उत्तराखंड

OPINION: राजनीतिक परिवारों में विरासत की जंग, हर जगह है उत्तराधिकार की लड़ाई!

[ad_1]

नई दिल्ली. परिवारवाद, वंशवाद एवं भाई-भतीजावाद भारतीय राजनीति का कटु सत्य है. लिहाजा राजनीतिक परिवार में उत्तराधिकार के लिए संघर्ष लाजिमी है. राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (Lalu Yadav) के परिवार में उत्तराधिकार की लड़ाई इसका ताजा उदाहरण है. पिता की विरासत पर पकड़ को लेकर लालू के दोनों बेटे तेजप्रताप (Tej Pratap Yadav) और तेजस्वी यादव (Tejashwi Yadav) की लड़ाई परिवार के बाहर आ गयी है. तेजस्वी और तेजप्रताप पहली बार मीडिया में एक-दूसरे को नसीहत देते हुए दिख रहे हैं. व्यक्ति केंद्रित, परिवार आधारित राजनीतिक पार्टी (Political Party) में विरासत की लड़ाई ज्यादा देखने को मिलती है. भारतीय राजनीति (Indian Politics) में इसके अनेक उदाहरण हैं.

पकड़ बनाने की जद्दोजहद
राजनीतिक प्रेक्षकों के अनुसार परिवार आधारित पार्टी में विरासत की लड़ाई तब तेज हो जाती है जब वहां कई पावर सेंटर बन जाते हैं. जैसे ही सुप्रीमो की पकड़ ढीली होती है वैसे ही परिवार के अन्य सदस्यों की राजनीतिक महत्वाकांक्षा जाग जाती है, फिर सब अपने हिसाब से राजनीति करना शुरू कर देते हैं. जब तक लालू यादव पूर्णत: स्वस्थ थे, राजनीति में सक्रिय थे चाहे वो जेल में ही क्यों न हों तब तक स्थिति सामान्य थी. लेकिन जैसे ही वो राजनीतिक परिदृश्य से थोड़ा ओझल हुए परिवार की लड़ाई बाहर आ गयी.

लोक जनशक्ति पार्टी (एलजेपी) में भी ऐसा ही हुआ. रामविलास पासवान की मृत्यु के बाद कुछ ही दिन में पार्टी दो फाड़ हो गयी. चाचा पशुपति पारस ने अपने भतीजे चिराग पासवान को चुनौती दे दी और पार्टी का विभाजन हो गया. हरियाणा में भी चौटाला परिवार के मुखिया ओम प्रकाश चौटाला को जब शिक्षक भर्ती मामले में जेल की सजा हो गयी तब परिवार की लड़ाई सरेआम हो गयी. चौटाला के दोनों बेटों अजय चौटाला और अभय चौटाला के मतभेद सामने आ गये और विरासत की लड़ाई तेज हो गयी. स्थिति यहां तक आ गयी की अजय चौटाला ने अपनी अलग पार्टी बना ली.

Chirag Paswan चिराग पासवान, Pashupati Kumar Paras पशुपति कुमार पारस, Delhi High Court

पिछले वर्ष अक्टूबर में रामविलास पासवान के निधन के बाद लोक जनशक्ति पार्टी पर अधिकार को लेकर उनके भाई पशुपति पारस और बेटे चिराग पासवान आमने-सामने आ गए हैं (फाइल फोटो)

सुप्रीमो के बाद पार्टी में कौन?
विशेषकर व्यक्ति आधारित क्षेत्रीय दलों में ‘सुप्रीमो के बाद कौन’ का सवाल अक्सर विवाद का रूप ले लेती है. क्योंकि दूसरे स्तर की नेतृत्व का विकास ऐसे दलों में नहीं हो पाता है. पार्टी निरंतर एक ही व्यक्ति के इर्द-गिर्द घूमती रहती है. लालू यादव जब चारा घोटाला के कारण 1997 में जेल गये तो उन्होंने अपनी पत्नी राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बना दिया. फिर बाद में अपने बेटे तेजस्वी यादव को उपमुख्यमंत्री और तेजप्रताप को स्वास्थ्य मंत्री बना दिया. कोशिश हमेशा यही रही कि सत्ता की चाभी परिवार में ही रहे, बाहर न जा पाये.

यही हाल उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी का भी रहा. मुलायम सिंह की राजनीतिक विरासत को लेकर चाचा और भतीजा आमने-सामने आ गये. मुलायम के भाई शिवपाल सिंह यादव और अखिलेश यादव के बीच जमकर विवाद हुआ. झगड़ा इतना बढ़ गया कि 2017 के विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल यादव ने अपनी अलग पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) बना डाली.

महाराष्ट्र में भी बाल ठाकरे की पार्टी शिवसेना में विरासत को लेकर विद्रोह हुआ. बाला ठाकरे ने वर्ष 2004 में जब अपने बेटे उद्धव को शिवसेना का अध्यक्ष घोषित कर दिया तो भतीजे राज ठाकरे नाराज हो गये और 2006 में पार्टी से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद उन्होंने अपनी अलग पार्टी महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना बना ली.

दक्षिण भारत भी अछूता नहीं
दक्षिण भारत के कई राज्य में व्यक्ति आधारित क्षेत्रीय दलों का ही प्रभुत्व रहा है. इसलिए उत्तराधिकार की लड़ाई वहां भी देखने को मिलती है. तमिलनाडु में करुणानिधि की द्रविड़ मुनेत्र कडगम (डीएमके) में सत्ता
का संघर्ष उनके दो बेटों एम.के स्टालिन और अलागिरी के बीच रहा. वर्ष 2016 में करुणानिधि ने स्टालिन को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया तो अलागिरी ने विद्रोह कर दिया. नतीजतन 2018 में उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया.

आंध्र प्रदेश में वर्ष 1995 में तेलगूदेशम पार्टी के तत्कालीन सर्वेसर्वा एन.टी रामाराव को सीएम के पद से हटाकर उनके दामाद चंद्रबाबू नायडू खुद मुख्यमंत्री बन गये थे. उस समय नायडू ने आरोप लगाया था कि एन.टी रामाराव के बदले उनकी दूसरी पत्नी लक्ष्मी पार्वती शासन चला रही हैं. उन्होंने पार्टी के अंदर सास-ससुर के खिलाफ एक अलग गुट बना लिया और उन्हें पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया. इसके बाद मुख्यमंत्री पद से एनटीआर को इस्तीफा देना पड़ा था.

शायद यही वजह है कि व्यक्ति विशेष आधारित पार्टियां इन्हीं वजहों से राष्ट्रीय फलक पर अपनी मौजूदगी दर्ज नहीं करा पातीं हैं. वो अपने ही वजूद को बचाने में लगी रह जाती हैं.

पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.

[ad_2]

Source link

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *