तालीबान से खतरे के बीच भारत में जारी रहेगा अफगान सैन्य अफसरों का डिफेंस कोर्स
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नई दिल्ली. अफगानिस्तान में तालीबान के क़ब्ज़े के बाद वहां का मौजूदा सिस्टम बिलकुल अस्त-व्यस्त हो गया है. अमेरिकी सेना द्वारा प्रशिक्षित किए गए अफगान सैनिक और पुलिस ने बिना लड़े हथियार डाल दिए. ऐसे में उन अफगानी सैनिकों के भविष्य पर भी संकट आ गया है, जो कि अन्य देशों में अपने सैन्य अफसरों को विशेष ट्रेनिंग के लिए भेजा करते थे. अब जब अफ़ग़ानिस्तान में न कोई सरकार है और न ही कोई सेना, तो ऐसे में वो कैडेट किया करेंगे. भारत में डिफेंस कोर्स कर रहे 130 सैन्य अफसर इसी पसोपेश से गुज़र रहे हैं, लेकिन सेना के जिन कोर्सों को करने के लिए ये सैन्य अफसर आए थे, उनकी ट्रेनिंग और कोर्स जारी रहेंगे.
सूत्रों की माने, तो जो भी अफ़ग़ान सेना के सैन्य अफसर पिछले सालों में या इस साल भी एनडीए, आईएमए, हायर कमांड और अन्य सेना के स्पेशलाइजेशन कोर्स करने के लिए भारत आए थे… उन्हें कोर्स और ट्रेनिंग के खत्म होने तक जारी रखा जाएगा. सेना की तरफ से आर्थिक मदद तो जारी रहेगी, साथ ही इन कोर्स के अलावा सिविल अकैडमिक कोर्स करने के लिए भी भारतीय सेना उनकी सहायता करेगी, ताकि जब भी वो यूएन के तहत किसी दूसरे देश में रिफ्यूजी स्टेटस के तहत जाएं, तो वो अपनी आगे की ज़िंदगी बेहतर ढंग से शुरू कर सकें.
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सूत्रों की माने, तो इन अफसरों के परिवार वालों ने जिन भी चुने हुए देश में रिफ्यूजी के तौर पर जाने के लिए आवेदन किया है… कोर्स खत्म होने के बाद भारतीय सेना उन्हें उन देशों में बतौर रिफ्यूजी जाने के लिए ई-वीज़ा के लिए भी मदद देगी. इस वक़्त एनडीए और आईएमए में 80 कैडेट डिफेंस कोर्स कर रहे हैं, तो 50 अफसर हायर कमांड और अन्य स्पेशलाइजेशन का कोर्स कर रहे हैं.
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भारतीय सेना ने आज़ादी के बाद से ही अन्य देशों की सेना और सैनिकों को ट्रेनिंग देने के लिए अपने सैन्य अकादमी के दरवाज़े खोल दिए थे और हर साल अलग-अलग कोर्स के लिए अफगानी सैनिक भारत आते रहे हैं, लेकिन कुछ रिपोर्ट की माने, तो भारत से सैन्य कोर्स और ट्रेनिंग कर अफगान सेना में शामिल सैनिकों को अब अपनी जान का ख़तरा सता रहा है और उन्हें लग रहा है कि वे तालिबान और पाकिस्तानी आईएसआई के निशाने पर हैं.
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भारतीय सेना से रिटायर मेजर जन ध्रुव कटोच की माने, तो तालिबान को डर है कि कही से ट्रेंड सैनिक उनके लिए भविष्य में मुसीबत न खड़ी कर दें. उन्होंने कहा, ‘आज भले कुछ भी नहीं हो रहा है, लेकिन अगर आने वाले समय में उन्हें हथियार मिल जाएंगे, तो उनके पास वो क़ाबिलियत है कि बाक़ी लोगों को इकट्ठा कर वे तालिबान के विरोध में लड़ाई लड़ सकते हैं, लेकिन जितने भी अफ़ग़ानी सैन्य ऑफ़िसर ख़ास तौर पर जिन्होंने भारत में अकादमी में ट्रेनिंग ली है, मैं समझता हूं कि उनकी जान ख़तरे में है और उससे भी ज़्यादा खतरा उनके परिवार को है.’
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इस समय तालिबान के ताक़तवर नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई भी भारत के डिफेंस अकादमी (आईएमए) 82 बेच के कैडेट रहे हैं और उसके बाद में कोर्स कर चुके है. उनके अलावा आधा दर्जन और तालिबानी लीडर भारतीय डिफेंस अकादमी के पढ़े हुए हैं और उनमें से अधिकतर अफसरों ने अफगान सेना में लंबे समय तक काम भी किया है, लेकिन बाद में वे फ़ौज छोड़ तालिबान में शामिल हो गए थे.
अभी फिलहाल अफ़ग़ानिस्तान मसले पर तालिबान ने भारत से बातचीत शुरू की है. भारत की बात हुई भी, तो आईएमए 82 बैच के कैडेट रहे और तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के प्रमुख शेर मोहम्मद अब्बास स्तानिकजई से. यह बातचीत मौजूदा हालात को लेकर हुई है, लेकिन दोनों देशों के भविष्य में कैसे रिश्ते क़ायम होते हैं, ये कहना अभी जल्दबाज़ी होगा और उसी के आधार पर ही भारतीय डिफेंस कोर्स में अफ़ग़ानिस्तान का भविष्य भी टिका हुआ है.
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