उत्तराखंड

Assembly Election 2022: डिजिटल चुनाव प्रचार से छोटी पार्टियों को होगी दिक्कत, तलाशने होंगे रास्ते

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नई दिल्ली. उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में चुनाव (Assembly Election 2022)  की घोषणा के साथ ही साथ चुनाव आयोग ने 15 जनवरी तक चुनाव प्रचार के लिए रैलियों और सभाओं पर रोक लगा दी है. इसके साथ ही साथ चुनाव आयोग ने प्रचार के डिजिटल माध्यम को अपनाने की वकालत भी की है. दरअसल कोरोना महामारी ने देश ही नहीं बल्कि दुनिया को अपने-अपने तरह से प्रभावित किया है और विभिन्न संस्कृति और कार्यकलापों को जन्म दिया है. इस दौरान डिजिटल माध्यम दुनिया में कामकाज का एक बड़ा विकल्प बनकर उभरा है. ऐसा नहीं है कि यह विकल्प लोगों के पास पहले से मौजूद नहीं था और लोग इस विकल्प का प्रयोग नहीं करते थे लेकिन अब इस विकल्प का ज्यादा उपयोग किया जा रहा है. बीपीओ और केपीओ के माध्यम से दूर बैठे कामकाज निपटाने की परंपरा अब वर्क फ्रॉम होम के तौर पर हमारे जीवन में प्रवेश कर गया है. वही 2014 में ‘चाय पर चर्चा’ जैसे एक दो कार्यक्रम अब डिजिटल रैलियों में करने की कवायद शुरू हो गए है.

लेकिन डिजिटल रैली को जानकार सभी पार्टियों के लिए एक समान स्तर पर आयोजित कार्यक्रम नहीं मानते हैं. मीडिया विशेषज्ञ समरेंद्र का मानना है कि डिजिटल दुनिया में स्पेशलाइजेशन की महत्वपूर्ण भूमिका है और इसमें अलग-अलग रणनीति के माध्यम से अपने लक्षित समूह तक पहुंचा जाता है. उनका मानना है कि इसके लिए बीजेपी कांग्रेस और एक हद तक समाजवादी पार्टी तो तैयार है लेकिन उत्तर प्रदेश की विभिन्न छोटी-छोटी जातियों पर आधारित पार्टियां जिनकी वोटर ओबीसी, दलित आदि है उनके लिए डिजिटल प्रचार एक चुनौती है.

हालांकि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी का मानना है कि डिजिटल माध्यम में चुनाव प्रचार बड़ी रैलियों टेलीविजन और अखबार के विज्ञापन माध्यम से सस्ता पड़ता है. और तकनीक का का पैठ आज ग्रामीण इलाकों तक है. लेकिन मीडिया विशेषज्ञ समरेंद्र का मानना है कि व्यक्ति और जाति पर आधारित छोटी-छोटी पार्टी सामान्यतया बड़ी रैलियों टेलीविजन विज्ञापन अखबार में इश्तेहार के बदले छोटी-छोटी सभाओं और वन टू वन माध्यम से अपना चुनाव प्रचार करते हैं. वहीं वरिष्ठ पत्रकार और मीडिया विशेषज्ञ जितेंद्र कुमार का मानना है कि आज भी लेफ्ट सहित गई ऐसी छोटी-छोटी पार्टियों के बड़े नेता है जो स्मार्टफोन यहां तक की कुछ नेता अभी भी मोबाइल फोन का प्रयोग नहीं करते हैं. ऐसे में तकनीक का प्रयोग करके डिजिटल माध्यम से चुनाव प्रचार करना इन पार्टियों के लिए एक बड़ी चुनौती हो जाएगी.

जितेंद्र कुमार का मानना है कि छोटी-छोटी पार्टियों के नेता अपने बॉडी लैंग्वेज और विभिन्न परंपरागत माध्यमों से भी चुनाव प्रचार में उतरते हैं और ऐसे में डिजिटल माध्यम से चुनाव प्रचार करना इन नेताओं के लिए एक बड़ी चुनौती हो जाएगी. जितेंद्र कुमार का कहना है कि बीजेपी कांग्रेस समाजवादी पार्टी जैसी पार्टियों के कार्यालय और काडर दोनों है और उन्होंने एक हद तक डिजिटल तकनीक का प्रयोग किया है लेकिन छोटी पार्टियों के लिए यह अभी भी बड़ी चुनौती है.इलेक्शन एडवाइजर नामक संस्था से जुड़े बृज दुग्गल का कहना है कि ऐसा नहीं है कि डिजिटल माध्यम पर सिर्फ देश की सबसे बड़ी पार्टी बीजेपी अपने पक्ष में चुनाव प्रचार करती है और संदेशों को ट्रेंड करवाती है बल्कि कई बार देखा गया है कि बीजेपी के खिलाफ भी डिजिटल माध्यम पर आक्रामक प्रचार और ट्रेंड हुआ है. मीडिया विशेषज्ञ समरेंद्र इस तरफ से बहुत संतुष्ट नजर नहीं आते और उनका कहना है कि आज की तारीख में समाजवादी पार्टी ने भी अपने आप को डिजिटल माध्यमों पर मजबूत किया है लेकिन व्यक्ति विशेष और जाति विशेष और निर्दलीय उम्मीदवारों और उनकी पार्टियों का क्या?

वे आगे कहते हैं कि देश में जब ऑनलाइन पढ़ाई के लिए सभी बच्चों के पास मोबाइल उपलब्ध नहीं है ऐसे में हम कैसे उम्मीद कर सकते हैं कि डिजिटल माध्यमों से वोटरों को सुदूर इलाकों में अपना संदेश पहुंचाया जा सकता है. जितेंद्र कुमार का कहना है कि संविधान में जब चुनाव को टालने और राष्ट्रपति शासन लगाने का विकल्प है तो कोरोना काल में सरकार और चुनाव आयोग को इन विकल्पों पर भी विचार करना चाहिए. सभी पार्टियों के चुनाव करवाने की मांग पर जितेंद्र कुमार का कहना है कि इसके लिए सरकार और चुनाव आयोग को अपने विवेक से काम करना चाहिए. वे कहते हैं कि सभी पार्टियों को समान अवसर प्रदान करने के लिए चुनाव को कुछ समय के टाला जा सकता है जब विशेषज्ञों का यह कहना है कि 15 फरवरी के बाद कोरोना का मौजूदा लहर कम हो जाएगा.

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि जब पूरी दुनिया कोरोना से प्रभावित है और सभी जगहों पर विकल्प तलाशा जा रहा है ऐसे में चुनाव और चुनाव प्रचार को लेकर के न सिर्फ चुनाव आयोग को बल्कि राजनीतिक दल नेताओं कार्यकर्ताओं और मतदाताओं को भी वैकल्पिक माध्यम तलाशने होंगे.

Tags: 2022 Uttar Pradesh Assembly Elections, Digital Reforms

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