उत्तराखंड

आसमान से बरस रही आग भारत के लिए खतरा, जानें बीमार लोगों के संकट कैसे बढ़ा रही गर्मी

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नई दिल्ली. जलवायु परिवर्तन (CLimate Change) के चलते लोगों को स्वास्थ्य पर भी इसका असर देखने को मिल रहा है. इसके संकेत इन आंकड़ों से ही मिल सकते हैं कि साल 2019 में 65 वर्ष से अधिक आयु के लगभग 3.45 लाख लोगों की मृत्यु गर्मी से संबंधित कारणों से हुई, जो 2000-05 के औसत के 80·6 प्रतिशत से अधिक है. ब्राजील और भारत में साल 2018 और साल 2019 के बीच गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में सबसे ज्यादा वद्धि दर्ज की गई. यह दावा लैंसेट की स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन रिपोर्ट, 2021 में किया गया है. अंग्रेजी अखबार द इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार लैंसेट रिपोर्ट में एक सूचकांक (0-100) के जरिए गर्मी के असर को मापा गया है. साथ ही इसमें शहरी क्षेत्रों में रहने वाले कुल लोगों के अनुपात और पुरानी सांस की बीमारी, हृदय रोग और मधुमेह के प्रसार के साथ 65 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों के अनुपात पर डेटा को जोड़ा गया है.

रिपोर्ट के मुताबिक भारत में साल 2019 में अत्यधिक गर्मी की चपेट में आने की संभावना लगभग 31 थी जो 1990 के दशक की तुलना में 15 प्रतिशत अधिक है. हालांकि डब्ल्यूएचओ यूरोपीय क्षेत्र में साल 2018 और साल 2019 के बीच गर्मी से संबंधित मृत्यु दर में कमी ( (जर्मनी, रूस और यूके जैसे देशों में कम मौतों के कारण) आई है. यह क्षेत्र अभी भी सबसे अधिक प्रभावित है. साल 2019 में गर्मी के कारण लगभग 1.08 लाख मौतें हुई हैं.

भारत में खत्म हुए काम के घंटे
भारत में बढ़ते तापमान ने काम और उत्पादकता को भी प्रभावित किया है. कम से कम साल 1990 के बाद से गर्मी के संपर्क में आने के कारण साल 2020 में दुनिया भर में 295 अरब घंटों के संभावित काम खत्म हो गए. इस समूह में पाकिस्तान, बांग्लादेश और भारत को सबसे ज्यादा नुकसान हुआ. रिपोर्ट के अनुसार भारत उन पांच देशों में से एक है जहां पिछले पांच वर्षों में बीमार या कमजोर आबादी पर इस गर्मी का बड़ा खतरा है.

साल 1986-2005 बेसलाइन की तुलना करें तो साल 2016-2020 के दौरान 65 वर्ष से अधिक लोगों के हीटवेव एक्सपोजर के औसतन सालाना  444 मिलियन दिन अधिक थे. भारत में साल 2020 में 113 अरब घंटे से अधिक का संभावित श्रम खत्म हुआ. साल 1990-1994 के औसत की तुलना में यह 82% की वृद्धि है. इस साल के आंकड़ों से पता चलता है कि हीटवेव और जंगल की आग के जोखिम में तेजी से वृद्धि, सूखा, संक्रामक रोगों के लिए अनुकूल स्थिति और समुद्र के बढ़ते स्तर के चलते सभी देशों में लोगों के स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा रहे हैं.

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