उत्तराखंड

OBC आरक्षण को लेकर मोदी सरकार ने 15 दिन के अंदर लिए दो बड़े फैसले, जानें Inside Story

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नई दिल्ली. बीते 15 दिनों के अंदर मोदी सरकार (Modi Government) ने ओबीसी आरक्षण (OBC Reservation) को लेकर दो बड़े फैसले लिए हैं. पहला, 29 जुलाई, 2021 को मोदी सरकार ने मेडिकल शिक्षा (Medical Education) के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में ऑल इंडिया कोटे के तहत अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए 27 प्रतिशत और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों (EWS) के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया था. दूसरा, गुरुवार को ही ओबीसी संशोधन बिल (OBC Amendment Bill) संसद के दोनों सदनों से पास हो गया. अब राष्ट्रपति के यहां से मंजूरी मिलने के बाद यह बिल भी अमल में आ जाएगा. इस बिल के पास हो जाने के बाद अब राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश अपनी जरूरतों के हिसाब से ओबीसी की लिस्ट तैयार कर सकेंगे, लेकिन आरक्षण के 50 प्रतिशत की सीमा को किसी भी हालत में नहीं बढ़ा सकेंगे. ऐसे में राज्य सरकारें या केंद्रशासित प्रदेश किसी जाति को ओबीसी कोटे में शामिल करती है तो पहले से ओबीसी में जो जातियां शामिल हैं वह विरोध भी कर सकती है. पीएम मोदी ने कहा है कि संविधान का 127वां संशोधन विधेयक 2021 का दोनों सदनों में पारित होना महत्वपूर्ण क्षण है. बता दें कि इससे पहले देश के नए स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया (Health Minister Mansukh Mandaviya) ने भी मेडिकल शिक्षा में ओबीसी के लिए आरक्षण का प्रावधान किया था. आइए समझते हैं कि हाल के दिनों में ओबीसी को लेकर मोदी सरकार ने क्या-क्या कदम उठाए हैं और कैसे उनके मंत्रिमंडल के सहयोगियों ने इसे पूरा किया है.

मेडिकल शिक्षा में आरक्षण का कोटा कैसे बढ़ाया गया
सबसे पहले बात करते हैं कि दो सप्ताह पहले देश के स्वास्थ्य मंत्री मनसुख मांडविया के उस घोषणा पर, जिसे आने वाले दिनों में मेडिकल शिक्षा पर दूरगामी प्रभाव पड़ सकते हैं. अब स्नात्तक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में ऑल इंडिया कोटे के तहत ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान किया गया है. इसके साथ ही मांडविया ने 2023 से नेशनल एग्जिट टेस्ट (एनईएक्सटी) शुरू करने का निर्णय लेकर यह भी स्पष्ट संदेश दिया है कि मोदी सरकार डॉक्टरों की गुणवत्ता से कोई समझौता नहीं करेगी.

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मांडविया ने स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार संभालने के 21 वें दिन ही दो बड़े और बहुप्रतीक्षित निर्णय ले लिए.

ऐसे निर्णयों में अब टालमटोल की कोई गुजाइंश नहीं
बता दें कि स्वास्थ्य मंत्री का कार्यभार संभालने के 21 वें दिन ये दो बड़े और बहुप्रतीक्षित निर्णय लेकर मांडविया ने अपने मंत्रालय के अधिकारियों को भी ये संकेत दिया है कि उनके मंत्रालय में अब ऐसे निर्णयों को लेने में टालमटोल की कोई गुंजाइश नहीं रहेगी. बहुत दिनों से मेडिकल शिक्षा के स्नात्तक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में ऑल इंडिया कोटे के तहत ओबीसी के लिए आरक्षण की मांग उठ रही थी, लेकिन इस बारे में कोई अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा था. जब 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग यानी ईडब्लयूएस के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था की तो यह मांग भी उठने लगी कि मेडिकल पाठ्यक्रमों में ऑल इंडिया कोटे के तहत ईडब्ल्यूएस से आने वाले छात्रों को भी आरक्षण मिलना चाहिए. इन दोनों वर्गों के लिए आरक्षण की मांग को हर कोई सही तो मान रहा था, लेकिन इस बारे में अंतिम निर्णय नहीं हो पा रहा था.

नए मंत्रिमंडल का मूल मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’
विश्वस्त सूत्रों का कहना है मांडविया ने अधिकारियों को स्पष्ट निर्देश दिया कि हमें प्रधानमंत्री मोदी के मूल मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के रास्ते पर चलते हुए ओबीसी और ईडब्ल्यूएस वर्ग के लिए ऑल इंडिया कोटे के तहत आरक्षण देने का रास्ता जल्दी से जल्दी साफ करना है. उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में यह सरकार देश के हर वर्ग के वास्तविक सशक्तिकरण के लिए काम कर रही है और हमें हर वैसा निर्णय लेना है जिससे सामाजिक या आर्थिक तौर पर पिछड़े हुए वर्गों को ताकत मिलती हो ताकि वे विकास की मुख्यधारा में शामिल हो सकें. उन्होंने अधिकारियों को यह भी कहा कि देश को जो डॉक्टर मिलें, वे बिल्कुल योग्य हों, इसके लिए हमें नेशनल एग्जिट टेस्ट पहले से निर्धारित 2023 की समय सीमा में ही शुरू करना है.

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प्रधानमंत्री मोदी के मूल मंत्र ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के रास्ते पर लिए गए फैसले. (फाइल फोटो)

अधिकारियों को भी निर्णय लेने की आजादी
सूत्रों की मानें तो मांडविया ने अधिकारियों को यह स्पष्ट तौर पर कहा था कि अगर ये दोनों निर्णय लेने की वजह से उन्हें कोई राजनीतिक नुकसान होता है तो वे इसके लिए भी तैयार हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा कि उनकी प्राथमिकता गुणवत्ता से बगैर कोई समझौता किए सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्गों का सशक्तिकरण है. इस बात से मंत्रालय के अधिकारियों को यह लग गया कि उनका मंत्री हर हाल में वर्षों से लटके इस विषय पर निर्णय लेना चाहता है और अब इस मामले में कोई बहानेबाजी नहीं चलेगी.

ऐसे लिया गया मेडिकल शिक्षा में आरक्षण का निर्णय
मांडविया ने जिस दिन ये निर्देश अधिकारियों को दिए उसके अगले दिन से ही उन्होंने अधिकारियों से इस बारे में प्रगति का फॉलोअप लेना शुरू किया. स्वास्थ्य मंत्रालय के सूत्र बताते हैं कि मांडविया के दबाव में मंत्रालय के अधिकारी इन दोनों विषय पर हरकत में आए और उन्होंने ऑल इंडिया कोटे के तहत ओबीसी और ईडब्ल्यूएस को आरक्षण देने की स्पष्ट कार्ययोजना मंत्री के सामने रखी. इसके साथ ही 2023 से नेशनल एग्जिट टेस्ट कराने की कार्ययोजना भी मंत्री के सामने रखी गई. मांडविया ने तुरंत ही इन दोनों बहुप्रतीक्षित निर्णयों को हरी झंडी दे दी.

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ओबीसी संशोधन बिल संसद के दोनों सदनों से पास हो गया. (File Photo)

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गौरतलब है कि स्नात्तक और स्नात्तकोत्तर के मेडिकल पाठ्यक्रमों में ऑल इंडिया कोटा का प्रावधान उच्चतम न्यायालय के एक ऐतिहासिक फैसले के जरिए साल 1986 में हुआ था. पूरे देश में राज्य सरकारों और केंद्र सरकार के जितने भी मेडिकल कॉलेज हैं वे सभी स्नात्तक स्तर के पाठ्यक्रमों में कुल सीटों का 15 प्रतिशत ऑल इंडिया कोटे के तहत देते हैं. जबकि, स्नातकोत्तर के स्तर पर इन सभी कॉलेजों में 50 प्रतिशत सीटें ऑल इंडिया कोटे के दायरे में आती हैं. साल 1988 से ही स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय इन सीटों का आवंटन करता आया है. जब यह योजना शुरू हुई थी तो इसमें किसी सामाजिक वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था, लेकिन साल 2006 में अभय नाथ केस में उच्चतम नायालय ने पहली बार ऑल इंडिया कोटे के तहत अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति को आरक्षण देने का फैसला सुनाया था.

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