उत्तराखंड

प्रमोशन देने के बाद भी किया जा सकता है जबरन रिटायर, ये सरकार का मौलिक नियम: हाईकोर्ट

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नई दिल्ली. दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने कहा है कि प्रमोशन देने के बाद भी अधिकारियों और कर्मचारियों को जबरन रिटायर (Force Retirement) किया जा सकता है. हाई कोर्ट ने कहा कि समय से पहले कर्मचारियों को रिटायर करना सरकार का मौलिक नियम है. हाई कोर्ट ने प्रर्वतन निदेशालय (ED) के उप निदेशक रहे अशोक कुमार अग्रवाल को समय से पहले रिटायर किए जाने को सही ठहराते हुए यह फैसला दिया है. चीफ जस्टिस डीएन पटेल और जस्टिस वी. कामेश्वर राव की बेंच ने कहा है कि मौलिक नियम के रूल 56 (J) के तहत सरकार प्रमोशन देने के बाद भी कर्मचारियों को समय से पहले रिटायर कर सकती है.

दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि नियम 56 (J) के तहत प्रक्रिया बिल्कुल अगल और स्वतंत्र होती है. ऐसे में सरकार को कर्मचारियों का पूरे सेवाकाल के कामकाज की समीक्षा करके यह तय करने का अधिकार है कि संबंधित कर्मचारी/अधिकारी जनहित के लिए है या नहीं. हाई कोर्ट ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है तो केंद्र ने याचिकाकर्ता को प्रमोशन देने से पहले ही नियम 56 (जे) के तहत जबरन रिटायर करने का आदेश पारित कर दिया था.

हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता अग्रवाल की उन दलीलों को ठुकरा दिया, जिसमें उन्होंने कहा कि एक तरफ सरकार उन्हें प्रमोशन दे रही है. दूसरी तरफ समय से पहले सेवानिवृत कर रही. याचिकाकर्ता ने केंद्र सरकार द्वारा जून 2019 में समय से पहले सेवानिवृत करने के आदेश और इस आदेश को सही ठहराने के केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के फैसले को दिल्ली हाई कोर्ट में चुनौती दी थी. सरकार ने 2019 के अपने आदेश को सही ठहराते हुए कहा कि समीक्षा समिति ने याचिकाकर्ता के पूरे सेवाकाल के दौरान लगे गंभीर आरोपों के मद्देनजर पाया कि उनका (अग्रवाल) नौकरी में बना रहना, जनता के हित में नहीं होगा.

सरकार के आदेश में गलती नही
दिल्ली हाई कोर्ट ने 1985 बैच के भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी अशोक अग्रवाल की उन दलीलों को  खारिज कर दिया, जिसमें उन्होंने सरकार पर द्वेषपूर्ण और दुर्भावना से प्रेरित होकर समय से पहले रिटायर करने का आरोप लगाया. कोर्ट ने अग्रवाल से कहा कि सरकार ने सिर्फ आपको नहीं, बल्कि 64 अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के सेवाकाल में कामकाज की समीक्षा करके रिटायर किया है. ऐसे में सरकार के आदेश में किसी तरह की गलती नहीं है.

यह है पूरा मामला
IRS अधिकारी अशोक कुमार अग्रवाल को केंद्र सरकार ने 1996 में प्रवर्तन निदेशालय (दिल्ली जोन) में उपनिदेशक नियुक्त किया. ED में वह विदेशी मुद्रा विनियमन अधिनियम (FERA) मामलों की जांच की निगरानी कर रहे थे. इसी दौरान जनवरी 1998 में हवाला कारोबारी सुभाष बरजात्या के कई ठिकानों पर छापेमारी हुई. बाद में बारजात्या को गिरफ्तार किया गया. इसी मामले में अग्रवाल पर ईडी के वरिष्ठ अधिकारियों के दवाब में काम करने का आरोप लगा और केंद्रीय सर्तकता आयोग के आदेश पर CBI ने उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच शुरू की. साल 2016 में हाई कोर्ट ने अग्रवाल के खिलाफ 12 करोड़ रुपये का आय से अधिक संपत्ति जमा करने का मुकदमा चलाने की मंजूरी को रद्द करते हुए मुकदमा बंद कर दिया. इस बारे में अभी भी CBI की अपील सुप्रीम कोर्ट में लंबित है.

1999 से 2014 तक रहे सस्पेंड
CBI जांच शुरू होने के बाद साल 1999 में केंद्र ने अशोक अग्रवाल को सस्पेंड किया. इसके बाद से वह कई दौर का मुकदमा अलग-अलग अदालतों में लड़ते रहे. सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में अग्रवाल के निलंबन को रद्द कर दिया. इसके बाद उनका तबादला कोलकाता कर दिया गया.

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