उत्तराखंड

रेलवे के इंज‍ीनियरों की 40 दिन की मेहनत से चली 60 साल पुराने घंटाघर की घड़ी, जानें कहां है घड़ी

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नई दिल्‍ली. इंडियन रेलवे (Indian Railway) के इंजीनियरों (Railway Engineer) ने 60 साल पुराने घंटाघर की घड़ी को 40 दिन की मेहतन से दुरुस्‍त किया है. चूंकि घड़ी इंग्‍लैंड से आई थी, इसलिए देश में इसके पार्ट्स भी नहीं मिल रहे थे. रेलवे के इंजीनियरों ने घड़ी को चलाने के लिए कई पार्ट्स को ठीक किया और कई पार्ट्स को तैयार भी किया. इसके बाद घड़ी चालू हुई. मामला कर्नाटक (Karnataka) के शहर का धारवाड़ का है.
कर्नाटक यूनिवर्सिटी (Karnataka University), धारवाड़ में 7 मंजिले टावर पर 60 साल पहले बड़ी घड़ी लगाई थी, यह पूरे शहर से दिखती है. इसका साइज बड़ा होने की वजह से पूरे शहर से समय आसानी से देखा जा सकता है. घड़ी चारों दिशाओं पर लगी है. सात साल पहले दो दिशाओं पर लगी घड़ी बंद हो गई थी. इस घड़ी में 500 किलो का घंटा लगा है, जिसकी आवाज 5 किलोमीटर दूर तक सुनाई देती थी, इस भारी भरकम घंटे की मशीनें चारों ओर लगी घड़ी से कनेक्‍ट थीं, चूंकि दो ओर की घड़ी बंद हो गई थीं, इसलिए घंटा बजना बंद हो गया था. स्‍थानीय लोग इस घंटे की आवाज को मिस कर रहे थे.

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यूनिवर्सिटी प्रशासन ने इस घंडी को दुरुस्‍त कराने का प्रयास किया लेकिन इसके पार्ट्स न होने की वजह से ठीक नहीं हो पाई. इसके बाद कर्नाटक यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर प्रो. केबी गुडासी ने साउथ वेस्‍ट रेलवे के एजीएम पीके मिश्रा से संपर्क कर इसे ठीक करने में मदद करने को कहा.  हुबली रेलवे वर्कशॉप में इस घड़ी के पार्ट्स तैयार कराए गए. करीब 10 इंजीनियरों की टीम ने 40 दिन में इस घड़ी को दोबारा से चालू कर दिया. इसमें प्रमुख रूप से हुबली रेलवे वर्कशॉप के मैनेजर प्रभात झा, सीनियर सेक्‍शन आफीसर विश्‍वनाथ के अलावा टेक्‍नीशियन मंसूर मुल्‍ला, देवेन्‍द्र एस लोडे, येद्दु वेंकटराव और विजय कुमार शामिल रहे.

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