उत्तराखंड

EXCLUSIVE- अफगान के पूर्व पीएम बोले- अपनी जमीन पर नहीं आने देना चाहते कश्मीर, भारत-चीन या तिब्बत का मुद्दा

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काबुल. अफगानिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री और हिज़्ब-ए-इस्लामी गुलबुद्दीन (HIG) पार्टी के प्रमुख गुलबुद्दीन हिकमतयार, साल 2016 में निर्वासन से लौटने के बाद से एक विभाजक व्यक्ति बने हुए हैं. 72 वर्षीय पूर्व पीएम ने अगली अफगान सरकार तय करने के लिए बातचीत और चुनावों का समर्थन किया है. साथ ही वह तालिबान नेताओं के साथ चर्चा में भी भाग ले रहे हैं. उनके पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियों के साथ गहरे और अच्छे संबंध हैं जो उन्हें क्षेत्र में अहम खिलाड़ी बनाता है. CNN-News18 के साथ एक विशेष बातचीत में अनुभवी राजनीतिक नेता ने तालिबान के तहत मौजूदा शासन के गठन में अपनी भूमिका, पाकिस्तान और चीन द्वारा फैसलों को प्रभावित करने के प्रयासों के साथ ही अपने देश पर 20 साल के लंबे युद्ध के परिणाम पर चर्चा की. यहां पढ़ें उनसे हुई बातचीत के संपादित अंश

  • आप अफगानिस्तान के संघर्ष के सबसे पुराने चेहरों में से एक हैं. अफगानिस्तान एक बार फिर अपने इतिहास के महत्वपूर्ण मोड़ पर है.एक दिग्गज के तौर पर आप इसे कैसे देखते हैं?

    हमने पिछली सदी में लगातार तीन महाशक्तियों को अफगानिस्तान पर आक्रमण करते देखा है – ब्रिटिश, सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका. उन सभी को इस देश में गंभीर स्थिति सामना करना पड़ा. लंबे समय तक युद्ध और बहादुर स्वतंत्रता सेनानियों के अद्वितीय प्रतिरोध इन ताकतों की हार की मुख्य वजह रही. वे सभी अपनी शक्ति के चरम पर अफगानिस्तान में प्रवेश कर गए, फिर भी उन्हें कोई रणनीतिक लक्ष्य हासिल नहीं हुआ और उन्हें शर्म से सिर झुकाकर पीछे हटना पड़ा. अफगानिस्तान के भू-रणनीतिक महत्व को अमेरिका की हार से बढ़ावा मिला है. अफगानिस्तान अब क्षेत्रीय और वैश्विक प्रतिद्वंद्विता के खेल के मैदान में बदल गया है. हालांकि अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करना अफ़गानों के लिए विनाशकारी मामला था, लेकिन इअमेरिका और उसके सहयोगियों ने इसकी कीमत चुकाई. जो लोग अमेरिका की इस हार को उसके पतन की शुरुआत के रूप में देखते हैं, वे इसे अतिशयोक्ति या कल्पना नहीं कहेंगे.

  • आप तालिबान, हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला से बात कर रहे हैं. आपको क्या लगता है कि नई सरकार क्या आकार और रूप लेगी?

    जमीनी हकीकत स्पष्ट है कि आने वाली अफगान सरकार तालिबान की अगुवाई में होगी. हालांकि तालिबान ने दोहराया है कि वे अमीरात को बहाल करने की योजना नहीं बना रहे हैं और न ही सत्ता पर एकाधिकार करेंगे. उन्होंने अभी तक राजनीतिक दलों और बौद्धिक वर्ग के साथ औपचारिक बातचीत शुरू नहीं की है. हमें तालिबान पर उनके रुख और आने वाली राजनीतिक व्यवस्था के लिए प्रस्तावित ढांचे के संबंध में आंतरिक सहमति पर पहुंचने का इंतजार करना होगा.

  • आप इससे पहले अफगानिस्तान के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. नए प्रशासन के गठन के बाद आप उसमें अपनी क्या भूमिका देखते हैं?

    मैंने अपने जीवन के अधिकांश लक्ष्यों को पूरा कर लिया है. मैं नाटो सैनिकों की वापसी, संघर्ष की समाप्ति, भ्रष्ट और युद्धरत कठपुतली शासन को उखाड़ फेंकने और हमारी राष्ट्रीय एकता को कमजोर करने के उद्देश्य से बनी सत्ता को खत्म करने के लिए सर्वशक्तिमान अल्लाह का आभारी हूं. इन उपलब्धियों से मैं संतुष्ट हूं. मैं लॉ एंड ऑर्डर को मजबूत करने के साथ-साथ एक केंद्रीकृत सरकार के गठन में तालिबान का बिना शर्त समर्थन करने को तैयार हूं. हमारा समर्थन सरकार में हिस्से के आधार पर नहीं होगा.

  • पाकिस्तान को दुनिया के अधिकांश देश, खासतौर से से भारत, आतंकवाद के लिए एक सुरक्षित पनाहगाह मानते हैं. पाकिस्तान की नकारात्मक मानसिकता और प्रभाव को दूर करने में अफगानिस्तान क्या भूमिका निभा सकता है?

    मेरा मानना ​​​​है कि हर कोई इस असलियत को समझ गया है कि असुरक्षा, संघर्ष और आतंकवादी संगठनों या राज्यों की मौजूदगी सभी के लिए हानिकारक है. इन सभी संघर्षों से अफगानिस्तान बहुत प्रभावित हुआ है. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री, इमरान खान ने अफगानिस्तान पर अमेरिकी आक्रमण के पाकिस्तान के समर्थन को एक गलती बताया. उन्होंने यह भी कहा कि अफगानिस्तान से उनकी एकमात्र उम्मीद यह है कि भारत पाकिस्तान के हितों के खिलाफ अपनी जमीन का इस्तेमाल नहीं करेगा. अफगानिस्तान की भविष्य की सरकारों को गुटनिरपेक्ष होना चाहिए और अफगानिस्तान को राजनीतिक, खुफिया, सैन्य और आर्थिक प्रतिद्वंद्विता के लिए एक केंद्र बनने से रोकने का प्रयास करना चाहिए. पिछले अनुभवों से पता चला है कि जब भी काबुल ने किसी क्षेत्रीय या वैश्विक प्रतिद्वंद्वी के साथ गठबंधन किया है, इसने हमेशा संघर्ष को जन्म दिया है. अमेरिका और सोवियत संघ के साथ पिछले गठबंधन ने इस बात को साबित किया है.

  • चीन के प्रति आपका क्या रवैया है?अगर आप सरकार में होंगे तो क्या पूर्वी तुर्किस्तान में इस्लामी लड़ाकों का समर्थन करेंगे?

    अफगानिस्तान में चालीस साल पुराने संघर्ष की भरपाई के लिए हमें सुरक्षा और विकास की सख्त जरूरत है. इससे पहले कि हम अन्य मुद्दों के बारे में सोच सकें, हमें हमारी समस्याओं पर ध्यान देने की जरूरत है.

  • अंतरराष्ट्रीय मान्यता पाने के लिए दुनिया के तमाम देश कह रहे हैं कि अफगानिस्तान में व्यापक आधार वाली सरकार होनी चाहिए. आप इसे कैसे होते हुए देखते हैं?

    किसी भी विदेशी राज्य को खुद को अफगान लोगों पर विदेशी इच्छाओं को थोपने की धमकी देने, दबाव बनाने या मांग करने का अधिकार नहीं देना चाहिए. हम दुनिया भर में मुख्य रूप से एक दलीय सरकार देख रहे हैं. अमेरिका से लेकर रूस, चीन और पूरे यूरोप, यहां तक ​​कि हमारे कुछ पड़ोसियों तक, राजनीतिक और जातीय संस्थाओं के बीच कोई गठबंधन सरकार नहीं है. अफगानिस्तान को नियम का अपवाद क्यों होना चाहिए और एक व्यापक-आधारित सरकार बनाने की मांग की जानी चाहिए? अफगानों को विदेशी दबावों और भागीदारी से मुक्त होकर अपने भाग्य और भविष्य का फैसला खुद करने दें. इस तरह के दबाव और भागीदारी ने इतिहास में सकारात्मक परिणाम नहीं दिए हैं और भविष्य में इससे उचित परिणाम नहीं मिलेंगे. गठबंधन और सत्ता-बंटवारे की व्यवस्था पर जोर देने के बजाय, स्वतंत्र और पारदर्शी चुनावों को महत्व दिया जाना चाहिए. यह प्रासंगिक है कि दुनिया अफगानों के बीच समझबूझ के लिए बनी किसी भी सरकार को मान्यता देती है. दबाव और मांगों की रणनीति से बचना चाहिए.

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