Climate Change: 80 प्रतिशत भारतीयों में जलवायु परिवर्तन का जोखिम, 463 जिलों मे खतरा चरम पर
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नई दिल्ली. दुनिया के सामने जलवायु परिवर्तन (Climate Change) का खतरा लगाता बढ़ता जा रहा है. रोम में होने वाले 16वें G20 शिखर सम्मेलन (G20 Summit) में भी इस मुद्दे पर अहम चर्चा की जाएगी. G20 शिखर सम्मेलन से पहले काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वॉटर (CEEW) ने जो रिपोर्ट पेश की है वह भारत के लिए किसी बड़ी चेतावनी से कम नहीं है. क्लाइमेट वल्नेरेबिलिटी इंडेक्स के मुताबिक जलवायु परिवर्तन के चलते महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, असम, कर्नाटक और बिहार में बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी भयानक स्थिति पैदा हो सकती है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत के इन राज्यों में जलवायु संबंधी घटनाओं का जोखिम सबसे ज्यादा है. रिपोर्ट के मुताबिक भारत की लगभग 80 प्रतिशत से अधिक आबादी जलवायु से जुड़े जोखिम वाले क्षेत्रों में रहती है.
सीईईडब्ल्यू के वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के बाद जो रिपोर्ट तैयार की है उसके मुताबिक भारत के 640 जिलों में से 463 जिले अत्यधिक बाढ़, सूखे और चक्रवात जैसे जोखिम के दायरे में हैं. इनमें से 45 प्रतिशत से अधिक जिले प्राकृतिक रूप से हो रहे बदलाव के कारण कई तरीके के बदल चुके हैं. इसके साथ ही 183 जिले जलवायु संबंधी एक से अधिक चरम घटनाओं के लिए अत्यधिक जोखिम की चपेट में हैं. सीईईडब्ल्यू के मुताबिक आंध्र प्रदेश में विजयनगरम, महाराष्ट्र में सांगली, तमिलनाडु में चेन्नई, असम में धेमाजी और नागांव, तेलंगाना में खम्मम, ओडिशा में गजपति और तमिलनाडु में चेन्नई, भारत के सबसे ज्यादा जोखिम वाले जिलों में शामिल हैं. अध्ययन में पता चला है कि जलवायु परिवर्तन का असर हर क्षेत्र में अलग-अलग दिखाई पड़ता है. अध्ययन के मुताबिक पूर्वात्तर के राज्यों में बाढ़ की स्थिति ज्यादा दिखाई पड़ती है तो मध्य और दक्षिण भारत के राज्य भीषण सूखे की चपेट में आ सकते हैं.
अध्ययन में ये भी बताया गया है कि देश के 63 प्रतिशत जिलों के पास ही जिला आपदा प्रबंधन योजना (डीडीएमपी) उपलब्ध है. इन योजनाओं को हर साल अपडेट करने की जरूरत है जिस पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है. बता दें कि 2019 तक इनमें से सिर्फ 32 प्रतिशत जिलों ने ही अपनी योजनाएं अपडेट की थी. महाराष्ट्र, गुजरात, ओडिशा, कर्नाटक और तमिलनाडु में जलवायु परिवर्तन से होने वाला जोखिम सबसे ज्यादा है लेकिन पिछले कुछ सालों में इन राज्यों ने डीडीएमपी और जलवायु परिवर्तन-रोधी मुख्य बुनियादी ढांचों में सुधार किया है.
सीईईडब्ल्यू के सीईओ डा. अरुणाभा घोष ने कहा कि जलवायु परिवर्तन का असर जिस तरह से देखने को मिल रहा है उसे देखते हुए हम कह सकते हैं भारत के लिए खतरा काफी बढ़ गया है. जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली घटनाएं भारत जैसे विकासशील देशों को आर्थिक रूप से कमजोर बना सकती हैं. उन्होंने कहा, कॉप-26 में, विकसित देशों को 2009 से अटके 100 अरब डॉलर की मदद के वादे को पूरा करके भरोसे को दोबारा जीतना चाहिए और आने वाले दशकों में क्लाइमेट फाइनांस को बढ़ाने का वादा भी करना चाहिए.
शोध में दावा- तेजी से गर्म हो रही है धरती
इसी तरह के एक अन्य शोध में सीएमसीसी (यूरो-मेडिटेरेनियन सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज) के 40 से भी ज्यादा वैज्ञानिकों ने कहा है कि अगर कार्बन उत्सर्जन इसी तरह बना रहता है तो 2036-65 तक गर्मी 25 गुना ज्यादा बढ़ जाएगी (साथ ही तापमान में 4 डिग्री की बढ़ोतरी होगी).रिपोर्ट में बताया गया है कि तापमान बढ़ने से भारत में गन्ना, चावल, गेहूं और मक्के के उत्पादन में कमी आएगी, वहीं अगर इसी तरह के हालात आगे भी बने रहे तो 2050 तक कृषि के लिए पानी की मांग में 29 फीसदी की बढ़ोत्तरी हो जाएगी. जिसका सीधा असर पैदावार पर देखने को मिलेगा.
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