औरंगजेब का भाई और वो मुगल शहजादा, जो हिंदू धर्मग्रंथों का मुरीद था
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नई दिल्ली. भारत में मुगल शासन (Mughal Empire) के शुरुआती दिनों से शासकों ने हिंदू धर्म (Hindu Religion) को समझने की कोशिश शुरू कर दी थीं. अकबर (Akbar) के समय में तेजी आई. उसने अनुवादकों का दल बनाकर धर्म ग्रंथों का अनुवाद संस्कृत से फारसी में कराना शुरू किया. मुगलिया सल्तनत में एक ऐसा भी शहजादा था, जो संस्कृत और हिंदू धर्मग्रंथों का मुरीद था. ना केवल खुद उनका अध्ययन करता था बल्कि उसका अनुवाद भी कराता था.
अकबर के प्रधानमंत्री अबुल फज़ल आईने अकबरी में लिखते हैं- हिंदू धर्मग्रंथों के अनुवाद की शुरुआत इसलिए कराई गई थी जिससे उनके खिलाफ बना बैर और द्वेष का माहौल हल्का हो सके. दोनों समुदायों के बीच बैर और वैमनस्यता को समाप्त किया जा सके.
अकबर ने सबसे पहले महाभारत का अनुवाद कराया
राजा अकबर का मानना था कि हिंदू-मुसलमानों में बैर की असली वजह एक-दूसरे की आस्थाओं के प्रति अनभिज्ञता है. और शायद यही वजह थी कि उसने अनुवाद के लिए महाभारत को सबसे पहले चुना. दिल्ली की गद्दी पर बैठने के बाद अकबर ने स्थानीय राजाओं को तो युद्ध के मैदान में मात दे दी थी लेकिन बाद में उसने डिप्लोमेसी और शादियों का सहारा लेकर संबंध बेहतर बनाने की शुरुआत की. उसने भारत के लोगों के बीच संबंध बेहतर करने की सारी कोशिशें जारी रखीं.
दारा वाकई हिंदू धर्म ग्रंथों का दीवाना था
अकबर के समय शुरू की गई इस कवायद को तेजी मिली दारा शिकोह के समय में. अकबर के लिए धर्मग्रंथों का अनुवाद करना या स्थानीय राजाओं के साथ बेहतर संबंध स्थापित करना राजनीति का भी एक हिस्सा था. उसके प्रयासों में धार्मिक सहिष्णुता के साथ अपने राज्य को बनाए रखने की महात्वाकांक्षा भी शामिल थी. लेकिन दारा शिकोह के लिए दूसरे धर्मों की आस्था के बारे में जानकारी हासिल करना राजनीति से प्रेरित नहीं था. इसमें किसी राज्य विस्तार या राज्य संभालने जैसी कोई कवायद नहीं शामिल थी.
मुगल शासक अकबर के समय में संस्कृत धर्मग्रंथों के अनुवाद की कवायद शुरू कर दी गई थी.
दारा भारतीय दर्शन की अच्छी जानकारी रखता था
दारा शिकोह ने सभी धर्मों के ज्ञानीजनों को इकट्ठा किया था. हिंदू धर्म के गहरे अध्ययन के बाद दारा शिकोह खुद यह मानने लगा था कि कुछ छोटे-मोटे अंतर छोड़कर हिंदू-मुस्लिम धर्म में कोई फर्क नहीं है. दारा शिकोह विद्वान था. वो भारतीय उपनिषद और भारतीय दर्शन की अच्छी जानकारी रखता था.
इतिहासकार बताते हैं कि वो विनम्र और उदार ह्दय का था. कहा जाता है कि दारा शिकोह के पिता ने समझ लिया था कि उसके बेटे ने हिंदुस्तान को जान लिया है और वो शासन चलाने के लिए बेहतर साबित होगा लेकिन औरंगजेब ने बवाल खड़ा किया. औरंगजेब को लगा कि अगर दारा शिकोह सफल रहता है तो इस्लाम खतरे में आ जाएगा.
क्या कहता था वो धर्मों को लेकर
दारा इस बात को लेकर भी आश्चर्यचकित होता था कि सभी धर्मों के विद्वान अपनी व्याख्याओं में उलझे रहते हैं और ये कभी समझ नहीं पाते कि इन सभी का मूल तत्व तो एक ही है. उसका मानना था कि एक ज्ञान के लिए सबसे जरूरी बात ये है कि उस व्यक्ति को सत्य की तलाश होनी चाहिए. उसने हिंदू और मुस्लिम धर्मों के एक साथ होने को मजमा उल बहरीन(दो समुद्रो का मिलना) नाम दिया था.
जितने भारतीय उपनिषदों का फारसी में अनुवाद किया गया, उस सबमें दारा शिकोह की भूमिका खासी महत्वपूर्ण थी. उसने इस काम के लिए बड़े पैमाने पर विद्वानों की नियुक्ति की थी, जो ये काम किया करते थे.
दारा के सबसे बड़े योगदानों में उपनिषदों का फारसी भाषा में अनुवाद करना माना जाता है. इन अनुवादित किताबों को उसने ‘सिर्रेअकबर’ यानी महान रहस्य का नाम दिया था. फारसी भाषा में अनुवाद कराए जाने का मुख्य कारण ये था कि फारसी मुगलिया कोर्ट में इस्तेमाल की जाती थी. हिंदुओं का भी विद्वान वर्ग इस भाषा के साथ बखूबी परिचित था.
भारत में हिन्दू-झुकाव वाले इतिहासकारों और बुद्धिजीवियों का मानना है कि अगर औरंगज़ेब की जगह दारा शिकोह मुग़लिया सल्तनत के तख़्त पर बैठते तो देश की स्थिति बिल्कुल अलग होती.
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Tags: Aurangzeb, Dara Shikoh, Mughal Emperor, Mughals
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