उत्तराखंड

भारतीय राजनयिकों की काबुल में मौजूदगी चाहता था तालिबान, सुरक्षा का दिया था भरोसा: रिपोर्ट

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नई दिल्ली. अफगानिस्तान (Afghanistan) पर कब्जा करने के बाद तालिबान (Taliban) चाहता था कि काबुल में भारत की राजनयिक उपस्थिति (Diplomatic Presence) बनी रहे. यानी तालिबान का मन था कि काबुल में भारतीय दूतावास (Indian Embassy) काम करता रहे. बीते दिनों जब भारत काबुल से अपने दूतावासकर्मियों को बाहर निकालने की कोशिश में लगा था तब तालिबान नेता शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई (Sher Mohammed Abbas Stanekzai) ने संपर्क साधा था.

हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि इस सप्ताह की शुरुआत में तालिबान के राजनीतिक दफ्तर के सदस्य शेर मोहम्मद ने भारत से अनौपचारिक अपील की थी. इसके ठीक बाद भारत ने काबुल से वायुसेना के दो विमानों के जरिए 200 लोगों को बाहर निकाला था. इन लोगों में भारत के राजदूत, राजनयिक, सुरक्षाकर्मी और नागरिक शामिल हैं.

भारत को दिया था अनौपचारिक संदेश
मोहम्मद अब्बास ने अपने अनौपचारिक संदेश में भारत से कहा था कि वो अफगानिस्तान में भारतीयों को लेकर चिंता को समझते हैं. अब्बास ने राजधानी काबुल में मौजूद राजनयिकों और भारतीय नागरिकों की सुरक्षा के प्रति आश्वस्त किया था.

तालिबान में ताकतवर नेता हैं मोहम्मद अब्बास
मोहम्मद अब्बास तालिबान की लोगार प्रोविंशियल काउंसिल का हेड है. फर्राटेदार अंग्रेजी बोलता है और दुनिया घूम रखी है. अफगान शांति वार्ता में वो अब्दुल हकीम हक्कानी का डिप्टी था. 1996 में उसने अमेरिका की यात्रा की थी. तब उसने बिल क्लिंटन प्रशासन से गुहार लगाई थी कि तालिबान को सरकार के तौर पर मान्यता दी जाए. तब वो कामयाब नहीं हो पाया था.

शेर मोहम्मद अब्बास स्टानेकजई, उन सात प्रमुख नेताओं में से एक है जो तालिबान को चला रहा है. अब्बास, 1982 में भारतीय मिलेट्री अकादमी का हिस्सा रहा और उन्हें शेरू नाम से पुकारा जाता था. टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित खबर के मुताबिक अब्बास अच्छी कद काठी वाला था और धर्म की तरफ उनका ज्यादा झुकाव नहीं था. 20 साल की उम्र में वह भगत बटालियन केरेन कंपनी के 45 विदेशी पुरुष कैडेट में से एक का हिस्सा बना.

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