उत्तराखंड

एक ट्रिक ने बदली सिरमोली गांव की किस्मत, महामारी भी नहीं तोड़ सकी गांववालों की हिम्मत

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कोरोना महामारी (Corona Epidemic) का प्रभाव तकरीबन हर क्षेत्र पर पड़ा है. पर्यटन क्षेत्र (Tourist Sector) में तो इसका व्यापक असर पड़ा. जिन लोगों की रोजी-रोटी सीधे तौर पर पर्यटकों से जुड़ी थी, उन पर तो और भी बुरा प्रभाव पड़ा. उत्तराखंड में पंचाचुली पर्वत पर बसे मुनस्यारी जिले के सिरमोली गांव (Sarmoli Village at Munsiari District in Uttarakhand) के लोगों की जिंदगी भी कोविड-19 की वजह से बदल गई. महामारी से पहले यहां पर्यटकों की भीड़ उमड़ती थी. यहां की खुशहाल जिंदगी पर कोरोना कहर बनकर टूटा. लॉकडाउन की वजह से पर्यटक आना बंद हो गए. महिलाओं द्वारा संचालित होमस्टे सुने हो गए. होमस्टे (Homestay) के संचालन में हिमालयन आर्क (Himalayan Ark) संस्था की महत्वपूर्ण भूमिका है.

महामारी ने बदली जिंदगी

जब कोविड-19 की वजह से यहां के लोगों की आय पर असर पड़ा तो, हिमालयन आर्क ने अपना सारा ध्यान पर्यटन से डिजिटल अपस्किलिंग पर स्तानांतरित कर दिया, जिसके तहत क्षेत्र के पारंपरिक शिल्प और दीर्घकालिक खाद्य सुरक्षा को पुनर्जीवित किया गया. यह गांव फिर से अपने पैरों पर खड़ा हो गया.

होमस्टे से गांव का हुआ था कायापलट

एक वक्त में सिरमोली गांव के लोग रोजगार के लिए पलायन करते थे. मगर होमस्टे की शुरुआत के बाद पलायन थम गया. यहां के रहने वाले इस बदलाव का श्रेय सामाजिक कार्यकर्ता और पर्वतारोही मल्लिका विर्दी को देते हैं. वो इस गांव में साल 1992 में आईं. और फिर यहीं की होकर रह गईं. उस वक्त इस गांव की स्थिति बेहद खराब थी. गरीबी थी, भूखमरी थी. महिलाएं घरेलू हिंसा का शिकार बनती थीं. मल्लिका विर्दी ने यहां की स्थिति को बदलने की ठनी.

गांव का कायापलट वर्ष 2004 में शुरू हुआ जब विर्दी ने हिमालय आर्क होमस्टे अभियान शुरू किया. यह कार्यक्रम महिलाओं द्वारा ही संचालित है. पर्यटकों को इस कार्यक्रम के तहत गांव के नजरिए से प्रकृति की खूबसूरती दिखाई जाती है. उनका रहना और खाना भी गांव में समुदाय के बीच होता है. पर्यटकों के लिए भांग की चटनी, मड़ुआ रोटी (रागी) और पहाड़ी राजमा जैसे स्थानीय उपज से पकाया जायकेदार भोजन भी उपलब्ध कराया जाता है.

मल्लिका विर्दी का कहना है, ‘आर्क हिमालय कार्यक्रम महिलाओं द्वारा ही संचालित होता है. इससे होने वाली 95 फीसदी आमदनी उन्हीं के पास जाती है. दो फीसदी खर्च पर्यावरण संरक्षण पर होता है जिसमें जंगल, झील और नदी संरक्षण शामिल है. बचे हुए पैसों का इस्तेमाल महिलाओं की ट्रेनिंग और दैनिक कामों पर किया जाता है.’

परंपरा ने बचाई जिंदगी

महामारी से पहले सबकुछ ठीक चल रहा था, अचानक आई इस मुसबित ने लोगों की आजीविका के प्राथमिक स्रोत को छीन लिया. मल्लिका का कहना है कि पर्यटन हमारी ग्रामीण जीवनशैली को यात्रियों के साथ साझा करने के बारे में था, मगर कोरोना ने गहरा आघात पहुंचाया. शुरुआती झटके बाद हिमालयन आर्क की गैर-लाभकारी शाखा ‘हिमाल प्रकृति’ ने सीएसआर फंडिग और व्यक्तिगत दान द्वारा यहां के लोगों के वैकल्पिक स्रोतों को विकसित करने में तेजी से काम करना शुरू किया.

कृषि और खाद्य सुरक्षा पर नए सिरे से ध्यान देने के साथ ही कई होमस्टे के मालिकों और गाइडों को ग्रीन हाउस बनाने की ट्रेनिंग दी गई. इसके लिए संस्था की तरफ से शिमला मिर्च, ककड़ी, मेथी और ब्रोकोली जैसे बीज वितरित किए गए. साथ ही यहां के पारंपरिक शिल्पों को फिर से पुनर्जीवित किया गया, जिनसे उनकी आय में फिर से सुधार होने लगी है.

Tags: Uttarakhand Tourism, Village

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