उत्तराखंड

39 साल पुराने मामले में हत्यारोपी का दावा, उस वक्त नाबालिग था, SC ने दिए जांच के आदेश

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नई दिल्ली. हत्या के केस के एक आरोपी के खिलाफ पिछले चार दशक पहले मुकदमा चला और उसे दोषी करार दिया गया. आरोपी का दावा है कि वह 1965 में पैदा हुआ था और घटना के वक्त वह नाबालिग था. उसे जुवेनाइल जस्टिस एक्ट का फायदा दिया जाए. सुप्रीम कोर्ट ने यूपी के सीतापुर के संबंधित अडिशनल सेशन जज से कहा है कि आरोपी की उम्र के संबंध में जांच करें और दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के सामने रिपोर्ट पेश करें.

बता दें कि यह मामला यूपी के सीतापुर जिले का है. याचिकाकर्ता आरोपी के खिलाफ दंगा, फसाद, हत्या और सबूत नष्ट करने का 1982 में सेशन कोर्ट में मुकदमा चला था. 1982 में केस रजिस्टर हुआ. 1990 में ट्रायल कोर्ट का ऑर्डर आया. बाद में आरोपी ने 5 अप्रैल 1991 को हाईकोर्ट का रुख किया. 2008 में हाईकोर्ट का ऑर्डर आया जिसके बाद 2012 में आरोपी सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. अब  सात सितंबर को सुप्रीम कोर्ट ने ताजा ऑर्डर किया है.

निचली अदालत ने मामले में आरोपी को दोषी करार दिया था. इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने भी निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा.

सुप्रीम कोर्ट ने आरोपी का दावा
सुप्रीम कोर्ट में याचिकार्ता ने दावा किया कि घटना के वक्त वह नाबालिग था और उसे जेजे एक्ट का फायदा मिलना चाहिए. गौरतलब है कि जुवेनाइल जस्टिस एक्ट के तहत जुवेनाइल को जेल में नहीं रखा जाता बल्कि अधिकतम उसे सुधार गृह में तीन साल तक रखे जाने का प्रावधान है.

क्या कहती है यूपी सरकार की रिपोर्ट
सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यूपी सरकर की ओर से भी रिपोर्ट पेश की गई. याचिकाकर्ता ने दावा किया कि स्कूल सर्टिफिकेट के आधार पर उसका जन्मदिन 12 फरवरी 1965 है और वह घटना के वक्त नाबालिग था. वहीं सुप्रीम कोर्ट में यूपी सरकार की ओर से पेश रिपोर्ट में कहा गया कि आधार कार्ड में याचिकाकर्ता की उम्र एक जनवरी 1965 है. सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी तथ्य सामने आया है कि स्कूल रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता ने जो जन्म की तारीख बताई है वह मौजूद नहीं है.

दो महीने के भीतर रिपोर्ट सौंपने का आदेश
साथ ही 1976 के खतौनी में याचिकाकर्ता की उम्र 14 साल दर्ज है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आर. सुभाष रेड्डी और जस्टिस संजीव खन्ना की बेंच ने कहा कि इस मामले में उचित होगा कि संबंधित सेशन जज से रिपोर्ट मांगी जाए. सुप्रीम कोर्ट ने संबंधित सेशन जज से कहा है कि वह याचिकाकर्ता की उम्र और घटना के वक्त उसकी उम्र के बारे में जांच कर दो महीने के भीतर सुप्रीम कोर्ट के सामने पेश करें.

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