उत्तराखंड

देहरादून: कोरोना काल में सोशल मीडिया को हथियार बनाकर लोगों की मदद कर रही हैं इशिता-आकांक्षा

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इंजीनियरिंग की स्टूडेंट इशिता थपलियाल और जर्नलिज्म की छात्रा आकांक्षा बहुगुणा सुबह से लेकर देर रात दो बजे तक सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए जरूरतमंदों की मदद में जुटी रहती हैं

इंजीनियरिंग की स्टूडेंट इशिता थपलियाल और जर्नलिज्म की छात्रा आकांक्षा बहुगुणा सुबह से लेकर देर रात दो बजे तक सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए जरूरतमंदों की मदद में जुटी रहती हैं

कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के खिलाफ सोशल मीडिया (Social Media) बड़ा वॉरियर बनकर सामने आ रहा है. वायरस ज्यादा स्ट्रांग होने के कारण अब फिजिकली हेल्प करने के बजाए लोग मदद करने के लिए सोशल प्लेटफॉर्म का यूज कर हैं. इसका दायरा भी बड़ा है और रिस्पांस भी क्विक है

देहरादून. वक्त के साथ कोरोना वायरस (Corona Virus) ने अपना रूप बदला तो लोगों ने भी इस महामारी के खिलाफ लड़ाई का अपना तरीका बदल दिया. कोरोना की पहली लहर में लोगों ने घर-घर जाकर जरूरतमंदों को खाना बांटा और उनकी सहायता की. लेकिन, सेकेंड वेब में वायरस और घातक होकर लौटा तो हेल्पिंग हैंड ने उसका भी तोड़ खोज निकाला. महामारी (Pandemic) के खिलाफ सोशल मीडिया (Social Media) बड़ा वॉरियर बनकर सामने आ रहा है. वायरस ज्यादा स्ट्रांग होने के कारण अब फिजिकली हेल्प करने के बजाए लोग मदद करने के लिए सोशल प्लेटफॉर्म का यूज कर हैं. इसका दायरा भी बड़ा है और रिस्पांस भी क्विक है. न्यूज़ 18 ऐसे ही कुछ लोगों तक पहुंचा है जो सोशल मीडिया के माध्यम से जरूरतमंदों तक पहुंच रहे हैं. इंजीनियरिंग की स्टूडेंट इशिता थपलियाल और जर्नलिज्म की छात्रा आकांक्षा बहुगुणा सुबह से लेकर देर रात दो बजे तक सोशल प्लेटफॉर्म के जरिए जरूरतमंदों की मदद में जुटी रहती हैं. फिर चाहे किसी को प्लाज्मा डोनर की जरूरत हो, कहीं ऑक्सीजन बेड, ऑक्सीजन सिलेंडर, खाना, दवाइयों की जरूरत हो. यह टीम उसे सोशल मीडिया पर शेयर करती है और कोई न कोई हेल्पिंग हैंड सामने आ जाता है. आकांक्षा कहती हैं कि कई बार रात के तीन बज जाते हैं लेकिन हम तो सिर्फ अपने घर में बैठे हैं, जब लोगों को हेल्प मिलती है तो खुशी होती है.

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यह टीम सोशल मीडिया पर सिर्फ शेयर ही नहीं करती बल्कि किसी जरूरतमंद की प्रॉब्लम और डोनर की सत्यता भी जांचती है. इशिता बहुगुणा कहती हैं, अगर किसी को ऑक्सीजन सिलेंडर चाहिए. हमें सोशल मीडिया पर लीड मिलती है, हम खुद पहले उसे कन्फर्म करते हैं कि वो सिलेंडर कितने में दे रहा है. लगता है कि अगर वो ब्लैक मार्केटिंग कर रहा है, तो हम उसे आगे फॉरवर्ड नहीं करते. ऐसा इसलिए ताकि कालाबाजारी को बढ़ावा नहीं मिले.सोशल प्लेटफॉर्म पर यह टीम अभी तक हजारों लोगों को मदद पहुंचा चुकी है. इशिता कहती हैं कि इनमें से बहुत सारे लोग मदद मिलने पर थैंक्स भी कहते हैं, तो अच्छा लगता है. फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम हो या वॉट्सएप इशिता और आकांक्षा के साथ सोशल प्लेटफॉर्म पर दिल्ली से लेकर उत्तराखंड तक कई यूथ जुड़े हैं. फिर चाहे देहरादून हो या दिल्ली यह लोग जरूरतमंदों के साथ खडे़ होने की कोशिश कर रहे हैं, और यही वो उम्मीद है, जो हमें भरोसा दिलाती है कि कुछ भी हो एक दिन कोराना हारेगा और मानवता जीतेगी.





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