उत्तराखंड

न्यायिक जांच रिपोर्ट: गैंगस्टर विकास दुबे पर दर्ज 65 में से 21 मुकदमों की फाइलें गायब

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1857 की क्रांति के समय सत्तीचौरा घाट (वर्तमान में नानाराव घाट) पर स्वतंत्रता सेनानियों और अंग्रेज़ी फौजों के बीच हुए संघर्ष में सभी अंग्रेज सैनिकै मारे गए थे. जबकि, उनकी स्त्रियां व बच्चे सुरक्षित बच गए थे, जिन्हें नाना के आदेश पर पहले सवादाकोठी में रखा गया था, लेकिन बाद में उन्हें बीबीधर (वर्तमान में नानाराव पार्क का वह हिस्सा जहां तात्या टोपे की मूर्ति लगी है) ले जाया गया, जहां पर उन्हें हुसैनी खानम के नेतृत्तव में उन्हें रखा गया था, लेकिन 16-17 जुलाई की रात ऐसा नरसंहार हुआ, जिसे देखकर अंग्रेज अफ़सरों का रूह तक कांप उठी थी और यूरोप तक इस नरसंहार की गूंज सुनाई दी थी.

महामारी फैलने की आशंका के चलते सवादाकोठी से बीबीघर लाई गईं थी अंग्रेज़ी महिलाएँ व बच्चे

इस बारे में इतिहासकार अनूप शुक्ला बताते हैं कि सत्तीचौरा की घटना के बाद 63 स्त्रियों व 124 बच्चों को सुरक्षित बचा लिया जाता है, जिन्हें नाना के आदेश पर सवादाकोठी (वर्तमान में वार मेमोरियल कालोनी) लाया जाता है. यहां पर उनकी तबियत ख़राब हो जाती है व हैज़ा जैसी महामारी फैलने की आशंका जताई जा रही थी, जिसके फलस्वरूप उन्हें बीबीघर लाया जाता है. इतिहासकार शुक्ला ने बताया कि बीबीघर एक अंग्रेज अफ़सर ने अपनी प्रेयसी के लिए बनवाया था. बीबीघर 15 यार्ड में फैला हुआ एक प्रांगण था, जिसमें दो बड़े कमरे व बाकी के छोटे-छोटे कमरे थे. चूंकि नाना साहब बीबीघर के सामने मौजूद ओल्ड कानपुर होटल में ठहरते थे, इसलिए उन्होंने इस भवन को सुरक्षित समझा. यहां वह अपनी महिला सैनिक हुसैनी खानम को बीबीघर की ज़िम्मेदारी सौंपकर निकल गए थे.

हुसैनी खानम के आदेश पर कसाइयों ने किया था नरसंहार

इतिहासकार शुक्ला ने बताया कि कानपुर पर क़ब्ज़ा करने के बाद नाना निश्चिंत हो जाते हैं और एक जुलाई से पेशवाई, दरबार आदि में व्यस्त हो जाते हैं इधर जुलाई के पहले सप्ताह में जनरल हैवलाक के नेतृत्व में अंग्रेज़ी फौजें कानपुर पर दोबारा क़ब्ज़ा करने के लिए इलाहाबाद (वर्तमान में प्रयागराज) से चल पड़ती हैं. 15 जुलाई को उसकी सेना पांडु नदी पार कर कानपुर के क़रीब आ जाती हैं. जब नाना को इसकी ख़बर लगती है तो वह सलाहकारों के साथ मिलकर फ़ौजों को रोकने की योजना बनाते है. इसी बीच नाना की सेना का सिपाही सरवर खां हुसैनी खानम को हैवलाक की ओर से इलाहाबाद में किए गए नर संहार के बारे में बताता है, जिससे उत्तेजित होकर वह बीबीघर में मौजूद सभी अंग्रेज़ी महिलाओं व बच्चों का कत्लेआम करने की योजना बनाती है. इसके लिए वह पहले अपने पहरेदारों को आदेश देती है. जब वह इसके लिए तैयार नहीं होते हैं तो 16-17 जुलाई की रात वह गंगू मेहतर व इतवारिया कसाई को बुलाकर उनका कत्ल करा देती है. इसके बाद अगले दिन सुबह उनकी लाशें बीबीघर में ही मौजूद कुएं में डाल दी जाती हैं. इसी दिन अंग्रेज़ी फौज कानपुर पर दोबारा क़ब्ज़ा कर लेती हैं व कलेक्टर शेरर को कानपुर की कमान सौंपी दी जाती है.

बीबीघर नरसंहार देख हक्के-बक्के रह गए थे कल्केटर शेरर

कलेक्टर शेरर ने अपने लेख हैवलाक्स मार्च टू कानपुर में लिखा है कि जब वह मिस्टर ब्यूस के साथ बीबीघर नरसंहार का जायजा लेने पहुंचे थे, तो उन्हें वहां के लोगों के कराहने की आवाज आ रही थी. हालांकि इस लेख में उन्होंने यह भी कहा है कि बीबीघर नरसंहार के बारे में काफ़ी बढ़ा चढ़ाकर बताया गया है. इसके अलावा 13 जुलाई 1859 को इलाहाबाद के कमिश्नर मि.थर्नहिल को भेजी गई रिपोर्ट में उसने इस घटना को असत्य बताया है.

न्यूज 18 लोकल के लिए आलोक तिवारी की रिपोर्ट

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