राजस्थान के तहसीलदार की अपील, रक्षाबंधन को यादगार बनाइए, बहिनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाइए
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जयपुर. रक्षाबंधन के मौके पर राजस्थान सरकार को कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है. दरअसल राजस्थान में कोटा जिले के एक सरकारी अधिकारी ने जनता से अपील करते हुए एक पत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि रक्षाबंधन के मौके पर महिलाओं को पैतृक संपत्ति में अपना हक त्याग देना चाहिए. कोटा जिले में दिगोद के तहसीलदार दिलीप सिंह प्रजापति द्वारा हस्ताक्षरित पत्र 21 अगस्त को जारी हुआ है. महिला अधिकार समूह की कार्यकर्ताओं ने इस पत्र की कड़ी आलोचना की है, और तहसीलदार के पत्र को पुरुषवादी और सेक्सिस्ट करार दिया है.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक पत्र के शीर्ष पर प्रेस नोट लिखा और सब्जेक्ट लाइन में लिखा है, ‘रक्षाबंधन को यादगार बनाइए, बहिनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाइए.’ पत्र में जारी अपील में कहा गया है, “जब एक खातेदार की मौत हो जाती है, तो उसके बेटे, बेटियों और पत्नी का नाम स्वाभाविक उत्तराधिकारी के रूप में दर्ज किया जाता है. बहुत सारे धर्मों और परिवारों में यह परंपरा रही है कि बेटियां और बहनें अपनी पैतृक और अचल संपत्ति में हिस्सा नहीं लेती हैं, बजाय इसके वह अपनी सास और ससुर की संपत्ति में हिस्सा लेती हैं.”
पत्र में आगे कहा गया है कि कभी-कभी महिलाएं अपना हक स्वैच्छिक रूप से छोड़ना चाहती हैं, लेकिन किसानों की लापरवाही के चलते प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती है. साथ ही यह भी कहा गया है कि जब सरकार द्वारा जमीन का अधिग्रहण होता है, तो चेक अक्सर बहनों और बेटियों के नाम से जारी होता है. “परिस्थितियां पाप को जन्म देती हैं और ऐसी स्थितियों में बहनें अपने भाइयों को चेक का हिस्सा नहीं देती हैं. और अंत में एक रिश्ता खत्म हो जाता है, क्योंकि भाई और बहनों के बीच जिंदगी भर बात नहीं होती है.”
प्रजापति ने यह भी लिखा है कि महिला की मृत्यु के मामले में, उसके पति या बच्चों के नाम मालिकों के रूप में जोड़े जाते हैं, और जब दोनों परिवारों को जोड़ने वाले व्यक्ति की मृत्यु हो जाती है, तो दामाद जमीन को औने-पौने दामों पर बेच देता है. उन्होंने लिखा कि यह सिर्फ एक उदाहरण है, जीवन पर्यंत चलने वाले मुकदमे और कभी-कभी हत्याएं भी हो जाती हैं. लेकिन, एक समय ऐसा भी था, जब खुद अपने अधिकार छोड़ देती थीं, लेकिन उनका नाम नहीं हटाया जाता था. ऐसे में इस रक्षाबंधन को यादगार बनाइए, बहिनों से स्वैच्छिक हक त्याग करवाइए.
तहसीलदार प्रजापति से जब उनके पत्र के बारे में संपर्क किया गया तो उन्होंने कहा कि पत्र में कोई भी सेक्सिस्ट वर्ड नहीं है. उन्होंने कहा, “पत्र में कोई भी पितृसत्तात्मक उपक्रम नहीं है. मैंने कई बार ‘स्वेच्छा से त्याग शब्द का प्रयोग किया है. कानून की नजर में औरत और मर्द एक समान हैं और महिलाओं का नाम भी राजस्व रिकॉर्ड में शामिल किया जाता है, लेकिन जो महिलाएं स्वेच्छा से अपने अधिकारों का त्याग करना चाहती हैं, वे ऐसा कर सकती हैं. मैंने देखा है कि कोर्ट की लड़ाई लड़ते हुए पीढ़ियां बर्बाद हो जाती हैं. यही कारण है कि मैंने पत्र जारी किया है. लापरवाही और देरी से विवाद हो सकता है. यह सिर्फ एक अपील है, ना कि आदेश. मैंने रक्षाबंधन का जिक्र इसलिए किया है, क्योंकि इस दिन सभी बहनें अपने घर जाती हैं.’”
हालांकि महिला अधिकार समूह की कार्यकर्ताओं ने इस पत्र की कड़ी आलोचना की है. एकल नारी शक्ति संगठन की स्टेट को-ऑर्डिनेटर चंद्रकला शर्मा ने कहा, “पत्र पुरुषवादी मानसिकता का प्रतीक है. संविधान से महिला और पुरुष दोनों को समान अधिकार दिए हैं. मर्दों से अपने अधिकार का त्याग करने को क्यों नहीं कहा जाता है.”
उन्होंने कहा कि जो महिलाएं अकेले रह रही हैं और कृषि पर निर्भर हैं, वे अपने पिता की जमीन का इस्तेमाल करती हैं. शर्मा ने कहा, “यह महिलाओं को फैसला करना है कि पैतृक संपत्ति में अपने अधिकार को बनाए रखना चाहती हैं कि नहीं, हमने अपने अनुभवों से जाना है कि बहुत सारी महिलाएं पिता की संपत्ति में अपने अधिकार को छोड़ना नहीं चाहती हैं, क्योंकि यह उनके जीवनयापन में मदद करता है. उन्हें आर्थिक रूप से स्वतंत्र होने में मदद करता है. रक्षाबंधन से अपील को जोड़ने का मतलब महिलाओं पर भावनात्मक रूप से दबाव बनाना है.”
वहीं मामले पर कोटा के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर उज्जवल राठौड़ ने कहा, “जो महिलाएं अपना अधिकार छोड़ना चाहती हैं, वह किसी भी दिन ऐसा कर सकती हैं. इसका रक्षाबंधन से कोई लेना देना नहीं है. लेकिन, किसी भी स्थिति में महिला पर दबाव नहीं बनाया जा सकता है.”
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