उत्तराखंड

Ukraine crisis: युद्ध की आहट के बीच क्या है दुनिया का रुख, जानें कौन देश रूस का साथ देगा और किसे होगा यूक्रेन पर भरोसा

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नई दिल्ली. रूस और यूक्रेन संकट (Ukraine-Russia Crisis) पर पिछले कई महीनों से दुनिया टकटकी लगाए देख रही थी और आज वही हुआ जिस बात का अंदेशा था. रूसी राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन (Vladimir Putin) ने यूक्रेन के अलगवावादी बहुल वाले दो क्षेत्रों लुंहास्क और दोनेत्स्क (Luhansk and Donetsk) को अलग तौर पर मान्यता दे दी है. एक तरह से रूस इन दोनों अलगवावादी क्षेत्रों को दो देश के रूप में मान्यता दे दी है. साथ ही इन क्षेत्रों में अलगाववादियों की मदद के लिए रूसी सेना भेजने का ऐलान भी किया. रूस के इस कदम के बाद निश्चित तौर पर अमेरिका चुप नहीं बैठेगा. नाटो की सेना पहले से ही तैयार है. पर यूक्रेन संकट को लेकर रूस को मदद पहुंचाने वाले बड़े देशों की भी कमी नहीं है. चीन खुलमखुला रूस का साथ दे रहा है. ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कौन देश किस तरफ है.

दरअसल, 2004 में ही अमेरिका ने सोवियत संघ के पूर्व देश बुल्गारिया, एस्टोनिया, लाटाविया, लिथुनिया, रोमानिया, स्लोवाकिया और स्लोवानिया को नाटो का सदस्य देश बना लिया है. ऐसे में रूस के सबसे निकट इन्हीं देशों से चुनौती मिलेगी. नाटो में फिलहाल 30 देश शामिल है. इनमें से 10 के करीब रूस के एकदम आस-पास है.

नाटो से रूस को मिलेगी चुनौती

अमेरिका ने अपने नौ हजार सैनिकों को यूक्रेन संकट से निपटने के मद्देनजर स्टैंड बाय पर रखा हैं. इनमें 5000 हजार सैनिक जो नाटो का हिस्सा है, इस समय रूस के पड़ौसी पोलैंड में है जबकि 4000 सैनिक रोमानिया और बुल्गारिया में है. यूक्रेन संकट पर सबसे ज्यादा प्रतिरोध अमेरिका की तरफ से ही है. युद्ध की स्थिति में अमेरिका ने यूक्रेन को साथ देने की घोषणा कर चुकी है. हालांकि अमेरिका और नाटो देशों ने कहा है कि वह युद्ध के मकसद से अपनी सैनिकों को सीधे यूक्रेन नहीं भेजेगा लेकिन अन्य सहयोग जैसे हथियार, मेडिकल सुविधा आदि देता रहेगा. इस कड़ी में नाटो देशों के कई अत्याधुनिक लड़ाकू विमान और हथियार यूक्रेन पहुंच भी रहे हैं.

यूरोपीय देशों की मजबूरी

दिलचस्प बात यह है कि व्यापारिक हित को देखते हुए नाटो के यूरोपीय सदस्य देश उतना आक्रामक नहीं है, जितना अमेरिका है. जर्मनी और फ्रांस के प्रमुख ने हाल ही में मास्को की ताबड़तोड़ यात्रा करके विवाद को कम करने की कोशिश की है. यूरोप के कई देशों की निर्भरता रूस पर बढ़ गई है. इसलिए ये देश हर हाल में शांतिपूर्ण समाधान चाहते हैं. यूरोपीय देशों के सामने सबसे बड़ी चुनौती नॉर्ड गैसपाइपलाइन को लेकर है जो रूस से जर्मनी के बीच लगभग तैयार है और इस पाइपलाइन से यूरोप गहराते ऊर्जा संकट के लिए जरूरी मानता है. अगर नाटो के यूरोपीय देश पूरी तरह से यूक्रेन का साथ देंगे तो रूस इस पाइपलाइन को रद्द कर सकता है. हालांकि रूस के खिलाफ आर्थिक नाकेबंदी में नाटो के यूरोपीय सदस्य देशों को साथ देना ही होगा. अमेरिका रूसी बैकिंग सिस्टम को चोट पहुंचाने की पूरी कवायद कर चुका है. नाटो के यूरोपीय देशों में ब्रिटेन का रुख ही थोड़ा-बहुत अमेरिका से मिलता है. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा है कि रूस का यह कदम यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन करेगा. यह कदम अंधकार की ओर ले जाएगा.

चीन का हाथ रूस के साथ

Tags: America, India, Russia, Ukraine

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