उत्तराखंड

पंजाब: MSP खरीद पर बन रहे रिकॉर्ड, फिर भी विरोध जारी; आंदोलन में हुई राजनीति की दस्तक

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नई दिल्ली. राजधानी दिल्ली (Delhi) की सरहदों पर किसान आंदोलन जारी है. पंजाब में किसान न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) को लेकर केंद्र सरकार पर निशाना साध रहे हैं. वहीं, मौजूदा आंकड़े राज्य में एमसएपी की अलग ही तस्वीर पेश कर रहे हैं. राज्य में फसल खरीद के बीते दो सीजन में एमएसपी पर अब तक की सबसे ज्यादा खरीद देखी गई है. तीन कानूनों और इन्हें वापस लेने की मांग को लेकर सरकार और किसानों के बीच जारी तकरार में अब राजनीतिक चर्चाएं भी शामिल होती जा रही हैं.

पंजाब के बाघ पुराना के पास आराम कर रहे अजीत सिंह ने धान लगाया था. वो कहते हैं कि उन्होंने गेहूं और धान की पिछली दो पूरी फसलें सरकार को एमएसपी पर बेची हैं. इसके बाद भी वो मोगा जिले में तीन नए कानूनों के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों की अगुआई कर रहे हैं. वो कहते हैं कि इन्हें खत्म किया जाना चाहिए. पंजाब में 2020-21 सीजन में एमएसपी पर धान की करीब 30 फीसदी खरीदी पंजाब से ही की गई थी.

2021-22 का सीजन देखें, तो पंजाब ने 132 लाख मीट्रिक टन के साथ देश में एमएमसपी पर गेहूं खरीदी में अब तक 32 फीसदी का योगदान दिया है. यह आंकड़ा देश में सबसे ज्यादा है. एक वरिष्ठ केंद्रीय अधिकारी ने बताया, ‘नए कृषि कानून आने के बाद से पंजाब में दोनों सीजन में एमएसपी पर खरीद बढ़ी है. नए कानूनों ने किसानों को अपना उत्पादन ऊंची कीमतों पर खुले बाजारों में बेचने का विकल्प दिया है. वहीं, एमएसपी का विकल्प हमेशा रहेगा.’

हालांकि, इस बात से सिंह इससे खासे प्रभावित नहीं हैं. वो कहते हैं, ‘केंद्र एमएसपी पर कोई कानून क्यों नहीं लाता है कि कोई भी निजी पक्ष हमारी फसल को एमएसपी से कम पर नहीं खरीद सकेगा और एमएसपी हमेशा रहेगी? ऐसा जब तक नहीं होता, तब तक ये नए कृषि कानून हमारी चिंता का कारण बने रहेंगे.’

लुधियाना के पास मक्की की बुवाई करने वाले अमरीक सिंह कहते हैं कि मक्की की एमएसपी 1850 रुपये हैं, लेकिन निजी बाजारों में यह केवल 800 रुपये में बिकती है. उन्होंने कहा, ‘जब निजी लोग इसमें शामिल हो जाएंगे, तो ऐसा ही गेहूं और धान के साथ होगा.’

हालांकि, किसान गेहूं और धान पर केंद्र की तरफ से बढ़ाई गई एमएसपी की तारीफ करते हैं, लेकिन पंजाब में विद्युत संकट का ठीकरा प्राइवेट पावर प्लांट्स पर फोड़ते हैं. वे यह बताना चाहते हैं कि निजी दखल परेशानियों का कारण है. जगरांव के मिथु सिंह कहते हैं, ‘अकाली सरकार ने निजी पार्टियों के साथ बिजली के समझौते किए और कीमतें हम चुका रहे हैं. हम कैसे कृषि कानूनों के मामले में केंद्र पर भरोसा कर लें.’ वे बताते हैं कि उन्हें पूरे खेत में धान बोने के लिए पर्याप्त बिजली और पानी नहीं मिलता.

यहां दिखती है राजनीति की झलक

अब बातें उठ रही हैं कि किसान आंदोलन राज्य की राजनीति में दबकर रह जाएगा. एक बड़े किसान नेता गुरनाम सिंह चारुनी ने कहा था कि उन्हें एक पार्टी बनानी चाहिए और 2022 का पंजाब चुनाव लड़ना चाहिए. उनके इस बयान से अन्य किसान समूहों ने दूरी बना ली थी. हालांकि, सभी राजनीतिक दल अपने समर्थन में काम करने के लिए किसान आंदोलन की मदद कर रहे हैं. साथ ही वे किसानों को लुभा रहे हैं और आंदोलन और उनकी मांग में साथ देने का वादा कर रहे हैं.

मंडी गोविंदगढ़ के पास लुधियाना जाने वाले हाईवे पर वरिष्ठ किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल के कांग्रेस और अरविंद केजरीवाल के साथ बड़े-बड़े होर्डिंग देखे जा सकते हैं. एक वरिष्ठ किसान नेता ने न्यूज18 से बातचीत में कहा, ‘चुनाव से पहले किसान समूहों के अलग-अलग मत हैं. कुछ का कहना है कि किसानों को चुनाव का पूरी तरह बहिष्कार करना चाहिए, चारुनी जैसे कुछ का कहना है कि नया राजनीतिक दल बनाना चाहिए. जबकि, कुछ कह रहे हैं कि किसान समूहों को निर्दलीय उम्मीदवारों का समर्थन करना चाहिए.’

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चंडीगढ़ में बीजेपी के नेता बताते हैं कि कैसे राकेश टिकैत जैसे नेताओं का चुनाव के दौरान पश्चिम बंगाल जाना और लोगों को बीजेपी को वोट नहीं देने की अपील करना इसकी राजनीतिक मंशाओं को उजागर करता है. इधर, शिरोमणि अकाली दल मालवा क्षेत्र के गांवों में पैठ बनाने में परेशानी का सामना कर रहे हैं. क्योंकि यहां किसान शिअद को संसद में पास हुए किसान कानूनों के पक्ष के रूप में देखते हैं. वहीं, कांग्रेस अपने आप फायदा लेने की तैयारी में है, लेकिन आम आदमी पार्टी भी यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि उन्हें भी किसान मुद्दे का लाभ हो.

मालवा क्षेत्र में न्यूज18 से बातचीत में ज्यादातर किसान अपना मत सामने नहीं रख रहे हैं. वे कह रहे हैं कि अभी कहना काफी जल्दी होगा कि वे अगले साल जनवरी में किसे वोट देंगे. ज्यादातर किसानों का कहना है, ‘हमें एक ऐसी सरकार चाहिए, जो किसान कानूनों को खत्म कर सके.’

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