उत्तराखंड

‘सरकारी तालिबानी’ बोलना गलत था, हमें खालिस्तानी या पाकिस्तानी ना बोलें: राकेश टिकैत

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करनाल. हरियाणा के करनाल में मंगलवार को हुई किसान महापंचायत (Kisan Mahapanchayat) में भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) ने पहले दिए हुए अपने ‘सरकारी तालिबानी’ बयान पर सफाई दी. टिकैत ने एक समाचार चैनल से बातचीत में कहा कि ऐसे शब्द जिन पर प्रतिबंध है उनका इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. टिकैत ने कहा कि हमने जब सरकारी तालिबानी कहा तो इन्हें दर्द हुआ लेकिन संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों के लिए ऐसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए. हालांकि उन्होंने कहा कि सरकार को भी हमारे लिए खालिस्तानी-पाकिस्तानी जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए.

राकेश टिकैत ने प्रशासन की पाबंदी को लेकर सवाल किया कि क्या इंटरनेट बंद होने से लोग नहीं जा पाएंगे. उन्होंने कहा हम अधिकारियों से बातचीत कर मामले सुलझाएंगे. राकेश टिकैत ने कहा कि हम हरियाणा जाते हैं तो वहां हमें बाहरी कहा जाता है. टिकैत ने कहा कि अगर प्रधानमंत्री उत्तर प्रदेश में बाहरी नहीं हैं तो हम दूसरे राज्यों में बाहरी कैसे हो गए.

मुजफ्फरनगर महापंचायत में टिकैत ने कही थी ये बातें
इससे पहले केंद्र के तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में रविवार सुबह मुजफ्फरनगर के राजकीय इंटर कॉलेज के मैदान में भी किसान महापंचायत हुई जिसमें बड़ी संख्या में शामिल हुए. इस रैली में राकेश टिकैत ने कहा, “आज संयुक्त किसान मोर्चा ने जो फैसले लिए हैं उसके तहत हमें पूरे देश में बड़ी-बड़ी सभाएं करनी पड़ेंगी. अब यह मिशन केवल उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड का मिशन नहीं, अब यह मिशन संयुक्त मोर्चे का देश बचाने का मिशन होगा. यह देश बचेगा तो यह संविधान बचेगा. लड़ाई उस मुकाम पर आ गई है और जो बेरोजगार हुए हैं यह लड़ाई उनके कंधों पर हैं.”

उन्होंने कहा, “हमें फसलों पर एमएसपी की गारंटी चाहिए. प्रधानमंत्री ने कहा था कि 2022 में किसानों की आय दोगुनी होगी और पहली जनवरी से हम दोगुनी रेट पर फसल बेचेंगे. हम जाएंगे देश की जनता के बीच में और पूरे देश में संयुक्त किसान मोर्चा आंदोलन करेगा.”

गौरतलब है कि तीन नए कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन को नौ महीने से अधिक समय हो गया है. किसान उन कानूनों को रद्द करने की मांग कर रहे हैं. उन्हें डर है कि वे न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म कर देंगे. सरकार, जो प्रमुख कृषि सुधारों के रूप में कानूनों को पेश कर रही है, उसके साथ 10 दौर से अधिक की बातचीत, दोनों पक्षों के बीच गतिरोध को तोड़ने में विफल रही है.

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