उत्तराखंड

महाराष्ट्र में भगवान विट्ठल मंदिर तक वार्षिक तीर्थयात्रा की मंजूरी नहीं: कोर्ट

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नयी दिल्ली . उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने सोमवार को उस याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया जिसमें कोविड-19 के आधार पर महाराष्ट्र सरकार ( Maharashtra Government) ने प्रदेश के पंढरपुर में भगवान विट्ठल के मंदिर तक ‘संत नामदेव महाराज संस्थान’ और अन्य संगठनों के ‘वारीकरों’ को वार्षिक तीर्थ यात्रा निकालने की मंजूरी देने की अनुमति नहीं देने के आदेश को चुनौती दी गई थी. याचिका में कहा गया था कि सरकार ने भक्‍तों के मौलिक अधिकारों का उल्‍लंघन करते हुए इजाजत नहीं दी है.

याचिका के अनुसार परंपरा के मुताबिक ‘वारीकर’ (भगवान विट्ठल के भक्त) करीब 250 से ज्यादा ‘पालकी’ के साथ पैदल ही अपने-अपने पैतृक स्थान से पंढरपुर में भगवान विट्ठल के मंदिर की तीर्थयात्रा करते हैं. महामारी की स्थिति के मद्देनजर प्रदेश सरकार ने पाबंदियां लागू की है जिसके तहत अब 10 ‘पालकी’ ही मंदिर ले जाई जा सकती हैं. याचिका में कहा गया था कि प्रदेश सरकार ने मनमाने तरीके से पाबंदियां लागू कर दी है, इनको खारिज करना चाहिए और वार्षिक तीर्थ यात्रा निकालने की वारीकरों को मंजूरी देना चाहिए.

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प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना और न्यायमूर्ति ऋषिकेश रॉय की पीठ ने कहा, “आप महामारी के बारे में जानते हैं. आप देश की स्थिति के बारे में जानते हैं. और, आप चाहते हैं कि कोई पाबंदी नहीं होनी चाहिए. खेद है, हम ऐसा नहीं कर सकते.”

‘संत नामदेव महाराज संस्थान’ ने अपनी याचिका में कहा था कि महज 10 ‘पालकी’ की इजाजत दिए जाने से महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, गोवा, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना के तीर्थयात्रियों को अपनी ‘वारी’ (तीर्थ यात्रा) पूरी करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा, जो सामान्यत: उनके घरों से शुरू होकर भगवान विट्ठल के मंदिर तक होती है.

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