97वें संविधान संशोधन पर फैसले के खिलाफ केंद्र की अर्जी पर फैसला आज
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न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन, न्यायमूर्ति के एम जोसफ और न्यायमूर्ति बी आर गवई की पीठ फैसला सुनाएगी जिसने गत आठ जुलाई को फैसला सुरक्षित रख लिया था. उच्चतम न्यायालय ने सात जुलाई को इस बात की समीक्षा के लिए सुनवाई शुरू की थी कि क्या संविधान में 97वें संशोधन ने राज्यों को सहकारी समितियों के प्रबंधन के लिए कानून बनाने की उनकी विशेष शक्ति से वंचित कर दिया है.
देश में सहकारी समितियों के प्रभावी प्रबंधन से संबंधित मुद्दों से निपटने वाले संविधान के 97वें संशोधन को दिसंबर 2011 में संसद ने पारित किया था और यह 15 फरवरी, 2012 से लागू हुआ था. संविधान में परिवर्तन के तहत सहकारिता को संरक्षण देने के लिए अनुच्छेद 19(1)(सी) में संशोधन किया गया और उनसे संबंधित अनुच्छेद 43 बी और भाग IX बी को सम्मिलित किया गया.
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पीठ ने सुनवाई के दौरान अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से कहा कि वह इस बात की जांच करना चाहती है कि क्या संशोधन ने सहकारिता से संबंधित कानून बनाने के संबंध में अनुच्छेद 246 (3) के तहत राज्य की विशेष शक्ति में हस्तक्षेप किया है क्योंकि यह राज्य का विषय है. वेणुगोपाल ने कहा कि संशोधन सहकारी समितियों के प्रबंधन में एकरूपता लाने के लिए किया गया था और यह उनसे संबंधित कानून लागू करने की राज्य की शक्तियों को नहीं छीनता है.
पीठ ने कहा कि अगर केंद्र एकरूपता लाना चाहता है, तो इसके लिए एकमात्र रास्ता संविधान के अनुच्छेद 252 के तहत उपलब्ध है जो दो या दो से अधिक राज्यों के लिए सहमति से कानून बनाने की संसद की शक्ति से संबंधित है. पीठ ने कहा कि सरकार ने वास्तव में जो किया है, वह यह है कि सहकारी समिति के संबंध में कानून बनाने की राज्यों की शक्ति अब विशिष्ट नहीं रहीं. उसने कहा, ‘इस मामले में थोड़ा सा भी हस्तक्षेप राज्यों की शक्ति को विशिष्ट नहीं रहने देगा.’’
गुजरात स्थित एक सहकारी समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता प्रकाश जानी ने कहा कि वह केंद्र के रुख का समर्थन करते हैं और विभिन्न राज्यों द्वारा लागू किए गए सहकारी समितियों से संबंधित कानूनों में एकरूपता लाने के लिए संसद की शक्ति का प्रयोग करके संशोधन किया गया था.
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