उत्तराखंड

नैनो यूरिया को लेकर मोदी सरकार का मास्टर प्लान तैयार, अब ऐसे GameChanger साबित होगा यह तकनीक

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नई दिल्ली. पिछले दिनों ही मोदी सरकार (Modi Government) ने किसानों (Farmers) को लेकर बड़ा ऐलान किया था. केंद्र सरकार के रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने नैनो यूरिया (Nano Urea) की टेक्नोलॉजी ट्रांसफर के लिए दो एमओयू (MOU) इफको और नैशनल फर्टिलाइजर्स लिमिटेड यानी एनएफएल (IFFCO and NFL) और इफको और राष्ट्रीय केमिकल्स ऐंड फर्टिलाइजर्स लिमिटेड (IFFCO and NCFL) के बीच कराया था. केंद्र सरकार के इस निर्णय के बाद अब देश में नैनो यूरिया का उत्पादन और बढ़ जाएगा. एक्सपर्ट्स का दावा है कि नैनो यूरिया के इस्तेमाल से आने वाले दिनों में बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों के किसानों को पहले की तुलना में आय कई गुना बढ़ जाएंगे. साथ ही यूरिया की कालाबजारी से भी छुटकारा मिलेगा.

यूरिया की कालाबाजारी से भी मिलेगा छुटकारा
बता दें कि देश के कई जिलों में किसानों को पीक सीजन में अपेक्षा से 50 से 100 रुपए तक प्रति बोरी ज्यादा देकर यूरिया खरीदनी पड़ती थी. कई राज्यों में रेट को लेकर विवाद के कारण दूरदराज के इलाकों में खाद मिलने में काफी दिक्कत तक होती थी, लेकिन अब नैनो यूरिया की नई तकनीक के जरिए यूरिया की किल्लत से छुटकारा मिलेगा. साथ ही बर्बादी से भी निजात मिलेगी. कई राज्यों में तो कालाबाजारी पर भी लगाम लगेगा.

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भारत जैसे कृषि प्रधान देश के लिए यह जरूरी है कि नैनो यूरिया का उत्पादन और बढ़े.

क्यों नैनो यूरिया के उत्पादन पर जोर दे रही केंद्र सरकार
बीते कुछ दिनों से मोदी सरकार बड़े पैमाने पर नैनो यूरिया के उत्पादन पर जोर दे रही है. पहले जो पारंपरिक यूरिया की बोरी जितने दामों में मिलती थी उससे नैनो यूरिया के दाम काफी कम तो होंगे ही साथ ही अब यूरिया लिक्विंड में मिला करेगा. कृषि एक्सपर्ट्स चंदन कुमार के मुताबिक नैनो यूरिया के इस्तेमाल से मिट्टी की सेहत सुधरेगी. साथ ही जल प्रदूषण और वायु प्रदूषण भी कम होगा. नैनो यूरिया एक ईको-फ्रेंडली उत्पाद है. नैनो यूरिया पारंपरिक यूरिया के मुकाबले धीरे-धीरे नाइट्रोजन रिलीज करता है, जिससे पौधों को बेहतर पोषण मिल पाती है. इस फैसले से किसानों को कई तरह के फायदे होंगे. गांव-देहात में अब यूरिया के परिवहन और भंडारण में मदद मिलेगी ही साथ ही बर्बाद होने का खतरा भी अब इसमें न के बराबर ही होगा. नैनो यूरिया के आधे लीटर के बोतल से उतने खेत की उर्वरक जरूरत पूरी हो पाएगी जितनी खेत की उर्वरक जरूरत अभी 45 किलो की पारंपरिक यूरिया बोरी से होती है.

पारंपरिक यूरिया से कितना अलग है नैनो यूरिया
बता दें कि पिछले हफ्ते रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय ने एमओयू साइन के दौरान कई दावे किए थे. मंत्रालय के मुतबिक, ‘नैनो यूरिया के इस्तेमाल से यूरिया सब्सिडी पर होने वाला खर्च भी आधा हो जाएगा. नैनो यूरिया के इस्तेमाल से किसानों को सीधे 10 प्रतिशत की आर्थिक बचत होगी. पारंपरिक यूरिया की बोरी 267 रुपये में मिलती है, लेकिन नैनो यूरिया की बोतल 240 रुपये में मिल रही है. इसके अलावा यूरिया के परिवहन और भंडारण पर भी होने वाला किसानों का खर्च भी कम होगा. इससे कुल मिलाकर किसानों को कई स्तर पर आर्थिक बचत होगी. इससे किसानों की आय दोगुना करने का लक्ष्य पूरा होने की दिशा में प्रगति होगी.’

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खेती के मौसम में देश में उर्वरकों की कालाबाजारी खासकर बिहार और यूपी जैसे राज्यों में आम बात है.  (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)

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गौरतलब है कि खेती के मौसम में देश में उर्वरकों की कालाबाजारी खासकर बिहार और यूपी जैसे राज्यों में आम बात है. आए दिन खाद की किल्लत और कालाबाजारी को लेकर खबरें आती रहती हैं. खाद के अघोषित मूल्यों को लेकर किसान, फुटकर विक्रेता और थोक कारोबारी सब नाराज रहते हैं. खासकर फुटकर और थोक विक्रेता से एमआरपी पर उर्वरक बेचेंगे, लेकिन उनका तर्क होता है कि वह दूसरे राज्यों से एमआरपी से ज्यादा दाम में जब खरीदते हैं तो एमआरपी पर कैसे बेचें. शायद मोदी सरकार के इस गेमचेंजर तकनीक से किसानों की तकदीर जल्द ही बदलने वाली है.

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