क्या होता है सबूतों से छेड़छाड़? कानून में कितने साल तक की हो सकती है सजा
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Uphaar case judgement/ What is evidence tampering: उपहार अग्निकांड मामले में दिल्ली की अदालत ने सिनेमा हॉल के मालिक और रियल एस्टेट कारोबारी सुशील और गोपाल अंसल को सबूतों से छेड़छाड़ के मामले में सात साल की सजा सुनाई है. ऐसे में सवाल उठने लगा है कि आखिर ये सबूतों से छेड़छाड़ का मामला क्या होता है. दरअसल, इंडियन पीनल कोड (आईपीसी) की धारा 204 के तहत सबूतों से छेड़छाड़ के मामले की सुनवाई की जाती है.
इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के सीनियर वकील विराग गुप्ता बताते हैं. उपहार सिनेमा अग्निकांड में अनेक परिवार तबाह हो गए थे, जिसके लिए सिनेमा मालिक अंसल बंधुओं को दो साल की सजा हुई थी. उन्होंने पांच महीने जेल में बिताए, जिसे देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2015 के फैसले से दोनों लोगों पर अलग अलग 30 करोड़ की पेनाल्टी लगाकर उनकी बकाया सजा माफ कर दी थी. उसके बाद अब चीफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ने मुख्य मामले में सबूतों को नष्ट और गायब करने के जुर्म में अंसल बंधुओं के साथ अन्य लोगों को सजा के साथ जुर्माना भरने का आदेश दिया है.
आईपीसी की धारा 201 के तहत सजा
चर्चित अनमास्किंग वीआईपी किताब के लेखक सीनियर वकील विराग गुप्ता के मुताबिक आईपीसी की धारा 201 के तहत सबूतों के साथ छेड़छाड़ के लिए 3 साल की सजा मिली है. जबकि धारा 120 बी के तहत आपराधिक षड्यंत्र और धारा 409 के तहत सरकारी अधिकारी की अपराधिकता के जुर्म में 7 साल की सजा मिली है.
इसके अलावा अंसल बंधुओं पर अलग अलग सवा दो करोड़ का जुर्माना भी लगाया गया है. सीएमएम कोर्ट ने अंसल बंधुओं का बेल बांड कैंसिल करके उन्हें तुरंत हिरासत में लेने का आदेश भी दिया है. सीएमएम कोर्ट ने कहा है कि सबूतों के साथ छेड़छाड़ करना पूरी न्यायिक व्यवस्था पर हमला है, जिसके लिए दोषियों को कठोर से कठोर दंड दिया जाना चाहिए. जबकि बचाव पक्ष का मानना है कि जब मुख्य मामले में सजा से राहत मिल गई है तो फिर सबूतों से छेड़छाड़ के आरोप में इतनी बड़ी सजा देना क़ानून सम्मत नहीं है.
क्या है पूरा मामला
दिल्ली की एक अदालत ने 1997 में उपहार सिनेमा हॉल में आग लगने के मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने को लेकर रियल एस्टेट व्यवसायी सुशील और गोपाल अंसल को सात साल जेल की सजा सुनाई है. इस अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई थी.
मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट पंकज शर्मा ने अंसल बंधुओं में से प्रत्येक पर 2.25 करोड़ रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत ने अदालत के पूर्व कर्मचारी दिनेश चंद शर्मा और दो अन्य लोगों पी पी बत्रा और अनूप सिंह को भी सात-सात साल की जेल की सजा सुनाई और प्रत्येक पर तीन-तीन लाख रुपये का जुर्माना लगाया.
कानून और न्यायिक प्रक्रिया का अनादर
न्यायाधीश ने कहा, ‘‘रात दर रात सोचने के बाद, मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि वे सजा के पात्र हैं.’’ उन्होंने कहा कि जिन परिस्थितियों के दौरान अपराध किया गया था, वे कानून और न्यायिक प्रक्रिया और पीड़ितों के प्रति दोषियों के गहरे अनादर को दर्शाते हैं.
अदालत ने कहा, ‘‘न्यायपालिका की नींव लोगों के विश्वास पर टिकी है और ऐसी किसी भी कार्रवाई की अनुमति नहीं दी जा सकती है, जिसका उद्देश्य इस नींव को ठेस पहुंचाना है और इससे अत्यधिक सख्ती से निपटने की आवश्यकता है.’’
दोषियों पर जुर्माना लगाते हुए, अदालत ने कहा कि डीएसएलएसए (दिल्ली राज्य कानूनी सेवा प्राधिकरण) ने पीड़ित प्रभाव रिपोर्ट (वीआईआर) में कहा था कि पीड़ितों को ‘‘काफी नुकसान’’ हुआ था. दोषियों द्वारा जमा किए गए आय प्रमाणों का विश्लेषण करने के बाद जुर्माना लगाया गया.
अदालत ने माना कि पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए अंसल बंधुओं को वित्तीय क्षमता के मामले में दूसरों की तुलना में बेहतर स्थिति में रखा गया.
अनुचित उदारता गलत संदेश देगी
दोषियों की दया याचिका को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि गलत सहानुभूति या अनुचित उदारता संस्थागत अखंडता पर संदेह करने के लिए एक गलत संकेत देगी और इसकी साख को प्रभावित करेगी.
अदालत ने कहा कि अपर्याप्त सजा न्याय प्रणाली को अधिक नुकसान पहुंचाएगी और कानून की प्रभावशीलता में जनता के विश्वास को कमजोर करेगी क्योंकि समाज न्याय प्रणाली पर इस तरह के हमलों को लंबे समय तक सहन नहीं कर सकता है. अदालत ने कहा कि बहुत कम सजा पीड़ितों और आम जनता की पीड़ा पर आंखें बंद करने के समान होगी.
हिरासत में लिए गए अंसल बंधु
मामला अग्निकांड के मुख्य मामले में सबूतों के साथ छेड़छाड़ से संबंधित है, जिसमें अंसल बंधुओं को दोषी ठहराया गया था और उच्चतम न्यायालय द्वारा दो साल की जेल की सजा सुनाई गई थी.
शीर्ष अदालत ने हालांकि उन्हें जेल में बिताये समय को ध्यान में रखते हुए इस शर्त पर रिहा कर दिया था कि वे राष्ट्रीय राजधानी में एक ट्रॉमा सेंटर के निर्माण के लिए 30-30 करोड़ रुपये देंगे.
कब घटी थी घटना
गौरतलब है कि 13 जून, 1997 को हिंदी फिल्म ‘बॉर्डर’ की स्क्रीनिंग के दौरान उपहार सिनेमा में आग लग गई थी, जिसमें 59 लोगों की जान चली गई थी. बीस जुलाई, 2002 को पहली बार छेड़छाड़ का पता चला और दिनेश चंद शर्मा के खिलाफ विभागीय जांच शुरू की गई. 25 जून 2004 को उन्हें निलंबित कर दिया गया और सेवा से बर्खास्त कर दिया गया.
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