्सा न हों, तो महामारी के इस दौर में क्या होगा? यह वही लोग हैं जिनके दम पर उम्मीद है, जिनके काम से सिस्टम पर भरोसा बना हुआ है. वर्ना ऐसे भी मामले देखने और सुनने में आए हैं कि संक्रमित बॉडी को छूने से खुद परिजन ही इनकार कर देते हैं. लेकिन, यह वो लोग हैं, जो पूरी मानवता के साथ अपना फर्ज निभा रहे हैं.





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