उत्तराखंड

हत्‍या के 36 साल बाद दोषी ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- मैं उस समय नाबालिग था

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नई दिल्ली. सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में 36 साल पहले हुई हत्‍या (Murder) के एक मामले में दोषी करार दिए गए एक आरोपी ने ये कहकर हर किसी को हैरान कर दिया कि जिस समय ये घटना हुई थी, उस वक्‍त वह नाबालिग (Minor) था. हत्‍या का ये मामला पिछले चार दशक से चल रहा था. आरोपी ने कोर्ट से अपील की है कि उसकी सजा कम कर अधिकतम 3 साल की सजा ही दी जानी चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के सीतापुर के संबंधित अडिशनल सेशन जज से कहा है कि वह आरोपी की उम्र के संबंध में जांच करें और दो महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट पेश करें.

जानकारी के मुताबिक मामला यूपी के सीतापुर जिले का है. आरोपी के खिलाफ साल 1982 में दंगा, फसाद, हत्या और सबूत नष्ट करने का मुकदमा चलाया गया था. साल 1982 में मामला दर्ज कराया गया था और 1990 में ट्रायल कोर्ट ने उसे दोषी करार दिया था. बाद में आरोपी ने 5 अप्रैल 1991 को हाईकोर्ट का रुख किया जहां से साल 2008 में हाईकोर्ट ने भी उसे दोषी करार दिया. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ साल 2012 में आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा.

सुप्रीम कोर्ट में याचिकार्ता ने दावा किया कि जिस वक्‍त ये घटना हुई थी उस समय वह नाबालिग था और उसे जेजे एक्ट के तहत ही सजा दी जानी चाहिए. गौरतलब है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत जुवेनाइल को जेल में नहीं रखा जाता बल्कि अधिकतम उसे सुधार गृह में तीन साल तक रखे जाने का प्रावधान है.

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क्या कहती है यूपी सरकार की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी सरकर की ओर से भी रिपोर्ट पेश की गई. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर उसका जन्मदिन 12 फरवरी 1965 है और वह घटना के वक्त नाबालिग था. वहीं सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया कि आधार कार्ड में याचिकाकर्ता की उम्र एक जनवरी 1965 है. सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी तथ्य सामने आया है कि स्कूल रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता ने जो जन्म की तारीख बताई है वह मौजूद नहीं है.

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दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश
साथ ही 1976 के खतौनी में याचिकाकर्ता की उम्र 14 साल दर्ज है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि इस मामले में उचित होगा कि संबंधित सेशन जज से रिपोर्ट मांगी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित सेशन जज से कहा है कि वह याचिकाकर्ता की उम्र और घटना के वक्त उसकी उम्र के बारे में जांच कर दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करें.

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