उत्तराखंड

मणिपुर में चुनाव से पहले आई उग्रवादी घटनाओं की बाढ़, फिर भी AFSPA सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा

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नई दिल्लीः मणिपुर में विधानसभा चुनाव के लिए वोटिंग 28 फरवरी और 5 मार्च को होगी. लेकिन पांच महीने पहले से ही राज्य में उग्रवादी घटनाओं की बाढ़ आ चुकी है. पिछले साल सितंबर से लेकर इस साल फरवरी के बीच मणिपुर में 28 ऐसी घटनाएं हो चुकी हैं. ये सब ऐसे समय हो रहा है जब राज्य में सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) को हटाने की मांग जोरशोर से हो रही है. मौजूदा चुनाव में ये सबसे बड़ा मुद्दा है.

पिछले साल नवंबर में होम मिनिस्ट्री ने लोकसभा में बताया था कि वर्ष 2021 में पूरे नॉर्थ-ईस्ट में 15 नवंबर तक उग्रवाद संबंधी कुल 187 घटनाएं दर्ज की गई थीं. पूरे पूर्वोत्तर में सबसे ज्यादा आम नागरिकों की हत्याएं, सुरक्षाबलों की मौतें और उग्रवादियों के एनकाउंटर मणिपुर में हुए. जबकि इससे पहले 2019 और 2020 में ऐसी घटनाओं की संख्या काफी कम थी. सुरक्षा अधिकारी बताते हैं कि पिछले तीन साल में मणिपुर में 90 फीसदी हिंसक घटनाएं इंफाल ईस्ट और इंफाल वेस्ट में हुई हैं. इन इलाकों से 2004 में ही AFSPA हटा दिया गया था. 72 प्रतिशत विद्रोही भी इन्हीं इलाकों से पकड़े जाते हैं.

हिंसक घटनाओं में हुई बढ़ोतरी का चुनावों से सीधा संबंध
सुरक्षाबलों से जुड़े सूत्र बताते हैं कि पिछले कुछ महीनों में हिंसक घटनाओं में हुई बढ़ोतरी का चुनावों से सीधा संबंध है. 2019, 2020 में वारदातों में कमी की बड़ी वजह उग्रवादी संगठनों पर कार्रवाई और इनकी फंडिंग पर लगाम रही. 2021 में इनके अलावा कोरोना की वजह से भी कम घटनाएं हुईं. लेकिन अब फिर से इनमें बढ़ोतरी हुई है. सुरक्षा अधिकारी कहते हैं कि ऐसा करके उग्रवादी संगठन चुनावों में अपनी मौजूदगी दर्ज कराना चाहते हैं. उम्मीदवारों पर दबाव बनाना चाहते हैं ताकि कोई उनका विरोध न कर सके.

AFSPA बना सबसे बड़ा चुनावी मुद्दा
इन चुनावों में AFSPA सबसे बड़ा मुद्दा बना हुआ है. कांग्रेस पार्टी इसे खत्म करने की वकालत करती रही है. जब वह सत्ता में थी तो सात विधानसभा क्षेत्रों से इसे वापस भी ले लिया था. कांग्रेस ने केंद्र की सत्ता में आने पर AFSPA को रद्द करने का चुनावी वादा भी कर रखा है. जबकि बीजेपी के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने पिछले महीने एक इंटरव्यू में कहा था कि मणिपुर के लोग और वह खुद AFSPA के खिलाफ हैं, लेकिन इसे तभी हटाया जाएगा, जब केंद्र की सहमति होगी.

1958 में कानून बना था AFSPA
बता दें कि AFSPA को मई 1958 में पहले अध्यादेश के द्वारा लाया गया था, बाद में संसद से पारित होकर सितंबर 1958 में ये कानून बना. इसके तहत सुरक्षा बलों को ये अधिकार मिलता है वे उचित कारणों से संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकते हैं. किसी भी जगह घुसकर तलाशी ले सकते हैं. इसके अलावा अशांत क्षेत्र या disturbed area घोषित किए गए इलाकों में की गई कार्रवाई के लिए सुरक्षाबलों पर मुकदमा या अन्य कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती.

Tags: Manipur, Manipur Elections

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