EXCLUSIVE: पोलियो ड्रॉप जनित वायरस के खिलाफ आई वैक्सीन, इमरजेंसी आउटब्रेक में होगी इस्तेमाल
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नई दिल्ली. विश्व से पोलियो (Polio) को पूरी तरह खत्म करने के लिए वर्ल्ड हेल्थ ऑर्गनाइजेशन लगातार कोशिशें कर रहा है. विश्व के कई अफ्रीकी देशों के अलावा पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश में अभी भी पोलियो वायरस (Polio Virus) के मामले सामने आ रहे हैं. हालांकि अब पोलियो ड्रॉप या वैक्सीन से निकले टाइप टू वायरस को रोकने के लिए समाधान ढूंढ लिया गया है. वैक्सीन जनित पोलियो वायरस (cVDPV) टू के खिलाफ नई वैक्सीन नोवल ओरल पोलियो वैक्सीन टाइप टू (nOPV2) तैयार की गई है. जिसे फिलहाल डब्ल्यूएचओ ने इमरजेंसी इस्तेमाल की सूची में रखा है.
डब्ल्यूएचओ (WHO) की ग्लोबल एडवाइजरी कमेटी फॉर वैक्सीन सेफ्टी (GACVS) के सदस्य और भारत में नेशनल सर्टिफिकेशन कमेटी फॉर पोलियो इरेडिकेशन (NCCPE) के चेयरमैन डॉ. एन के अरोड़ा ने न्यूज 18 हिंदी से बातचीत में बताया कि पोलियो के खात्मे के लिए विश्व मेंं अभी तक हम नियमित ओरल पोलियो वायरस वैक्सीन का इस्तेमाल करते रहे हैं जो कि ट्रायवेलेंट होती है.
भारत की बात करें तो यहां पोलियो के तीनों वायरस पी1, पी2 और पी3 खत्म हो चुके हैं लेकिन दुनिया में अभी भी पोलियो का पी1 वायरस घूम रहा है. साथ ही बीच में बीच में वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियो वायरस वीडीपीवी (cVDPV) भी सामने आ जाता है. यह ज्यादातर टाइप टू का होता है. इस समय यह वायरस दक्षिण अफ्रीका के कई शहरों के अलावा पाकिस्तान और अफगानिस्तान में सर्कुलेट कर रहा है.
अच्छी बात है कि भारत पूरी तरह पोलियो फ्री है. पिछले दो-ढ़ाई साल से यहां न तो पी श्रेणी का कोई वायरस है और न ही वीडीपीवी का कोई आउटब्रेक हुआ है लेकिन फिर भी वैक्सीन से व्युत्पन्न यह वायरस यहां किसी भी प्रकार से घुस जाए तो बहुत मुश्किल हो सकती है. यह पोलियो वायरस शरीर को लकवाग्रस्त बना देता है. यही वजह है कि इससे रोकथाम करना बेहद जरूरी है.
पोलियों को लेकर भारत में दो प्रकार की वैक्सीन दी जाती हैं. जिनमें से एक इंजेक्शन के माध्यम से दी जाने वाली आईपीवी (IPV) और दूसरी ड्राप के रूप में दी जाने वाली बीओपीवी (bOPV) वैक्सीन है जो कि सिर्फ वायरस पी1 और पी3 से रोकथाम कर सकती है. ऐसे में बचे हुए पी2 वायरस के प्रति इम्यूनिटी लगातार कमजोर होती जाती है. लिहाजा अगर यह वायरस कम्यूनिटी में घुस जाए तो पोलियो का आउटब्रेक हो सकता है.
पी2 के इस आउटब्रेक को रोकने के लिए एक तरीका यह भी है कि खासतौर पर इसके लिए मोनोवेलेंट ओपीवी टू का ड्रॉप बनाएं लेकिन इसकी भी एक परेशानी है कि यह शरीर में जाकर वीडीपीवी वायरस बनाता है. यही वजह है कि यह वायरस दुनिया में कई जगहों पर दिखाई दे रहा है. ऐसे में जरूरी था कि ऐसा वायरस या वैक्सीन बनाया जाए जो वीडीपीवी में कन्वर्ट न हो और उसमें जैनेटिक स्टेबिलिटी हो. लिहाजा नोवल ओरल पोलियो वैक्सीन टू (एनओपीवीटू) जैनेटिक स्टेबिलिटी वाला ही वायरस या वैक्सीन है जो इस पोलियो को पूरी तरह निकाल फेंकने का काम करेगा.
क्या सबसे ज्यादा खतरनाक है ओपीवी टू
डॉ. अरोड़ा कहते हैं कि यह सबसे खतरनाक नहीं है बल्कि ओपीवीटू वायरस वैक्सीन से घटाने के लिए सबसे आसान वायरस था. यहां तक कि भारत में यह 1999 में खत्म हो चुका था लेकिन समस्या यह है कि ओरल पोलियो वैक्सीन देते रहने के कारण इसमें वैक्सीन व्युत्पन्न पोलियो टू (VDPV2) दोबारा होने की आशंका होती है जो कि खतरनाक चीज है. इसे यह भी कह सकते हैं कि यह दी जा रही ओरल पोलियो वैक्सीन के साइड इफैक्ट के रूप में पैदा होने वाला वायरस है. यही वजह है कि इसके लिए अलग से वैक्सीन बनाने की जरूरत पड़ी है और साथ ही ऐसी वैक्सीन जो कि जेनेटिक रूप से स्थाई है.
अभी इमरजेंसी इस्तेमाल की मिली अनुमति
डब्ल्यूएचओ की (GACVS) के अंतर्गत एनओपीवीटू पर बनी सब कमेटी के भी सदस्य डॉ. अरोड़ा बताते हैं कि इस वैक्सीन का ट्रायल नवंबर 2020 में शुरू किया गया था. अभी इसकी सुरक्षा को लेकर फेज टू ट्रायल चल रहा है. हालांकि इसे डब्लयूएचओ की इमरजेंसी यूज लिस्ट यानि आपातकालीन इस्तेमाल की सूची में दर्ज किया गया है. लिहाजा डब्ल्यूएचओ की अनुमति से इसे सिर्फ चुनिंदा जगहों जैसे अफ्रीकी देशों और एशिया में बांग्लादेश में ही जहां वीडीपीवीटू का आउटब्रेक हुआ है वहीं इमरजेंसी इस्तेमाल किया गया है. इसकी लगभग पांच करोड़ डोज दी जा चुकी हैं.
पोलियो आउटब्रेक में कैसे दी जाएगी यह वैक्सीन
एनओपीवीटू वैक्सीन को नियमित वैक्सीनेशन के दौरान नहीं इस्तेमाल किया जाएगा. डब्ल्यूएचओ के अनुसार यह सिर्फ सीवीडीपीवी टू के आउटब्रेक के दौरान ही इस्तेमाल होगी. नियमित टीकाकरण के लिए पोलियो की दोनों आईपीवी और बीओपीवी वैक्सीन ही दी जाएंगी.
इसके अलावा किसी भी देश के किसी इलाके में अगर पोलियो वीडीपीवी टू वायरस का आउटब्रेक होता है तो उस देश के सभी बच्चों को यह वैक्सीन नहीं दी जाती बल्कि जहां आउटब्रेक हुआ है उस इलाके आसपास एक रिंग बनाकर उसमें आने वाले बच्चों को दी जाती है. जिससे कि यह उस इलाके में इसके होने की संभावना खत्म होने के साथ ही यह वायरस वहां से आगे न फैले.
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