उत्तराखंड

तालिबान का उदय भारत और पूरे क्षेत्र के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा करता है, राजनाथ सिंह ने ऑस्ट्रेलिया से कहा

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नई दिल्ली. रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने शुक्रवार को अपने ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष पीटर डटन से कहा कि तालिबान का उदय भारत और क्षेत्र के लिए गंभीर सुरक्षा चिंताएं पैदा करता है क्योंकि जिन आतंकवादी समूहों का अफगानिस्तान में ठिकाना है, उन्हें अपनी गतिविधियां बढ़ाने के लिए और सहयोग मिल सकता है.

सरकारी सूत्रों ने बताया कि वार्ता के दौरान, सिंह ने यह भी कहा कि अफगानिस्तान के भू-भाग का इस्तेमाल किसी अन्य देश को धमकाने या हमला करने के लिए नहीं किया जाना चाहिए और इस बात पर जोर दिया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अफगानिस्तान पर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी )के प्रस्ताव 2593 का कार्यान्वयन सुनिश्चित करने के लिए हर संभव कोशिश करनी चाहिए.

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सूत्रों ने बताया कि भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अफगानिस्तान में तालिबान के सत्ता पर कब्जा करने के बाद जम्मू-कश्मीर में सुरक्षा स्थिति को लेकर संभावित निहितार्थों पर चिंता व्यक्त की है क्योंकि अफगानिस्तान से केंद्र शासित प्रदेश में आतंकवादी गतिविधियों के फैलने की आशंका है. यह बातचीत भारत और ऑस्ट्रेलिया के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच होने वाली पहली ‘टू-प्लस-टू’ वार्ता से एक दिन पहले हुई. ऑस्ट्रेलियाई विदेश मंत्री मारिस पायने और डटन ‘टू-प्लस-टू’ वार्ता के लिए शुक्रवार को यहां पहुंचे.

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सूत्रों ने बताया कि डटन के साथ वार्ता में सिंह ने तालिबान की हुकूमत में मानवाधिकारों के उल्लंघन और महिलाओं, बच्चों और अल्पसंख्यक समुदायों के अधिकारों के दमन पर भारत की चिंताओं से अवगत कराया. सूत्रों ने बताया कि अफगान संकट पर विस्तार से चर्चा हुई और इस पर दोनों पक्षों के विचारों में समानता दिखी. उन्होंने यह भी बताया कि सिंह ने भारत की अध्यक्षता में 30 अगस्त को स्वीकृत किये गए यूएनएससी प्रस्ताव को लागू करने की जरूरत को लेकर भी दृढ़ता से बात रखी.

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प्रस्ताव में मांग की गई थी कि अफगान क्षेत्र का इस्तेमाल किसी भी देश को धमकाने या हमला करने या आतंकवादियों को पनाह देने और प्रशिक्षित करने और आतंकवादी हमलों की योजना या वित्त पोषण के लिए नहीं किया जाना चाहिए. सूत्रों के मुताबिक, भारत और चीन के बीच पूर्वी लद्दाख सीमा विवाद का भी वार्ता में संक्षिप्त उल्लेख हुआ और भारतीय पक्ष ने बताया कि नई दिल्ली बातचीत के माध्यम से इस मुद्दे को शांतिपूर्ण ढंग से हल करने के लिए प्रतिबद्ध है.

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मीडिया को जारी बयान में सिंह ने चर्चा को ‘सार्थक और व्यापक’ बताते हुए कहा कि विचार-विमर्श में द्विपक्षीय रक्षा सहयोग के साथ-साथ क्षेत्रीय मुद्दों पर भी चर्चा हुई. उन्होंने कहा, “हम दोनों भारत-ऑस्ट्रेलिया व्यापक रणनीतिक साझेदारी की पूरी क्षमता को साकार करने के लिए संयुक्त रूप से काम करने के इच्छुक हैं.” सिंह ने कहा कि दोनों देशों के बीच साझेदारी ‘स्वतंत्र, खुले, समावेशी और नियम-आधारित हिंद-प्रशांत क्षेत्र के हमारे साझा दृष्टिकोण’ पर आधारित है. उन्होंने कहा, “ऑस्ट्रेलिया और भारत की क्षेत्र में शांति, विकास और व्यापार के स्वतंत्र प्रवाह, नियम-आधारित व्यवस्था और आर्थिक विकास में जबरदस्त हिस्सेदारी है.”

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सिंह ने कहा, “हमारी आज की चर्चा हमारे द्विपक्षीय रक्षा सहयोग और सैन्य भागीदारी के विस्तार, रक्षा संबंधी सूचना की साझेदारी को बढ़ाने, उभरती रक्षा प्रौद्योगिकियों में सहयोग और साजो-सामान को लेकर आपसी समर्थन पर केंद्रित है.” उन्होंने मालाबार अभ्यास के पिछले दो संस्करणों में ऑस्ट्रेलिया की भागीदारी का भी उल्लेख किया. सिंह ने कहा कि दोनों पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि सैन्य उपकरणों के सह-विकास और सह-उत्पादन के लिए द्विपक्षीय सहयोग के मौके हैं और उन्होंने रक्षा क्षेत्र में भारत की उदार प्रत्यक्ष विदेशी निवेश नीतियों का लाभ उठाने के लिए ऑस्ट्रेलियाई उद्योग को आमंत्रित किया.

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सिंह ने कहा, “मैंने मंत्री डटन को आत्मनिर्भर भारत की दिशा में हमारे हालिया प्रयासों और भारत में बढ़ते नवाचार पारितंत्र से अवगत कराया. हमने रक्षा विज्ञान और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में एक साथ काम करने के अवसरों पर चर्चा की.” उन्होंने कहा कि भारत पूरे क्षेत्र की सुरक्षा और विकास के लिए ऑस्ट्रेलिया के साथ एक मजबूत साझेदारी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है. सिंह ने कहा, “मैं भारत-ऑस्ट्रेलिया रक्षा साझेदारी को और अधिक ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए आपके साथ काम करने के लिए उत्सुक हूं.”

पिछले कुछ वर्षों में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच रक्षा और सैन्य सहयोग बढ़ा है. पिछले साल जून में, भारत और ऑस्ट्रेलिया ने अपने संबंधों को एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी तक बढ़ाया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तथा उनके ऑस्ट्रेलियाई समकक्ष स्कॉट मॉरिसन के बीच एक ऑनलाइन शिखर सम्मेलन के दौरान साजो- समान की सैन्य ठिकानों तक पारस्परिक पहुंच के लिए एक ऐतिहासिक समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे.

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