उत्तराखंड

ज्‍वैलर्स से किस्‍तों में सोना खरीदना कितना सुरक्षित, बता रही हैं कंज्‍यूमर फॉरम की रिटायर्ड जज

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नई दिल्‍ली. सोने-चांदी की कीमतों में भारी उछाल के कारण आभूषण खरीदना लोगों के लिए मुश्किल होता जा रहा है. वहीं कोरोना की वजह से चीजें अव्‍यवस्थित हो जाने के कारण भी सोने-चांदी की मांग पर भी फर्क पड़ा है. यही वजह है कि आज बड़ी संख्‍या में ज्‍वैलर्स और ज्‍वैलरी कंपनियां उपभोक्‍ताओं के लिए गोल्‍ड डिपोजिट स्‍कीम्‍स लेकर आई हैं और लोगों से किस्‍तों में सोना खरीदने के तमाम फायदे बता रही हैं.

कंज्‍यूमर फॉरम की रिटायर्ड जज और कंज्‍यूमर अवेकनिंग मिशन चलाने वाली डॉ. प्रेमलता ने न्‍यूज18 हिंदी से बातचीत में बताया कि कोरोना के मामले कम हो जाने के बाद अचानक फिर से ज्‍वैलर्स की इन स्‍कीमों की ओर ग्राहकों का रुझान बढ़ रहा है. उनके पास ही तमाम उपभोक्‍ता आ रहे हैं जो इस तरह निवेश करने के बारे में जानकारी ले रहे हैं.

डॉ. प्रेमलता कहती हैं कि हाल ही में मुंबई, चेन्‍नई सहित गुजरात में कई ज्‍वैलर्स के ऐसी गोल्‍ड डिपोजिट स्‍कीमें लागू करने और फिर डिफॉल्‍टर होने की खबरों के बाद उपभोक्‍ताओं के लिए यह निवेश फायदे से ज्‍यादा घाटे का सौदा बनता जा रहा है. यहां तक कि अगर लोग ऐसी स्‍कीमों में निवेश करते हैं तो कानूनन वे उपभोक्‍ता भी नहीं कहलाते हैं जिससे कि किसी भी फ्रॉड या धोखे की स्थिति में वे कंज्‍यूमर कमीशन में जा सकें.

ये हैं ज्‍वैलर्स की गोल्‍ड स्‍कीम्‍स

पूर्व जज बताती हैं कि आजकल छोटे से बड़े ज्‍वैलर्स और ज्‍वैलरी कंपनियां अपने ग्राहकों को प्रलोभन दे रही हैं. कंपनियां कहती हैं कि उनकी सालाना गोल्‍ड डिपोजिट स्‍कीम में अगर वे 11 महीने तक एक तय रकम की किस्‍त देते हैं तो 12वें महीने की किस्‍त कंपनी देगी और जितना भी पैसा इकठ्ठा होगा उसका वे सोना खरीद सकेंगे. इससे लोगों को ये फायदा बताया जाता है कि वे 11 महीने के पैसे में 12 महीने के पैसे से सोना ले सकेंगे. खास बात है कि जो भी पैसा जमा होता है लोगों को वह किसी भी परिस्थिति में नकद में नहीं मिलता. उन्‍हें उस पैसे से सोना ही खरीदना पड़ेगा. इसके साथ ही जो भी सोने का भाव होगा उस हिसाब से सोना मिलेगा.

आरबीआई की गाइडलाइंस के हिसाब से नहीं करती ये स्‍कीम काम

डॉ. प्रेमलता कहती हैं कि इस तरह की गोल्‍ड डिपोजिट स्‍कीम्‍स का न कहीं रजिस्‍ट्रेशन होता है और न ही सोना या सोने के आभूषण ग्राहक के सामने होते हैं. ये सिर्फ एक भरोसे पर आधारित स्‍कीम है जो ग्राहक ज्‍वैलर्स पर करता है. यही वजह है कि किसी प्रकार की कानूनी लिखा-पढ़ी या नियम कायदे न होने के चलते, कोई बीमा न होने के चलते इसमें पैसा निवेश करने वाले उपभोक्‍ता संरक्षण नियम के अनुसार उपभोक्‍ता नहीं कहलाते हैं.

इसके साथ ही इस प्रकार का निवेश डिपॉजिट स्‍कीम के तहत भी नहीं आता है क्‍योंकि ऐसी स्‍कीमों के नियम-कायदे होते हैं. एक संस्‍था या व्‍यक्ति इसे मैनेज करता है. साथ ही ये स्‍कीम इस नियम का भी पालन नहीं करतीं जिसमें ब्‍याज दर ये रिजर्ब बैंक ऑफ इंडिया की गाइडलाइन के अनुसार हो. इन गाइडलाइन के अनुसार साढ़े 12 फीसदी से ज्‍यादा ब्‍याज कोई भी कंपनी या बैंक नहीं दे सकती लेकिन जिस तरह किस्‍त पर सोना रखने की ये स्‍कीमें काम कर रही हैं उनमें साढ़े 12 फीसदी कहीं बहुत ज्‍यादा ब्‍याज का भरोसा दिया जाता है और ग्राहकों को मिलता भी है.

वे कहती हैं कि इस प्रकार के निवेश पर आरबीआई ने अपने हाथ खड़े कर दिए हैं ऐसे में ये डिपॉजिट स्‍कीम कानूनी भी नहीं हैं. यह भरोसे का मामला है.

अगर पैसा डूबे तो कर सकते हैं ये उपाय

डॉ. प्रेमलता कहती हैं कि इस प्रकार की स्‍कीमों में पैसा लगाने के बाद डूबने की गुंजाइश भी होती है. ऐसे में अगर ग्राहकों के साथ ऐसा मामला हो जाए और उनके पैसे डूबने लगें तो उसे वापस दिलवाने के लिए अभी तक कोई अथॉरिटी नहीं है. हालांकि निवेशक कुछ उपाय कर सकते हैं.

. पहला य‍ह कि इस प्रकार पैसा डूबने या ज्‍वैलर्स के डिफॉल्‍टर होने पर आप अपने पास मौजूद पैसा जमा कराने के सबूत के आधार पर सिविल कोर्ट में मुकदमा दायर कर सकते हैं या एफआईआर कर सकते हैं. हालांकि दोनों स्थितियों में सामने वाला व्‍यक्ति सामने होना चाहिए, उसका कुछ अता-पता होना चाहिए. इन मामलों में होता ये है कि ज्‍वैलर्स दुकानें बंद कर निकल जाते हैं. अगर कोर्ट जाएंगे तो आपको पता देना होगा कि कोर्ट किसे नोटिस दे.

. दूसरा माध्‍यम ये है कि अगर ग्राहक के पास ज्‍वैलर्स का पता नहीं है तो उसको लेकर नोटिस अखबार में दे सकते हैं. हालांकि यहां भी मामला आसान नहीं होता. इसमें भी अंत में पता चाहिए होगा.

. इस हिसाब से यह समझ सकते हैं कि इस प्रकार का कोई भी निवेश वैध नहीं है. लिहाजा अपने रिस्‍क पर अगर कोई इसमें पैसा जमा करना चाहता है तो कर सकता है.

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