शरीर में एंटीबॉडी बनने का ये मतलब नहीं कि अब आप कोरोना से सुरक्षित है: विशेषज्ञ
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केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने सीरो सर्वेक्षण के बारे में जानकारी देते हुए मंगलवार को बताया था कि इस बार देश में कुल सीरोप्रवलेंस 67.7 प्रतिशत रही है. मुंबई के नानावटी मैक्स सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल में सीनिनयर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन एंड इंफेक्शियस डीजीज के डॉक्टर राहुल तांबे ने कहा कि इस बार सीरो सर्वेक्षण में 28,975 से ज्यादा आम नागरिक और 7,352 स्वास्थ्यकर्मी सीरो सर्वेक्षण का हिस्सा थे. उन्होंने कहा कि कोविड 19 को और इससे निपटने के लिए शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी को समझने के लिए काफी बड़ी जनसंख्या में सीरो सर्वेक्षण की जरूरत है.
डॉ. तांबे ने इसके साथ ही जनता को आगाह भी किया कि अभी भी हमें कोरोना से बचने के लिए बहुत ज्यादा सतर्कता बरतने की जरूरत है, क्योंकि अभी भी हम कोविड के बदलते रूपों से पूरी तरह से अनजान हैं और हमें नहीं मालूम कि शरीर में बनने वाली एंटीबॉडी किस तरह से कोरोना के नए स्वरूप से साथ रिएक्ट करेगी. उन्होंने कहा कि शरीर में एंटीबॉडी की मौजदगी कोरोना संक्रमण के खिलाफ 100 प्रतिशत तक की सुरक्षा की गारंटी नहीं देती.
गौरतलब है कि राष्ट्रीय स्तर पर सीरो सर्वेक्षण का चौथा दौर देश के कुल 70 जिलों में जून और जुलाई माह में आयोजित किया गया था. इस सर्वे में इस बार से मुख्य रूप से बच्चो को शामिल किया गया था. केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार सीरो सर्वेक्षण में इस बार 6-17 वर्ष के बच्चों ने भाग लिया था. सीरो सर्वेक्षण में सबसे आश्चर्य वाले परिणाम यह रहे कि जिन्होंने टीके की एक भी खुराक नहीं ली उनमें सेरोप्रवलेंस 62 प्रतिशत से अधिक थी और टीके की एक खुराक लेने वालो में सीरोप्रवलेंस 81 प्रतिशत था जबकि कोविड 19 वैक्सीन की दोनों खुराक लेने वालों में 89.8 प्रतिशत सीरो प्रवलेंस पाई गई.
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