हरिद्वार : आग में तपकर 18 वर्षों तक की जानेवाली साधना है अठयोग, जानें क्या कहते हैं साधु-संत
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हरिद्वार महाकुंभ में अठयोग करता एक साधक.
18 बरस तक आग के घेरे के बीच की जाने वाली इस साधना का नाम है अठयोग (हठयोग नहीं). हरिद्वार कुंभ मेले में आए वैरागी साधु-संत चिलचिलाती धूप में आग के घेरों के बीच बैठकर यह कठिन साधना कर रहे हैं.
हरिद्वार. गर्मी का मौसम शुरू हो चुका है, चिलचिलाती गर्मी है. ऐसे में आप किसी को आग के घेरों के बीच बैठे देखें तो जाहिर है आपका सिर इस दृश्य को देखकर ही घूम जाएगा. ऐसे किसी घेरे में किसी आम आदमी को बैठा दिया जाए तो वह उसके लिए भयानक सजा होगी. मगर हरिद्वार में ऐसे नजारे आपको आसानी से सुलभ हो जाएंगे जहां कोई साधु आग के घेरों के बीच बैठकर साधना कर रहा होगा. जी हां, इस साधना का नाम है अठयोग (हठयोग नहीं). हरिद्वार कुंभ मेले में आए वैरागी साधु-संत चिलचिलाती धूप में आग के घेरों के बीच बैठकर यह कठिन साधना कर रहे हैं.
18 साल तक चलती है साधना
कुंभ नगरी हरिद्वार में इन दिनों साधु-संतों के तप के हैरतअंगेज नजारे देखने को मिल रहे हैं. आज हम आपको बता रहे हैं वैरागी साधु-संतों की एक ऐसी योग साधना के बारे में जो अट्ठारह सालों तक आग से तप कर की जाती है. वैरागी संत रघुविंदर दास बताते हैं कि इस साधना में शुरू के 12 साल में तीन-तीन साल के चार चरण होते हैं. एक चरण पूरा करने के बाद अगले चरण में प्रवेश करने पर तपस्या और भी कठिन कर दी जाती है.
मन को तृप्त करती है साधना
अठयोग साधना पूरी कर चुके राम चरण दास त्यागी बताते हैं कि यह तप बहुत कठिन तब होता है. लेकिन जो साधक इस तप में उतरता है, वही इसके महत्व को समझ सकता है. यह मन की संतुष्टि की बात है. जब तक साधक तप नहीं करता, तब तक उसके मन को संतुष्टि नहीं होती. जिस तरह से कोई व्यक्ति कोई बड़ी उपाधियां प्राप्त करता है, तो उससे उसके मन को संतुष्टि मिलती है. उसी तरह साधना करके साधक के मन को तृप्ति मिलती है.
आम इनसान के समझ के परे होती है साधकों की दुनिया
आम आदमी साधना की दुनिया का भले सम्मान कर ले, लेकिन वह कभी भी साधना की गहराई को महसूस नहीं कर सकता. इसकी साफ वजह है कि वह इस साधना में उतरा ही नहीं तो समझे कैसे? इसीलिए शायद वह यही महसूस करता है कि साधु-संतों की अपनी एक रहस्यमई दुनिया होती है. लेकिन हरिद्वार कुंभ में आए कई अनूठे साधु-संतों की अनोखी साधनाएं जब कोई आम आदमी देखेगा और उसे समझना चाहेगा तो पता चलेगा कि साधना की यह दुनिया कैसे-कैसे त्याग की मांग करती है और यह तप कितना दुरुह और दुष्कर होता है.
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