उत्तराखंड

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नैनीताल. उत्तराखंड (Uttarakhand) से माओवाद (Maoist) का खात्मा हो गया है. पुलिस का दावा है कि इनामी माओवादी भास्कर पांडे  (Bhaskar Pandey) के पकड़े जाने के बाद राज्य में माओवाद का चैप्टर क्लोज कर दिया गया है. प्रदेश में अभी तक करीब 24 माओवादियों के सरगनाओं को पुलिस ने जेल की सलाखों के पीछे भेजा है, जो राज्य में माओवाद की जड़ें मजबूत करना चाह रहे थे.

प्रदेश में माओवादियों का नाता कुमाऊं क्षेत्र में ज्यादा देखने को मिलता है. राज्य में साल 2004 में पहली बार माओवाद प्रकाश में आया था. उस समय नानक मत्था थाना क्षेत्र के जंगलों में माओवाद का आर्म ट्रेनिंग कैंप की सुचना मिली थी. जिस पर पुलिस ने पहली कार्रवाई की और कैंप को खत्म किया था. इस कार्रवाई के बाद माओवाद अल्मोड़ा, चम्पावत, पिथोरागढ़, नैनीताल और उधमसिंह नगर में सक्रिय हुआ. यहां माओवादियों ने अपना रंग दिखाना शुरू किया, जिन पर 33 मुकदमे अभी तक दर्ज हुए हैं और 24 माओवादियों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है.

माओवादियों पर पुलिस कार्रवाई

साल 2004 में 9 मुकदमे दर्ज हुए.
साल 2005 में 5 मुकदमे दर्ज हुए.
साल 2006 से 2009 तक हर साल 1 मुकदमा
साल 2014 में 6 मुकदमे.
साल 2015 से 2016 तक 2 मुकदमे हर साल
साल 2015 में 5 मुकदमे दर्ज हुए.

खीम सिंह बोरा बरेली से हुआ था गिरफ्तार

इसके साथ ही साल 2006 में जब माओवाद संगठन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी से जुदा था तो जोनल कमेटी खीम सिंह बोरा का राज्य के माओवाद में बड़ा नाम था. इसे जिसको पुलिस ने बरेली से गिरफ्तार किया था.

भाष्कर पांडे था राज्य का अंतिम माओवादी

लंबे समय से फरार चल रहे माओवादी भास्कर पांडे की गिरफ्तारी पूरे उत्तराखंड की पुलिस के लिए बहुत बड़ी चुनौती थी. इस पर 20 हजार का इनाम भी था. भास्कर पांडे पर साल 2017 में चुनाव को प्रभावित करने का आरोप था और भास्कर राज्य में अंतिम माओवादी था. इसे पकड़ने के लिए पुलिस लम्बे समय से तलाश कर रही थी. वहीं पूछताछ में एरिया कमांडर भास्कर का कहना है कि वो राज्य में माओवाद की जड़ों को एक बार फिर मजबूत करने की जिम्मेदारी उस पर थी. पुलिस की मानें तो साल 2022 के चुनाव को प्रभावित करना भी भास्कर पांडे का मकसद था.

डीजीपी अशोक कुमार के अनुसार प्रदेश के सभी माओवादियों को जेल भेज दिया गया है. हाल फिलहाल कोई भी माओवादी राज्य में नहीं है. यानि की माओवाद पर ये राज्य की बड़ी कामयाबी है.

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