हरिद्वार : बड़ा उदासीन अखाड़े में नहीं होते नागा साधु, जानिए अखाड़े की ये खास बातें
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श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण. (फाइल फोटो)
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण की स्थापना भगवान श्री चंद्राचार्य से जुड़ी है. इस अखाड़े की खास बात यह है कि यहां नागा साधु नहीं बनाए जाते हैं.
श्री चंद्राचार्य से जुड़ी है परंपरा
श्री पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन निर्वाण की स्थापना भगवान श्री चंद्राचार्य से जुड़ी है, उनकी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए लोक कल्याण के लिए संस्कृत पाठशाला, अस्पतालों, मंदिरों और धर्मशालाओं की स्थापना करने का संकल्प उदासीन संतों ने लिया और इसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए उदासीन सिद्ध संत निर्वाण प्रियतम दास महाराज ने दक्षिण भारत के हैदराबाद में तपस्थली निर्वाण थड़ा में श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन की स्थापना करने का संकल्प किया और उदासीन संतों को प्रेरणा प्रदान की. उन्होंने उदासीन संप्रदाय के संतों के साथ मिलकर अपने इस संकल्प को साल 1825 माघ शुक्ल पंचमी को शिव की ससुराल और देवी सती के जन्मस्थल कनखल (हरिद्वार) में गंगा के तट पर राजघाट में श्री पंचायती उदासीन बड़ा अखाड़ा की स्थापना करके पूरा किया. अखाड़े इस तरह तपोमूर्ति देव श्री प्रियतम दास महाराज उदासीन पंचायती अखाड़ा के संस्थापक अध्यक्ष श्रीमहंत बने.
चर्चित है यह धार्मिक मान्यता भीधार्मिक मान्यता है कि निर्वाण देव श्री प्रियतम दास महाराज को नेपाल की तराई के जंगलों में कठोर तपस्या करते समय सिद्ध साधक संत बाबा बनखंडी ने दर्शन दिए थे और उनकी कठोर परीक्षा ली थी. उन्हें अपनी पवित्र धूनी से विभूति का पवित्र गोला प्रदान किया था, जो आज भी उदासीन अखाड़े में विद्यमान है और जिसकी पूजा अखाड़े में बोला साहब के रूप में की जाती है. इस अखाड़े की खास बात यह है कि यहां नागा साधु नहीं बनाए जाते हैं.
दिव्य होती है धर्म ध्वजा की स्थापना
अखाड़े की धर्म ध्वजा में एक तरफ जहां भगवान हनुमान होते हैं, वही चक्र भी खास महत्व रखता है और इसकी स्थापना के वक्त तस्वीर भी दिव्य होती है. हेलिकॉप्टर से पुष्प वर्षा का दृश्य सभी को अभिभूत कर देता है. पंचायती अखाड़ा बड़ा उदासीन के चार मुख्य महन्त ही नियुक्त होते हैं और यहां चुनाव भी नहीं होता. बस धूने के रूप में वैदिक यज्ञोपासना को आगे बढ़ाने का काम उदासीन संप्रदाय के संत निरंतर कर रहे हैं.
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