एम्स ने अपनाई नई हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी, अब नजर नहीं आएंगे कोई भी निशान
[ad_1]
नई दिल्ली. एम्स ने नई हिप रिप्लेसमेंट सर्जरी अपनाई है. ये सर्जरी युवा महिलाओं के लिए वरदान साबित होगी. नई संशोधित तकनीक में 20 मरीजों को शामिल किया गया था, जिनमें ज्यादातर महिलाएं शामिल थीं. भारत के जाने मानें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान केंद्र (एम्स ) में इस नई तकनीक का सफलतापूर्वक प्रयोग किया गया है. इस ऩई तकनीक में बिकनी लाइन या कमर और जांघ के बीच के हिस्से की त्वचा की तह में चीरा लगाया जाता है. इस तरह की शल्य चिकित्सा या सर्जरी को बिकनी हिब रिप्लेसमेंट सर्जरी कहते हैं.
एम्स में ऑर्थोपेडिक विभाग के प्रमुख प्रोफेसर डॉ. राजेश मल्होत्रा ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि हिप बदलने के पारपंरिक तरीके में चीरे का निशान रह जाता था जो उभऱ कर नज़र आता था. लेकिन इस संसोधित तकनीक में सर्जरी जिस तरीके से की जाती है उसमें कुछ लोग ही बता सकते हैं कि किसी तरह की कोई सर्जरी हुई है यहां तक की मरीज अगर बिकिनी भी पहने तो तो पता नहीं चलता है.
डॉ. राजेश का कहना है कि दुनिया में कुछ लोग ही इस तरह की सर्जरी कर पाते हैं और इसमें आम सर्जरी की तुलना में ज्यादा वक्त भी लगता है. लेकिन हमने इस तकनीक को अपनाने का फैसला किया है, इससे उन युवा महिलाओं को फायदा मिलेगा जो सर्जरी करने से इसलिए हिचकिचाती थी क्योंकि इसके बाद एक बड़ा सा चीरे का निशान उनके शरीर पर रह जाता है.
हिप रिप्लेसमेंट या बदलाव की सर्जरी के तीन मुख्य तरीके होते हैं. एक होता है पोस्टिरियर अप्रोच, जिसमें शल्य चिकित्सक हिप ज्वाइंट के पीछे चीरा लगाता है और ग्लूटस मेक्सिमस मांसपेशियों को काट कर क्षतिग्रस्त ज्वाइंट को निकालत कर उसे कृत्रिम हिस्से के साथ बदल देते हैं. इसी तरह एंटेरोलेट्रल अप्रोच में जांघ के बाहरी हिस्से पर चीरा लगाया जाता है. और एंटीरियर अप्रोच में हिप के सामने वाली जगह पर सीधा चीरा लगाया जाता है. और ज्वाइंट को बगैर मांसपेशियों को काटे या अलग किए बदल दिया जाता है.
बिकिनी सर्जरी एंटीरियर अप्रोच का ही संशोधित रूप है जहां शल्य चिकित्सिक बिकिनी लाइन के साथ आड़े में चीरा लगाते हैं जिससे बहुत छोटा सा निशान रहे. बाद में विशेष कॉस्मेटिक टांको की मदद से इस दिखने वाले निशान को और कम कर दिया जाता है. मलहोत्रा का कहना था कि बिकिनी चीरे के जरिए ऑपरेशन में महज 6-8 सेमी चौड़ा चीरा लगाया जाता है और इतनी सी जगह से दिखना और ऑपरेशन करना मुश्किल होता है इसलिए ये काफी चुनौतीभरा रहता है. इसमें बहुत ज्यादा अनुभव कीऔर सही मरीज के चुनाव की ज़रूरत होती है. उन्होंने बताया कि एम्स ने पिछले साल इस तरह की पहली सर्जरी की थी और तब से अब तक 20 लोगों का ऑपरेशन किया जा चुका है. इनमें से ज्यादातर युवा महिला थी.
https://www.youtube.com/watch?v=lvXL3BefTqM
घाव के निशान का मनोविज्ञान नाम से 2018 में प्रकाशित एक जरनल में बताया गया कि त्वचा पर बना घाव का निशान गहरा हो सकता है लेकिन उसका मनोवैज्ञानिक प्रभाव और ज्यादा गहरा होता है. इसका सीधा असर मरीजों के मनोविज्ञान पर देखने को मिला है और मरीज में अवसाद, क्रोध, चिंता और पोस्टट्रॉमेटिक स्ट्रेस जैसी परेशानी उभर जाती है और अपने शरीर पर आने निशान को मरीज अपने वजूद के साथ देखने लगते हैं जिसकी वजह से उनके काम पर असर पड़ने लगता है. और इस वजह से वो समाज में और अपने कार्यस्थल पर लोगों से मेल जोल करने में कतराने लगते हैं.
पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.
[ad_2]
Source link