पारसी समुदाय में महिलाओं से भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट में याचिका, केंद्र और धार्मिक संगठन से मांगा जवाब
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नई दिल्ली. पारसी समुदाय में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र सरकार, पारसी धार्मिक संगठन और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्रालय को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है. एक पारसी महिला और उसके नाबालिग बेटे ने याचिका दाखिल कर कहा है कि अपने धर्म से बाहर शादी करने की वजह से उसे प्रताड़ना झेलनी पड़ रही है.
मुंबई की रहने वाली सनाया दलाल ने अपनी याचिका में कहा है कि उसके पति हिंदू हैं और उन्होंने स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी की है. इस वजह से सनाया और उसके बेटे को पारसी समुदाय से अलग कर दिया गया है. महिला ने कहा, ‘उनके बेटे को पारसी धार्मिक संगठन की सदस्यता नहीं दी जा रही. पारसी समुदाय के मुहल्ले में रहना भी मुश्किल हो रहा क्योंकि समुदाय ने उन्हें खुद से अलग कर दिया है.’
याचिका में कहा गया है कि पारसी महिलाओं को अपने धर्म से बाहर शादी करने का ये फल दिया जाता है और ये पारसी महिलाओं के अपनी पसंद से शादी करने के अधिकार का हनन है. इसकी मूल वजह बंबई हाई कोर्ट का एक फैसला है जो पारसी धार्मिक संगठन को ये अधिकार देता है कि वो किसी को भी अपने समुदाय से अलग कर सकते है. सनाया का कहना है कि ये उनके मूल अधिकारों का हनन है इसलिए सुप्रीम कोर्ट इस पर विचार करे.
याचिका में कहा गया है कि पारसी समुदाय के लोग खुद को आर्यों का वंशज मानते हैं. उनका ये मानना है कि जब कोई पारसी समुदाय का व्यक्ति किसी गैर-पारसी समुदाय से शादी करता है तो उसके बच्चे का खून अलग हो जाता है. यानी वो आर्य नही रह जाता है. सनाया ने अपनी याचिका में इस मान्यता को गैर-संवैधानिक बताया है क्योंकि भारत का संविधान किसी को वंश, जाति या धर्म के नाम पर भेदभाव करने की इजाजत नहीं देता.
याचिका में ये भी कहा गया है कि ये भेदभाव सिर्फ पारसी महिलाओं के साथ होता है, जबकि पारसी पुरुष अगर किसी गैर-पारसी महिला से शादी करते है, तो उन्हें समाज से अलग नहीं किया जाता. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर केंद्र सरकार और पारसी धार्मिक संगठन से जवाब मांगा है. अब इस मामले की अगली सुनवाई चार हफ्तों के बाद होगी.
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