उत्तराखंड

नवाब मलिक की कहानीः कबाड़ बेचने से कैबिनेट मंत्री तक का सफर

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मुंबई. महाराष्ट्र (Maharashtra) की राजनीति में उठापटक जारी हैं. सत्ता पक्ष और विपक्ष पक्ष के बीच आरोप प्रत्यारोप का दौर चल रहा है, और इन सबके केंद्र में हैं. नवाब मलिक (Nawab Malik). एनसीपी नेता और महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) सरकार में अल्पसंख्यक, उद्यम और कौशल विकास मंत्री. मलिक एनसीपी (NCP) के राष्ट्रीय प्रवक्ता और मुंबई नगर अध्यक्ष भी हैं. आर्यन खान केस में नवाब मलिक खासे एक्टिव रहे और एनसीबी अधिकारी समीर वानखेड़े (Sameer Wankhede) और उनके परिवार पर लगातार निशाना साधते रहे. 2 अक्टूबर को गिरफ्तारी के बाद आर्यन खान (Aryan Khan) को 26 दिनों बाद जमानत मिली. लेकिन इस दरम्यान पूरा घटनाक्रम नाटकीय तरीके से बदला है. पिछले 1 महीने में नवाब मलिक (Nawab Malik) ने महाराष्ट्र की राजनीति में अपने दबदबे का एहसास पूरे देश को करा दिया है. लेकिन नवाब मलिक की कहानी… मुंबई से शुरू नहीं होती है, ये शुरू होती है यूपी के बलरामपुर से –

नवाब मलिक का ताल्लुक यूपी के बलरामपुर जिले से हैं. उनके परिवार के पास अच्छी खेती बाड़ी और कारोबार था. परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी थी. नवाब के पिता का नाम मोहम्मद इस्लाम मलिक था और नवाब मलिक के जन्म से पहले मुंबई पहुंच गए थे, लेकिन अपने पहले बेटे के जन्म के लिए वे वापस यूपी आए. नवाब मलिक का जन्म 20 जून 1959 को यूपी के बलरामपुर में उतरौला तालुका के एक गांव में हुआ था. नवाब मलिक के जन्म के बाद उनके पिता एक बार फिर मुंबई लौटे. मलिक परिवार के पास मुंबई छोटे और बड़े दोनों तरह के काम धंधे थे. परिवार के पास एक होटल भी था. साथ ही परिवार कबाड़ के काम लगा हुआ था.

शादी और पढ़ाई
21 साल की उम्र में नवाब मलिक ने महजबीन से शादी की. मलिक के दो बेटे और दो बेटियां हैं. बेटों का नाम फराज और आमिर है, जबकि बेटियों का नाम नीलोफर और सना है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक नवाब मलिक की प्राथमिक शिक्षा सेंट जोसेफ इंग्लिश स्कूल से शुरू होने वाली थी, लेकिन पिता के दोस्तों और रिश्तेदारों के विरोध के चलते वे इंग्लिश स्कूल नहीं गए. बाद में नवाब का दाखिला ऊर्दू स्कूल में कराया गया. यहां उन्होंने चौथी क्लास तक पढ़ाई की. फिर डोंगरी के जीआर नंबर दो स्कूल में सातवीं तक पढ़ें. और फिर सीएसटी क्षेत्र के अंजुमन इस्लाम स्कूल में 11वीं तक पढ़ाई की.

12वीं कक्षा की पढ़ाई के लिए मलिक ने बुरहानी कॉलेज में दाखिला लिया. फिर इसी कॉलेज से बीए की पढ़ाई की. लेकिन पारिवारिक कारणों से बीए फाइनल ईयर की परीक्षा नहीं दी. नवाब मलिक की छात्र राजनीति में दिलचस्पी कॉलेज की पढ़ाई के दौरान ही हुई. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान मुंबई यूनिवर्सिटी ने फीस बढ़ा दी. इसके विरोध में पूरे शहर में आंदोलन चल रहा था, नवाब मलिक ने इस आंदोलन में भी भाग लिया. नवाब मलिक ने एक इंटरव्यू में बताया 1977 में जनता पार्टी की सरकार सत्ता में आई. बाद में इस सरकार के खिलाफ युवाओं में आक्रोश का माहौल था. लिहाजा वे समय-समय पर कांग्रेस की सभाओं में हिस्सा लेने लगे थे.

राजनीति की शुरुआत संजय विचार मंच से
1984 में संजय गांधी की मृत्यु के बाद मेनका गांधी ने संजय विचार मंच का ऐलान किया. नवाब मलिक मंच से जुड़ गए. नवाब मलिक ने 1984 का लोकसभा चुनाव संजय विचार मंच से लड़ा. लेकिन मंच को राजनीतिक दल की मान्यता नहीं थी, तो उन्हें निर्दलीय करार दिया गया. मलिक की उम्र उस समय 25 साल की थी और उस चुनाव में उन्हें 2620 वोट मिले थे.

नवाब मलिक को समझ आ गया था कि राजनीति करनी है तो कांग्रेस के अलावा कोई विकल्प नहीं है. वे फिर कांग्रेस के लिए काम करने लगे. उन्होंने कांग्रेस से 1991 में नगर निगम का टिकट मांगा, लेकिन नहीं मिला. फिर दिसंबर 1992 में बाबरी की घटना के बाद मुंबई में दंगे भड़क उठे. माहौल खराब था. उस समय नवाब मलिक ने अखबार निकालने की सोची और सांझ नाम से एक अखबार शुरू किया. लेकिन, बाद में आर्थिक तंगी के चलते ये अखबार बंद हो गया.

समाजवादी पार्टी से जुड़े और विधायक बने
बाबरी मस्जिद की घटना के बाद समाजवादी पार्टी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ी. इसी दौरान नवाब मलिक समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए. 1995 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने उन्हें मुस्लिम बहुल इलाके नेहरू नगर निर्वाचन क्षेत्र से टिकट दिया. चुनाव में शिवसेना के सूर्यकांत महादिक 51 हजार 569 वोट पाकर जीते, मलिक को 37,511 वोट मिले और वे दूसरे नंबर पर रहे. मलिक को हार का सामना करना पड़ा, लेकिन विधानसभा पहुंचने के लिए उन्हें ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा. धर्म के आधार पर वोट मांगने को लेकर विधायक महादिक के खिलाफ दायर याचिका पर उन्हें दोषी पाया गया और चुनाव आयोग ने चुनाव रद्द कर दिया. 1996 में नेहरू नगर में फिर चुनाव हुआ और इस बार नवाब मलिक साढ़े 6 हजार वोटों से जीतने में कामयाब रहे.

राजनीतिक मतभेद और सपा से किनारा
1999 के विधानसभा चुनाव में नवाब मलिक एक बार फिर सपा से जीते और कांग्रेस और राकांपा की सरकार सत्ता में आई. समाजवादी पार्टी से विधायक चुने गए थे. उन्हें भी मोर्च का समर्थन करने के लिए सरकार में जगह मिली. नवाब मलिक को आवास राज्य मंत्री बनाया गया. राजनीतिक तौर पर नवाब मलिक बहुत अच्छा काम कर रहे थे, लेकिन समय के साथ सपा के नेताओं संग उनके मतभेद उभर आए. बाद में मलिक ने एनसीपी में शामिल होने का फैसला किया. सपा छोड़ने के बारे में नवाब मलिक ने कहा कि ‘उस समय समाजवादी पार्टी के मुंबई के नेता धार्मिक आधार पर राजनीति करने की कोशिश कर रहे थे. समाजवादी पार्टी ऐसे काम कर रही थी, मानो वह कोई मुस्लिम लीग हो.’ बाद में एनसीपी के सदस्य के तौर पर नवाब मलिक को उच्च और तकनीकी शिक्षा और श्रम मंत्री का प्रभार मिला.

अनियमितता के आरोपों पर दिया इस्तीफा
2005-06 के दौरान मुख्यमंत्री विलासराव देशमुख की सरकार में मंत्री नवाब मलिक को इस्तीफा देना पड़ा था. मलिक पर माहिम की जरीवाला चाल पुर्नविकास योजना में अनियमितता के आरोप लगे थे. अन्ना हजारे ने भी इस मामले को उठाया था. 12 साल बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले पर फैसला सुनाते हुए कहा कि तत्कालीन राज्य मंत्री द्वारा लिया फैसला उचित था. हालांकि मामला शांत होने के बाद नवाब मलिक को दोबारा मंत्री बनाया गया.

समीर वानखेड़े के खिलाफ खोला मोर्चा
आर्यन खान ड्रग्स का मामला सामने आने के बाद नवाब मलिक ने एनसीबी और समीर वानखेड़े के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. लेकिन, बीजेपी ने नवाब मलिक पर पलटवार किया. दरअसल एनसीबी ने 9 जनवरी 2021 को खुफिया जानकारी के आधार पर मुंबई के बांद्रा इलाके से भांग जब्त करने का दावा किया था. बताया गया कि आरोपी करण सजलानी के घर से बाहर से मंगाई गई भांग जब्त की गई है. मामले में 4 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इसी मामले में पहली बार नवाब मलिक के दामाद समीर खान का नाम सामने आया.

नवाब मलिक के दामाद को जानिए
समीर खान नवाब मलिक की सबसे बड़ी बेटी नीलोफर के पति हैं. एनसीपी ने समीर खान को जनवरी में एनडीपीएस एक्ट की धारा 27ए के तहत मादक पदार्थों की तस्करी और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप में गिरफ्तार किया था. बाद में 14 अक्टूबर को सत्र अदालत ने समीर खान को जमानत दे दी. समीर को ये जमानत मादक पदार्थों की तस्करी और ड्रग्स के लिए पैसे मुहैया कराने के आरोप में दी. अदालत के फैसले के बाद नवाब मलिक ने आरोप लगाया कि ‘एनसीबी लोगों को झूठे आरोपों में बदनाम कर रही है. एनसीबी ने कहा कि 200 किलो गांजा मिला है, लेकिन रिपोर्ट से पता चला कि यह हर्बल तंबाकू था.’ मलिक के आरोपों पर एनसीबी की कोई प्रतिक्रिया नहीं आई.

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राजनीतिक विश्लेषक हेमंत देसाई के हवाले से बीबीसी ने लिखा है कि पिछले कुछ दिनों में नवाब मलिक के सक्रिय होने का एक और कारण है. वो ये कि एनसीपी की नजर फिलहाल मुंबई नगर निगम चुनाव पर है. नवाब मलिक मुंबई के नगर अध्यक्ष का पद संभालते हैं. इसलिए पार्टी को लगता है कि उन्हें आगे लाने से मुंबई नगर निगम में फायदा होगा.

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देसाई कहते हैं, ‘नवाब मलिक अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस से मुद्दों पर बहस कर रहे हैं. अब तक उन्होंने शरद पवार के विश्वास को सही साबित किया है. पहले उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस की चर्चा नहीं होती थी. लेकिन एक महीने के भीतर उन्होंने सही मुद्दों को उठाकर खूब मीडिया की सुर्खियां बटोरीं हैं.’

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