उत्तराखंड

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हरिद्वार. जो लोग अपने परिजनों की अस्थियां हरिद्वार में गंगा में विसर्जित करना चाहते हैं, अब उन्हें व्यक्तिगत तौर पर वहां पहुंचने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी! उत्तराखंड में संस्कृत भाषा के प्रचार एवं विस्तार के लिए बनी सरकारी संस्था संस्कृत अकादमी जो नया प्लान बना रही है, उसके मुताबिक अब लोग कोरियर या किसी और ज़रिये से अपने परिजनों की अस्थियां हरिद्वार पहुंचा सकेंगे और उनका विसर्जन अकादमी अपने स्तर पर पूरे रीति रिवाज के साथ करेगी और इस अस्थि विसर्जन रीति को आप लाइव स्ट्रीमिंग के ​ज़रिये घर बैठे अपने परिवार के साथ देख सकेंगे. लेकिन इस नए आइडिया से हरिद्वार का पुरोहित समुदाय खासा नाराज़ आ रहा है.

अकादमी के सचिव आनंद भारद्वाज की मानें तो अकादमी ने करीब पांच महीने पहले जो संकल्प लिया था, उसके तहत ऐसा प्रस्ताव बनाया गया है, जिसे ‘मुक्ति योजना’ का नाम दिया गया है. एक रिपोर्ट की मानें तो भारद्वाज ने कहा, ‘तीन करोड़ से ज़्यादा अप्रवासी भारतीयों की ज़रूरत को ध्यान में रखकर इस आइडिया पर काम किया गया. मौजूदा व्यवस्था में इतनी बड़ी संख्या में हिंदू वंचित रह जाते हैं.’ हालांकि अभी इस योजना की लॉंचिंग की तारीख और इसके अनुसार शुल्क आदि तय नहीं किए गए हैं.

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वर्चुअल ​अस्थि विसर्जन प्लान का विरोध हरिद्वार के पुरोहित समुदाय ने किया है.

‘मुक्ति योजना’ पर क्या है असंतोष?
उत्तराखंड संस्कृत अकादमी के इस प्रस्ताव को लेकर ​हरिद्वार के पुरोहित समुदाय ने नाराज़गी और चेतावनी ज़ाहिर कर दी है. हर की पौड़ी घाट की प्रशासक संस्था गंगा सभा के प्रमुख प्रदीप झा के हवाले से रिपोर्ट में कहा गया, ‘सरकार धीरे धीरे हमारे अधिकार छीन रही है. अस्थि विसर्जन का हक भी हमसे छीना गया, तो देश भर के हिंदू संगठनों व पार्टियों के साथ मिलकर सभी पुरोहित विरोध और प्रदर्शन करेंगे.’

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‘अकादमी बीच में न आए’
झा ने साफ तौर पर कहा, ‘गंगा सभा के अलावा किसी अन्य व्यक्ति या संस्था द्वारा यदि अस्थि विसर्जन करवाया गया, तो गंगा सभा उसका विरोध करेगी. अस्थि विसर्जन का मामला एक परिवार और उसके कुल पुरोहित के बीच का होता है, इसमें किसी तीसरे का दखल बर्दाश्त नहीं किया जाएगा.’ दूसरी तरफ, इस विवाद पर सभा के महासचिव तन्मय वशिष्ठ ने कहा कि अकादमी हिंदू श्रद्धालुओं और पुरोहितों के बीच मध्यस्थ बनने की कोशिश कर रही है, जिसे मंज़ूर नहीं किया जा सकता.

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