हरिद्वार की पूर्व जज दीपाली शर्मा ने सेवा समाप्ति आदेश को नैनीताल HC में दी चुनौती
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नैनीताल. हरिद्वार (Haridwar) की पूर्व जज सिनियर डिविजन दीपाली शर्मा (Deepali Sharma) ने अपनी सेवा समाप्ति के आदेश को हाईकोर्ट (High Court) में चुनौती दी है. कोर्ट में दाखिल इस याचिका में दीपाली शर्मा ने कई सवाल उठाए हैं और अपने खिलाफ सभी आदेशों को निरस्त करने के साथ पद पर बहाल करने की मांग कोर्ट से की है. कोर्ट आने वाले दिनों में इस मामले पर अब सुनवाई करेगा.
दीपाली शर्मा पर आरोप है कि उन्होंने एक 14 साल की बच्ची को चाइल्ड़ लेवर की तरह रखा और उसके साथ जुल्म किया और उसके साथ मारपीट की थी. बच्ची के शरीर से निशान भी मिले थे.
इन आरोपों के चलते दीपाली शर्मा की हुई थी सेवा समाप्त…
दरअसल 10 जनवरी 2018 में हाईकोर्ट को हरिद्वार सीनियर डिवीजन जज दीपाली शर्मा के खिलाफ एक शिकायती पत्र मिला था जिसके बाद हाईकोर्ट ने 28 जनवरी 2018 को जिला जज हरिद्वार को जांच कर उचित कानूनी कदम उठाने का आदेश दिया. इस आदेश पर जिला जज ने पुलिस के साथ दीपाली शर्मा के घर पर छापा मारा तो लड़की को बरामद किया. जिस पर 20 चोटों के निशान की पुष्टि भी हुई. इस पर हरिद्वार में मुकदमा दर्ज हुआ तो हाईकोर्ट द्वारा एडीजे सुजाता सिंह को जांच अधिकारी नियुक्त कर रिपोर्ट मांगी गई.
एडीजे सुजाता सिंह द्वारा 9 जून 2020 को जांच रिपोर्ट दाखिल कर सभी आरोपों को सही पाया. 7 अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट ने जांच रिपोर्ट को सही पाते हुए 14 अक्टूबर 2020 को दीपाली शर्मा की सेवा समाप्ति के आदेश की संस्तुति कर दी. सरकार ने बाद में 20 अक्टूर 2020 को दीपाली शर्मा की सेवा समाप्त कर दी. सरकार के इस आदेश को दीपाली शर्मा ने हाईकोर्ट में चुनौती दी. याचिका में कहा गया कि जांच अधिकारी ने पक्षपात किया, क्योंकि शिकायत कर्ता व जांच अधिकारी बैच मेड़ हैं. दीपाली का कहना है कि उन्होंने अपनी पदोन्नति के लिये प्रार्थना पत्र हाईकोर्ट भेजा था, इसके चलते भी ये कार्रवाई अमल में लाई गई है. याचिका में कहा गया है कि जांच पक्षपात होने की याचिका हाईकोर्ट में अब भी विचाराधीन है और 5 सितंबर 2020 को सरकार ने क्रिमनल केस वापस ले लिये तो दूसरी कार्रवाई कैसे की जा सकती है.
याचिका में कहा गया है कि 7 अक्टूबर 2020 को हाईकोर्ट के आदेश पर मेरे प्रार्थना पत्र पर विचार नहीं किया गया, जबकि एक जज ने एकतरफा कार्रवाई पर आपत्ति दर्ज की थी. दीपाली शर्मा ने कहा है कि जो उनकी सेवा समाप्ति का आदेश 14 अक्टूबर 2020 की जारी किया गया था उसमें उनको सुनवाई के अवसर बगैर कार्रवाई की है जो प्राकृतिक न्याय व उत्तराखण्ड सरकारी सेवा अनुसाशन एंव अपील नियमावली नियम 15 के खिलाफ है. अन्तिम आदेश पारित करना गलत है. याचिका में सभी आदेशों की निरस्त करने की मांग के साथ पदोन्नति का लाभ देने की भी मांग कोर्ट से की गई है.
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