Coronavirus: क्या भारत को अब कभी नहीं मिलेगा कोरोना से छुटकारा? जानिए क्या कहते हैं एक्सपर्ट्स
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नई दिल्ली. देश में कोरोना वायरस संक्रमण (Coronavirus) की तीसरी लहर से निपटने की तैयारी चल रही है, वहीं विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की चीफ साइंटिस्ट डॉक्टर सौम्या स्वामीनाथन (Saumya Swaminathan) के मुताबिक भारत में कोरोना की स्थिति स्थानिक (Endemic) संक्रामक रोग की बनने लगी है, मतलब एक ऐसी स्थिति जहां हल्के और मध्यम स्तर के संक्रमण का फैलाव हो. इस साल की शुरुआत में नेचर पत्रिका में कोरोना वायरस पर लिखे अपने एक लेख में वैज्ञानिकों ने कहा था कि कोविड संक्रमण धीरे-धीरे संक्रामक रोग में बदल रहा है, हालांकि वैश्विक आबादी के कुछ हिस्सों में इसका फैलाव जारी रहेगा.
एन्डेमिक स्थिति क्या है?
एन्डेमिक का मतलब है कि एक ऐसी बीमारी, जो हमेशा मौजूद रहे. उदाहरण के लिए जाने माने वॉयरोलॉजिस्ट डॉक्टर शाहिद जमील ने कहा कि इन्फ्लुएंजा एक स्थानिक बीमारी है, जोकि चेचक की बीमारी, जो अब खत्म हो चुकी है. डॉक्टर जमील ने कहा, ‘सिर्फ उन वायरस को हमेशा के लिए खत्म किया जा सकता है, जिनके वायरस जानवरों में नहीं पाए जाते हैं. चेचक और पोलियो जैसी बीमारियों के वायरस मानव से फैले हैं, लेकिन रिंडरपेस्ट जानवरों का वायरस है. इसका मतलब है कि वायरस कुछ जानवरों में हमेशा मौजूद रहता है. जैसेकि चमगादड़, ऊंट और बिल्लियां, और एक बार मानव शरीर में इम्युनिटी का स्तर कमजोर पड़ने पर ये वायरस दोबारा से फैल सकते हैं.’
उन्होंने कहा कि ‘कोरोना वायरस जानवरों से फैला है. इसलिए इसका संक्रमण चलता रहेगा. मतलब जिन लोगों ने टीकाकरण नहीं करवाया है, उन लोगों में इसके फैलने की आशंका है. लेकिन ज्यादातर लोगों ने टीकाकरण करवा लिया या संक्रमण की चपेट में आ गए तो कोरोना वायरस एक लक्षण वाले इंफेक्शन के रूप में मौजूद रहेगा, ना कि बीमारी के तौर पर, इसलिए कहा जा रहा है कि कोविड संक्रमण अब स्थानिक या एन्डेमिक स्थिति में जा रहा है. यानि संक्रमण रहेगा, लेकिन इससे गंभीर बीमारी नहीं होगी.’
कोरोना वायरस कब बनेगा एन्डेमिक?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोविड संक्रमण कितनी तेजी से फैलता है और कितनी तेजी से म्यूटेट होता है. इस मामले कई कारक होते हैं. डॉक्टर जमील ने कहा कि कोई स्पष्ट जवाब नहीं है कि वायरस कब एन्डेमिक बनेगा. उन्होंने कहा कि हमें एन्डेमिक के बारे में सोचने के बजाय टीकाकरण और संक्रमण रोकने पर फोकस करना चाहिए. ये बताना संभव नहीं है कि वायरस कब एन्डेमिक बनेगा.
उन्होंने कहा कि आईसीएमआर के आखिरी सीरो सर्वे में देश के 718 जिलों में से 70 में दो तिहाई आबादी में एंटीबॉडीज पाई गई हैं. इनमें बहुत सारे लोगों में एंटीबॉडीज टीकाकरण के चलते हो सकती है, हालांकि देश में अभी भी टीकाकरण की दर काफी कम है, इसलिए कहा जा सकता है कि ज्यादातर लोगों में एंटीबॉडी संक्रमण के चलते हैं. इसका मतलब है कि एंटीबॉडी वाले व्यक्ति संक्रमित तो हो सकते हैं, लेकिन सुरक्षित रहेंगे.
प्रोफेसर जमील ने कहा कि इस बात का ध्यान रखिए कि इस केस में हम ये मान रहे हैं कि वायरस एक ऐसे स्ट्रेन में म्यूटेट नहीं होगा, जो ज्यादा तेजी से संक्रमण फैलाए और इम्युनिटी को गच्चा दे सके. उन्होंने कहा कि कोई भी ये नहीं बता सकता कि वायरस कब म्यूटेट होगा और वैक्सीन का असर कमजोर पड़ जाएगा.
एंटीबॉडी कितने समय तक प्रभावी रहेगी?
भारत सरकार के नेशनल साइंस चेयर के प्रोफेसर पार्था मजूमदार ने कहा, ‘ज्यादातर लोगों में अब एंटीबॉडी है. इसका मतलब है कि संक्रमण अब गंभीर नहीं होगा. हो सकता है कि हर्ड इम्युनिटी की स्थिति बन गई हो. इसका संकेत है कि सबमें एंटीबॉडी है. चाहे वह टीकाकरण के चलते हो या संक्रमण के चलते.’
उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस संक्रमण के फैलाव और इसके म्यूटेशन को देखते हुए कहा जा रहा है कि ये वायरस कभी खत्म नहीं होगा, न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी, ये वायरस मौजूद रहेगा और आगे चलकर एन्डेमिक बन जाएगा, यानि लोगों को स्वास्थ्य संबंधी बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होगी, क्योंकि एक बड़ी आबादी में एंटीबॉडी पाई गई है.
क्लिनिकल एपिडेमियोलॉजिस्ट कर्नल (कर्नल) डॉक्टर अमिताव बनर्जी ने भी सीरो सर्वे के आंकड़ों का हवाला दिया और कहा कि लगभग 67 प्रतिशत भारतीयों में IgG एंटीबॉडीज पाई गई है. उन्होंने कहा, ‘समय के साथ एंटीबॉडी का स्तर कम होता है, लेकिन मेमोरी और टी-सेल्स के चलते इम्यूनिटी बनी रहती है. हम ये मान सकते हैं कि भारत में स्वाभाविक तौर पर 67 फीसदी से ज्यादा लोग संक्रमण के शिकार हुए हैं. ऐसे में IgG level के और ज्यादा सीरो सर्वे की आवश्यकता है, ताकि चीजें और ज्यादा स्पष्ट हो सकें.’
क्या वैक्सीन की अतिरिक्त डोज से मिलेगी मदद?
प्रोफेसर मजूमदार ने कहा कि वैक्सीन की बूस्टर डोज की आवश्यकता इस बात पर निर्भर करती है कि लोगों में एंटीबॉडी कितनी तेजी से खत्म होती है. लोगों के बीच अलग-अलग वैक्सीन की एंटीबॉडीज का स्तर अलग-अलग देखने को मिल रहा है. ऐसे में पर्याप्त डाटा उपलब्ध नहीं है, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि वैक्सीन की बूस्टर डोज की आवश्यकता है.
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