EXPLAINED: जिनोम सिक्वेंसिंग के नतीजों में क्यों होती है देरी? जानें इस टेस्ट की कीमत और महत्व
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नई दिल्ली: ओमिक्रॉन वेरिएंट (Omicron Variant) भारत में कोरोना महामारी की तीसरी लहर (Third Wave of Corona) का कारण बना है. इस वेरिएंट की पहचान सिर्फ जिनोम सिक्वेंसिंग (Genome Sequencing) के माध्यम से हो सकती है. लेकिन सैंपल कलेक्ट करने के बाद जिनोम सिक्वेंसिंग के नतीजे आने में 5 से 12 दिन का समय लगता है. इसकी वजह मरीज और डॉक्टर्स में अनिश्चितता, भ्रम और तनाव की स्थिति रहती है. शुरुआत में, जब देश में ओमिक्रॉन संक्रमण के कुछ ही मामले थे. ऐसे में वे लोग जो कोविड-19 पॉजिटिव पाए जाते थे उन्हें नेगेटिव रिपोर्ट आने तक घर नहीं जाने दिया जाता था. ऐसा इसलिए होता था क्योंकि उनकी जिनोम सिक्वेंसिंग की नेगेटिव रिपोर्ट में देरी होती थी. हालांकि अब भी हालात यही हैं.
महामारी और पब्लिक हेल्थ स्पेशलिस्ट डॉ सुनील कुमार ने जिनोम सिक्वेंसिंग की प्रक्रिया को समझाते हुए बताया कि आखिर इस रिपोर्ट के आने में देरी क्यों होती है. सबसे पहले सैंपलों की संख्या लैब पहुंचती है. एक उच्च क्षमता युक्त लैब में करीब 300 सैंपल्स की जिनोम सिक्वेंसिंग की प्रोसेस को शुरू किया जा सकता है. इस प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाली प्रति चिप की कीमत ढाई लाख रुपए होती है. चाहें आप 10 सैंपल या 300 सैंपल की टेस्टिंग कराएं चिप की कीमत ढाई लाख ही होगी. इसलिए जब तक 100 या 300 सैंपल इकट्ठा नहीं हो जाते तब तक जिनोम सिक्वेंसिंग की प्रोसेस को शुरू नहीं किया जाता है.
सही सैंपल
जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए कोविड स्वैब सैंपल का सीटी (cycle threshold) 25 से कम होना चाहिए. इसलिए हर सैंपल का परीक्षण इस पद्धति से नहीं किया जा सकता है. कई बार, सैंपल्स को सही तरीके से स्टोर नहीं किया जाता है जिसकी वजह से उन सैंपल को डिसक्वालीफाई कर दिया जाता है. ज्यादातर सैंपल का सीटी कम होता है. इसके अलावा वैश्विक स्तर पर सिक्वेंसिंग के लिए किट की कमी के कारण भी जांच प्रभावित होती है.
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अधिक संख्या, कम संसाधन
देश में अब तक जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए 2 लैब कर्नाटक में और करीब 10 लैब पूरे भारत में है. इन लैबों में पहुंचने वाले सैंपलों की संख्या बढ़ती जा रही है. कर्नाटक की लैब में पड़ोसी राज्यों आंध्रा प्रदेश, तमिलनाडु से भी सैंपल आते हैं.
डॉ सुनील कुमार ने कहा कि, देश में जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए ऐसी और लैब स्थापित करने की जरुरत है. यह लैब्स कोविड के बाद भी काफी उपयोगी रहेंगी. डॉ सुनील कुमार के अनुसार, जिनोम सिक्वेंसिंग के माध्यम से वैक्सीन ले चुके लोगों में संक्रमण की संख्या, इम्युन सिस्टम, संक्रमण का सोर्स, पुनःसंक्रमित और अन्य कारण जो कि पब्लिक हेल्थ इश्यू से संबंधित हैं उनका अध्ययन किया जा सकता है. जिनोम सिक्वेंसिंग से ना सिर्फ वेरिएंट की पहचान होती है बल्कि महामारी से संबंधित निगरानी में जिनोम सिक्वेंसिंग से बेहतर मदद मिल सकती है.
कीमत
फिलहाल, अगर कोई व्यक्ति अपनी इच्छा से जिनोम सिक्वेंसिंग कराना चाहता है तो उसे 10 से 20 हजार रुपए का भुगतान करना होता है. वहीं अगर किसी लैब में जिनोम सिक्वेंसिंग के लिए पर्याप्त उपकरण की आवश्यकता होती है तो उसे डेढ़ करोड़ रुपए का खर्च आता है.
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Tags: Coronavirus, Omicron
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