उत्तराखंड

…तो इंसान को सुअर का दिल लगाने वाला पहला डॉक्टर भारतीय होता, जानें असम के शख्स की दिलचस्प कहानी

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गुवाहाटी.  वैश्विक स्तर पर सबसे पहले मानव में सुअर का दिल प्रत्यारोपित करने की ख्याति भले ही अमेरिका (America)  के नाम हो, लेकिन अमेरिकी चिकित्सकों की सफलता से 25 साल पहले ही एक भारतीय चिकित्सक ने यह प्रयोग कर लिया था. यदि असम (Assam) के चिकित्सक डॉ. धनीराम बरुआ ने अपने शोध के नतीजों को समीक्षा के लिए पेश किया होता और असाधारण ऑपरेशन से पहले जरूरी मंजूरी ली होती तो, यह उपलब्धि भारत के नाम होती. डॉ. बरुआ ने 1997 में असंभव लगने वाली उपलब्धि हासिल की. उन्होंने सुअर के दिल और अन्य अंगों का मानव में ‘सफलतापूर्वक’ प्रत्यारोपण कर दिया, लेकिन उन्होंने अपने शोध नतीजों और सर्जरी प्रक्रिया को वैज्ञानिक समीक्षा के लिए पेश करने से इनकार कर दिया.

अपने इस हठ के कारण डॉ. बरुआ को ना केवल वैश्विक ख्याति से हाथ धोना पड़ा, बल्कि उन्हें गिरफ्तारी का भी सामना करना पड़ा. बरुआ ने जिस मरीज में सुअर के दिल का प्रत्यारोपण किया था, उसकी सात दिनों के अंदर मौत हो गई. गुवाहाटी के प्रमुख हृदय रोग विशेषज्ञ और सर्जन डॉ. ए. गोस्वामी ने कहा, ‘ डॉ. बरुआ ने शायद अपने समय से पहले सोचा था, लेकिन उन्हें नियमों के अनुरूप चलना चाहिए था. लोगों का जीवन दांव पर होता है, इसिलए हर किसी को सही प्रक्रिया (शोध नतीजों की समीक्षा और वास्तविक प्रत्यारोपण से पहले अनुमति लेना) से गुजरना होता है.’

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डॉ. गोस्वामी ने कहा कि हृदय समेत अन्य महत्वपूर्ण सर्जरी पर शोध में वर्षों लगते हैं और लगातार विकसित होते रहते हैं. गोस्वामी ने कहा, ‘जिन अमेरिकी चिकित्सकों ने इस प्रक्रिया को अब अंजाम दिया, उन्हें डॉ. बरुआ की तुलना में शेध करने के लिए 25 साल अधिक समय मिला. इसके अलावा 1997 में असम में चिकित्सा सुविधाएं, आज के अमेरिका की तुलना में काफी प्रारंभिक स्तर की थीं.’

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डॉ. बरुआ ने सुअर के हृदय को जनवरी 1997 में 32 वर्षीय एक पुरुष रोगी में प्रत्यारोपित किया था, जिसके हृदय में छेद था. उन्हें सर्जरी करने में 15 घंटे लगे और वह सफल प्रतीत हो रही थी. हालांकि सात दिन बाद कई संक्रमणों से रोगी की मृत्यु हो गई. इसके कारण डॉ. बरुआ पर अपर्याप्त शोध करने और सर्जरी शुरू करने से पहले अधिकारियों से जरूरी अनुमति नहीं लेने का आरोप लगाया गया. इसके बाद डॉ. बरुआ और इसमें शामिल दो अन्य लोगों को अंग प्रत्यारोपण अधिनियम का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया था.

बरुआ के सफल प्रत्यारोपण के सनसनीखेज दावे के वक्त पूरे घटनाक्रम को कवर करने वाले गुवाहाटी के वरिष्ठ पत्रकार मृणाल तालुकदार ने कहा, ‘पत्रकार के रूप में हमारा सवाल यह था कि क्या उनके निष्कर्षों की समीक्षा की गई थी, मैंने उनसे बार-बार यही पूछा और वह टालते गए. हमारा सवाल चिकित्सा की बजाय कानूनी प्रक्रिया से जुड़ा था.’ फिलहाल डॉ. बरुआ सोनापुर स्थित अस्पताल परिसर में रहते हैं, जहां उन्होंने प्रत्यारोपण ऑपरेशन किया था, लेकिन कुछ समय से उनकी तबीयत ठीक नहीं है.

Tags: America, Assam

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