उत्तराखंड

अफगानिस्तान में इन 7 तालिबान नेताओं के इशारे पर चलेगा राज, कोई आतंकी तो कोई मोस्ट वांटेड

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नई दिल्ली. तालिबान के अंदरूनी फैसले और उसकी लीडरशिप को लेकर अतिवादी संगठन की तरफ से हमेशा से एक गोपनीयता बरती जाती रही है. 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान का शासन था. फिर 2001 में अमेरिकी सैनिकों ने उन्हें खदेड़ दिया था. अब जब अमेरिकी सेना लौट रही तो तालिबान ने एक बार फिर अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया है. बीते 20 वर्षों के दौरान तालिबान का एकमात्र ध्येय अफगानिस्तान पर दोबारा कब्जे का रहा है.

दूसरी बार काबुल पर कब्जे के बाद तालिबान खुद को रहम दिल दिखाने की कोशिश कर रहा है. लेकिन देश में हर रोज घट रही दर्दनाक घटनाएं उसके मूल स्वभाव को दिखा रही हैं. तालिबान की नई लीडरशिप को भी लेकर लगातार चर्चाएं जारी हैं. आइए आपको नई तालिबानी लीडरशिप के बारे में बताते हैं.

हैबतुल्लाह अखुंदजादा
अखुंदजादा तालिबान का सर्वोच्च नेता है जो समूह के राजनीतिक, धार्मिक और सैन्य मामलों पर अंतिम अधिकार रखता है. अखुंदजादा को इस्लामिक कानून का विद्वान माना जाता है. साल 2016 में अमेरिका ने एक ड्रोन हमले में तालिबान के प्रमुख अख्तर मंसूर को मार गिराया था. इसके बाद अखुंदज़ादा को मंसूर का उत्तराधिकारी बनाने का ऐलान किया गया. कहा जा रहा है कि अखुंदज़ादा की उम्र करीब 60 साल है. अखुंदजादा कंधार का एक कट्टर धार्मिक नेता है. लिहाजा कहा जा रहा है कि वो तालिबान को अपनी पुरानी सोच नहीं बदलने देगा.

अखुंदजादा को एक सैन्य कमांडर से ज्यादा एक धार्मिक नेता के तौर पर लोग जानते हैं. कहा जाता है कि अखुंदज़ादा ने ही इस्लामी सजा की शुरुआत की थी. जिसके तहत वो खुलेआम मर्डर या चोरी करने वालों को मौत की सजा सुनाता था. इसके अलावा वो फतवा भी जारी करता था. नए शासन में उसकी हैसियत देश के सुप्रीम लीडर जैसी हो सकती है.

मुल्ला गनी बरादर
मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर उन 04 लोगों में एक है, जिन्होंने 1994 में तालिबान का गठन किया था. साल 2001 में जब अमेरिकी नेतृत्व में अफगानिस्तान में फौजों ने कार्रवाई शुरू की तो वो मुल्ला बरादर की अगुवाई में विद्रोह की खबरें आने लगीं. अमेरिकी सेनाएं उसे अफगानिस्तान में तलाशने लगीं लेकिन वो पाकिस्तान भाग निकला था. इंटरपोल के मुताबिक मुल्ला बरादर का जन्म उरूजगान प्रांत के देहरावुड जिले के वीटमाक गांव में 1968 में हुआ था. माना जाता है कि उसका संबंध दुर्रानी कबीले से है. पूर्व राष्ट्रपति हामिद क़रजई भी दुर्रानी ही हैं. 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में तालिबान राज के दौरान वो कई पदों पर रहा. वो हेरात और निमरूज प्रांतों का गर्वनर था. पश्चिम अफगानिस्तान की सेनाओं का कमांडर था. अमेरिकी दस्तावेजों में उसे तब अफगानिस्तान की सेनाओं का उपप्रमुख और केंद्रीय तालिबान सेनाओं का कमांडर बताया गया था. जबकि इंटरपोल की रिपोर्ट कहता है कि वो तब अफगानिस्तान का रक्षा मंत्री भी था.

जबीउल्लाह मुजाहिद
बहुत लंबे समय तक जबीउल्लाह के बारे में कोई जानकारी नहीं मौजूद थी. कुछ रिपोर्ट्स में दावा किया गया था कि वो अमेरिकी सैनिकों और अफगानिस्तानी अधिकारियों के खुन का प्यासा है. बीस सालों के दौरान वो मीडिया से फोन या फिर टेक्स्ट मैसेज के जरिए ही बात करता रहा है. मंगलवार को मुजाहिद अफगानिस्तान के मीडिया और इनफॉर्मेशन सेंटर के डायरेक्टर की कुर्सी पर बैठा. तालिबान की प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित किया. पहली बार उसका चेहरा पब्लिक के सामने आया. नई सरकार में उसका बेहद अहम रोल रहने वाला है.

सिराजुद्दीन हक्कानी
अपने पिता जल्लालुद्दीन से हक्कानी नेटवर्क का नेतृत्व हासिल करने वाला सिराजुद्दीन हक्कानी एक ग्लोबल आतंकी है. अमेरिका ने उस पर पांच मिलियन डॉलर का इनाम रखा है. वह फैसले और कार्रवाई में अहम भूमिका निभाएगा. 2007 से ही वह UNSC के प्रस्ताव 1272 के तहत आतंकी है.

अब्दुल हकीम हक्कानी
अब्दुल हक्कानी तालिबान की शांति वार्ता टीम का हेड है. उसे अखुंदजादा का बेहद करीबी माना जाता है. 2001 के बाद से ही हक्कानी लो प्रोफाइल रहता है और पाकिस्तान में मदरसा चलाता रहा है. सितंबर 2020 में उसे अफगान शांति वार्ता का तालिबान की तरफ से चीफ बनाया गया था.

मुल्ला मोहम्मद याकूब
मुल्ला उमर का 31 साल का बेटा मुल्ला मोहम्मद याकूब तालिबान की सेना में ऑपरेशन हेड की भूमिका में है. कहा जा रहा है कि नई सरकार में उसे बड़ी जिम्मेदारी दी जा सकती है. याकूब अमेरिका के साथ हुई चर्चा में तालिबान के प्रतिनिधिमंडल या अंतर अफगान वार्ता का हिस्सा नहीं था. वह तालिबान के नेतृत्व परिषद रहबरी शुरा का हिस्सा है, जिसे क्वेटा शुरा के नाम से भी जाना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2001 में सत्ता से हटाए जाने के बाद कई सदस्य पाकिस्तान के इस शहर में रहते थे.

हसिबुल्लाह स्तानिकजाई
वो तालिबान की लोगार प्रोविंशियल काउंसिल का हेड है. फर्रादेदार अंग्रेजी बोलता है और दुनिया घूम रखी है. अफगान शांति वार्ता में वो अब्दुल हकीम हक्कानी का डिप्टी था. 1996 में उसने अमेरिका की यात्रा की थी. तब उसने बिल क्लिंटन प्रशासन से गुहार लगाई थी कि तालिबान को सरकार के तौर पर मान्यता दी जाए. तब वो कामयाब नहीं हो पाया था.

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