चीन बॉर्डर के करीब बसा यह गांव कभी भी इतिहास के पन्नों में हो सकता है दर्ज, जानें वजह…
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नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं
कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव (Tidang Village) को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है
पिथौरागढ़. चीन सीमा (China Border) के करीब बसा उत्तराखंड के पिथौरागढ़ (Pithoragarh) जिले का तिदांग गांव (Tidang Village) कभी भी इतिहास के पन्नों में दर्ज हो सकता है. पलायन के लिए जाने जाने वाले इस गांव में सौ से अधिक परिवारों पर हर वक्त मौत के बादल मंडराते हैं. गांव को बचाने का वादा तो कइयों ने किया, लेकिन इनका हकीकत से दूर-दूर तक कोई वास्ता नहीं है.
बारह हजार फीट की ऊंचाई पर दारमा घाटी में बसा तिदांग गांव प्रकृति के सौंदर्य से लबरेज है. नदी, ग्लेशियर, हरे-भरे पेड़ इसकी सुंदरता को चार-चांद लगाते हैं. लेकिन यही प्राकृतिक खूबसूरती इस गांव की सबसे बड़ी दुश्मन बन गई है. हालात यह है कि कभी जो गांव नदी और नाले से 80 फीट ऊंचा हुआ करता था, आज धौली नदी उसके बराबर जा पहुंची है. तिदांग गांव को नीचे से धौली नदी काट रही है. तो दाएं और बाएं तरफ से ग्लेशियर इसको अपनी चपेट में ले रहा है. हर साल नदी और ग्लेशियर के साथ बह कर आने वाले भारी मलबे से गांव नदी के करीब पहुंच गया है. तिदांग के पूर्व प्रधान रमेश तितयाल बताते हैं कि उन्होंने कई बार नेताओं और अधिकारियों से गांव को बचाने की गुहार लगाई है. लेकिन हर बार सिर्फ आश्वासन ही मिलता आया है.
तिदांग के निवासी बताते हैं कि गांव को बचाने के लिए केंद्रीय मंत्री संतोष गंगवार भी भरोसा दिला चुके हैं. लेकिन बरसों बीत जाने के बाद भी कुछ हुआ नहीं. इस गांव की पहचान इसलिए भी है कि यहीं से निकलकर डॉ. जीवन सिंह तितयाल ने नेत्र सर्जन के रूप में राष्ट्रीय फलक पर अपनी पहचान बनाई थी. डॉ. जीवन सिंह तितयाल को भारत सरकार ने पद्मश्री से सम्मानित किया है. इतनी बड़ी हस्ती से जुड़ा होने के बाद भी तिदांग गांव साल दर साल प्रकृति के जलजले में सिमटता जा रहा है. स्थानीय मामलों के जानकार शालू दताल कहते हैं कि तिदांग गांव तीन तरफ से कट रहा है. अगर यह जारी रहा तो तय है कि जल्द ही गांव का वजूद समाप्त हो जाएगा.
नदी और ग्लेशियर तिदांग गांव की 80 फीसदी जमीन निगल चुके हैं. अब सिर्फ कुछ ही घर बचे हैं जिनमें सैकड़ों जिंदगियां साल के छह महीने रहने आतीं हैं. आपदा प्रबंधन के नाम पर सरकारें हर वर्ष करोड़ों रूपये बहाती हैं, लेकिन लगता है सरकार के नक्शे से तिदांग गांव पहले ही गायब है. यह कहानी सिर्फ तिदांग की नहीं है, बल्कि चीन सीमा से लगे कई गांवों के हालात कुछ ऐसे ही हैं जिनके लिए बरसात मौत से कम नहीं है.
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