कुछ ही राज्य प्रदूषण प्राधिकरण पर्यावरणीय सूचना सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करा रहे हैं: CSE
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नयी दिल्ली. सेंटर फॉर साइंस ऐंड इन्वाइरन्मेंट (सीएसई) द्वारा किये गये एक विश्लेषण के मुताबिक सिर्फ कुछ ही राज्य प्रदूषण नियंत्रण प्राधिकरण पर्याप्त रूप में पर्यावरणीय एवं शासन सूचना सार्वजनिक रूप से उपलब्ध करा रहे हैं. ‘पारदर्शिता सूचकांक: सार्वजनिक खुलासे पर प्रदूषण नियंत्रिण बोर्डों की रेटिंग’’शीर्षक वाले अध्ययन में 29 राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों और देश भर की छह प्रदूषण नियंत्रण समितियों द्वारा आंकड़ों के खुलासे के कार्य का आंकलन किया गया है.
सीएसई की औद्योगिक प्रदूषण इकाई के कार्यक्रम निदेशक निवित कुमार यादव ने कहा, ‘‘वायु अधिनियम की धारा 17 (सी) और जल अधिनियम के तहत एक प्रावधान वायु एवं जल प्रदूषण के बारे में सूचना एकत्र करना और उनका प्रसार करना तथा इसकी (प्रदूषण की) रोकथाम व नियंत्रण करना है. लेकिन यह कभी-कभार किया जाता है.’’
अध्ययन की लेखिका श्रेया वर्मा के मुताबिक सीएसई ने दो स्रोतों से आंकड़े एकत्र किये—राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों/प्रदूषण नियंत्रण समितियों की वेबसाइटों से तथा उनकी वार्षिक रिपोर्ट से. अध्ययन के तहत पिछले चार-पांच वर्षों (2016-2021) के दौरान इन बोर्डों या समितियों द्वारा साझा की गई सूचना का मूल्यांकन किया गया और 25 संकेतकों का उपयोग किया गया, जो साझा की गई सूचना के प्रकार एवं मात्रा का व्यापक आकलन उपलब्ध कराते हैं.
हरित थिंक टैंक ने कहा कि सिर्फ 12 राज्यों ने अपनी वेबसाइटों पर नवीनतम वार्षिक रिपोर्ट साझा की. गुजरात, मध्य प्रदेश, सिक्किम, त्रिपुरा और पश्चिम बंगाल ने 2019-20 की वार्षिक रिपोर्ट साझा की है. छत्तीसगढ़, कर्नाटक, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु ने 2018-19 की वार्षिक रिपोर्ट साझा की है.
अध्ययन के मुताबिक सिर्फ पांच बोर्डों–दिल्ली, गोवा, हरियाणा, त्रिपुरा और उत्तराखंड–ने अपनी बोर्ड बैठकों का विवरण वेबसाइटों पर साझा किया है. जबकि राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की बैठक प्रति तीन महीने में कम से कम एक बार करना अनिवार्य है. सीएसई के विश्लेषण में खुलासा हुआ है कि मौजूदा प्रदूषण स्तर का संकेत देने वाले आंकड़े गायब हैं. अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादातर बोर्ड ने अपर्याप्त आंकड़े प्रदर्शित किये हैं.
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