उत्तराखंड

जानिए भारतीय हॉकी टीम के कोच हाथरस के पीयूष दुबे की कहानी, 3 साल से देश के लिए परिवार से दूर

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हाथरस. दुनियाभर के खेल प्रेमियों की नजर इन दिनों टोक्यो ओलम्पिक (Tokyo Olympic) पर लगी हुई है. इस बार भारतीय हॉकी टीम (Indian Hockey Team) ने 41 साल बाद भारत को पदक दिलाकर इतिहास रचा है. उत्तर प्रदेश के हाथरस (Hathras) के लिये गौरव की बात यह है कि इस हॉकी टीम के कोच पीयूष दुबे (Coach Piyush Dubey) सादाबाद के गांव रसमई के रहने वाले हैं. गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पीयूष दुबे को कॉल कर जीत की बधाई दी. गांव रसमई में भी जश्न का माहौल है. दुबे परिवार भी गर्व महसूस कर रहा है.

हॉकी टीम के मुख्य कोच पीयूष दुबे के पिता गवेन्द्र सिंह दुबे भूमि सरंक्षण विभाग में अधिकारी थे और माता जी भी अध्यापिका थीं. प्रयागराज में तैनाती के दौरान बड़े भाई श्रवण कुमार दुबे की सलाह पर 1994 में पीयूष ने हॉकी खेलना शुरू किया था. उन्हें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (SAI) कोच प्रेमशंकर शुक्ला का भी मार्गदर्शन मिला. कुछ ही दिन में वह टीम के कप्तान बन गये. बाद में वह प्रयागराज विवि और प्रदेश स्तर पर भी खेले.

पियूष ने 2003 में पटियाला से कोच की परीक्षा पास की और उन्हें पटियाला में नियुक्ति मिली. 2004 में पीयूष दुबे वहां के केन्द्रीय विद्यालय की हॉकी टीम के कोच बने. इसके बाद  2008 में प्रयागराज विवि विद्यालय की टीम की कोच के रूप में कार्य किया. यहां से उन्होंने साई के कोच की परीक्षा में टॉप किया और साई की सोनीपत शाखा का उन्हें कोच बनाया गया. यहां से कई खिलाड़ियों को उन्होंने नेशनल, इंटरनेशनल के लिये तैयार किया.

पियूष दुबे के गांव में जश्न का माहौल

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Hathras: भारतीय हॉकी टीम के कोच पियूष दुबे के गांव में जश्न का माहौल

उनकी अगुवाई में ही पहली बार साई की टीम ने राष्ट्रीय स्तर पर हॉकी में पदक जीता. इससे पहले साई की टीम ने कोई पदक नहीं जीता था. लगातार बेहतरीन प्रदर्शन करने और बेहतर प्रशिक्षण के चलते उन्हें भारतीय हॉकी टीम के कोच के रूप में काम करने का मौका मिला. 2019 से वह लगातार भारतीय हॉकी टीम के कोच हैं. उनकी अगुवाई में ही 2020 टोक्यो ओलम्पिक में बेहतरीन प्रदर्शन कर भारत को 41 साल बाद पदक दिलाया है.

स्वामी विवेकानंद से प्रेरणा लेते हैं पीयूष

पीयूष दुबे का परिवार बताता है कि वह स्वामी विवेकानंद से प्रेरित ही नहीं बल्कि उनके आदर्शों को उन्होंने अपने जीवन में आत्मसात किया है. कोच के पद पर रहते हुये भी वह मांसाहार, लहसून, प्याज से परहेज रखते हैं. त्याग का गुण भी उन्हें उनके आदर्शों से मिला है. तीन साल से ज्यादा समय हो गया वह पत्नी, बच्चियों से नहीं मिले हैं. उनका परिवार सोनीपत में रहता है. वह लेखनी के धनी होने के साथ-साथ संगीत में भी रूचि रखते हैं.

दुबे के खून में है खेल

पीयूष दुबे के दादा खेमकरण सिंह दुबे बेहतरीन रेसलर थे. पिता गवेन्द्र सिंह और श्रवण कुमार दुबे भी रेसलर रहे हैं, जबकि चाचा उदयवीर सिंह कुशल तैराक हैं. भाई लखन सिंह दुबे भी खेल से जुड़े हुये हैं. इसलिए उन्होंने हॉकी को ही भविष्य बना लिया था. खून में खेल होने के चलते ही आज हॉकी टीम ने उनकी अगुवाई में चार दशक बाद ओलम्पिक में इतिहास रचा है, जबकि उनका भतीजा जगत युवराज दुबे भी मुक्केबाज है.

आईएएस बनने का था सपना

गुरूग्राम के मशहूर उद्योगपति भाई श्रवण कुमार दुबे को आदर्श मानने वाले पीयूष दुबे अपने पिता गवेन्द्र सिंह दुबे की प्रेरणा से आईएएस बनकर देश की सेवा करना चाहते थे. लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था. यूपीएससी की प्रारम्भिक परीक्षा में सफलता के बाद भी उन्होंने हॉकी को ही चुना. उन्होंने अर्थशास्त्र से मास्टर डिग्री भी हासिल की है. बड़े भाई बताते हैं कि उन्होंने जो भी परीक्षा, टेस्ट दिया उसमें हमेशा टॉप किया.’

गांव में मनाया गया जश्न

पीयूष दुबे के पैतृक गांव रसमई में हॉकी  टीम की सफलता का जश्न मनाया गया. गांव के बेटे की अगुवाई में हॉकी टीम ने ओलम्पिक में पदक जीत इतिहास जो रचा है. लखन दुबे की अगुवाई में हुये कार्यक्रम में शानदार जश्न मनाया गया. मिठाई बांटकर ढोल, नगाड़ों की धुन पर लोग खूब थिरके. इस दौरान लखन दुबे, उदयवीर दुबे, दिनेश दुबे, देवकीनंदन, ललित गोपाल, राहुल कुमार शामिल रहे. गुजरात से गांव के रवि ठाकुर ने भी उनकी लिये बधाई पेश की है.

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