सर्वोच्च न्यायालय का अहम फैसला, मनोरोगी के बयान पर दुष्कर्म के आरोपी की बरकरार रखी सजा
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दो गुरुवार को सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम फैसला सुनाया. कोर्ट ने एक मनोरोगी महिला के साथ दुष्कर्म (Rape) के दोषी को निचली कोर्ट द्वारा सुनाई गई 10 साल की सजा बरकरार रखी है. दरअसल पीड़िता ने जब दोषी के खिलाफ कोर्ट में बयान दिया था तो वह कोर्ट की भाषा नहीं पा रही थी इस वजह से कोर्ट ने पीड़िता को सवालों के जवाब या या ना में देने की इजाजत दी थी. अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने भी उसकी गवाही को विश्वसनीय मान लिया है. वहीं दूसरी तरफ आरोपी ने महिला के बयान को लेकर सवाल उठाए हैं.
36 साल की पीड़िता मानसिक रूप से 70 फीसदी अक्षम है. कोर्ट ने पीड़िता के साथ 2015 में हुई दुष्कर्म की घटना पर यह निर्णय सुनाया. निचली कोर्ट में उसकी गवाही के वक्त उसे शपथ नहीं दिलाई जा सकी थी क्योंकि वह उसका अर्थ समझने में असमर्थ थी. उत्तराखंड की कोर्ट ने आरोपी को अक्टूब 2016 में 10 साल के कारावास की सजा सुनाई थी. कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि कूट परीक्षण के दौरान पीड़िता ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री की तस्वीरों को सही ढंग से पहचाना था.
इसके बाद दोषी व्यक्ति ने मार्च 2019 में निचली कोर्ट के फैसले को उत्तराखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी थी. उसने अपील खारिज करते हुए दोषी की सजा कायम रखी थी. इसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट पहुंचा था.
पीड़िता की गवाही विश्वसनीय
फिलहाल गुरुवार को यह मामला सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एल. नागेश्वर राव व जस्टिस अनिरुद्ध बोस की बेंच ने सुना. कोर्ट ने कहा कि सबूतों में कुछ विरोधाभास है लेकिन हमारा मत है कि पीड़िता की गवाही विश्वसनीय है और उसके आधार पर आईपीसी की धारा 376 (2)(l) के तहत दोषी को सजा सुनाई जा सकती है. इस धारा के साथ मनोरोगी या शारीरिक रूप से दिव्यांग महिला के साथ दुष्कर्म के आरोपी को दंडित किया जाता है.
दोषी के वकील ने दी ये दलील
दोषी के वकील ने कहा कि आरोपों को साबित करने के लिए कोई मेडिकल सबूत नहीं है, क्योंकि एफआईआर दर्ज करने व मेडिकल कराने में देरी हुई. वकील ने यह भी दलील दी कि अभियोजन पक्ष के गवाहों के बयानों में भी विरोधाभास है. इस पर सरकारी वकील ने पीड़िता के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि यह स्पष्ट है कि यह दुष्कर्म का मामला है. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने रिकॉर्ड पर रखे गए सारे सबूतों व सामग्री को सावधानीपूर्वक देखा है. अपीलकर्ता के वकील की दलीलों पर विचार के बाद हम इस बात से सहमत नहीं हैं कि निचली कोर्ट ने सजा सुनाने में चूक की. इसके साथ ही अपील खारिज कर दी गई.
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