उत्तराखंड

चीन ने क्यों कहा-भारत में ओलंपिक पदकों की भूख कम

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तोक्यो ओलंपिक खेलों में चीन सबसे ज्यादा (अब तक 29 गोल्ड) स्वर्ण पदक जीतकर टॉप पर है. वहीं भारत पदक तालिका में बहुत नीचे है. उसके खाते में एक रजत और एक कांस्य पदक ही आया है. लेकिन भारत की कुछ पदकों की उम्मीद अब भी बनी हुई है. तोक्यो ओलंपिक के बीच चीन के मीडिया ने भारत पर तीखी टिप्पणी करते हुए कहा है कि भारत में ओलंपिक खेलों में पदक की भूख कम है. उसने इस बात पर सवाल उठाया है तो ये भी जताने की कोशिश की है कि चीन आखिर में पदक जीतने की भूख क्यों जबरदस्त है.

चाइना रेडियो इंटरनेशनल में प्रकाशित एक लेख में कहा गया, ” तोक्यो में भी चीन का प्रदर्शन ओलंपिक सुपर पावर की तरह रहा है. चीन ने दिखा दिया कि उसे पदक हासिल करने की जबरदस्त भूख है, लेकिन सवाल ये है कि क्या भारत को पदक हासिल करने की भूख कम है?”

लेख में आगे लिखा है,” ये सच है कि खेल और पढ़ाई साथ चलाने के लिए कुछ ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. ठीक वैसे ही जैसे चीन में छोटे-छोटे बच्चे करते हैं. चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिम्नास्टिक, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं. अधिकांश चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं, जहां उन्हें सख्त ट्रेनिंग दी जाती है और अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए तैयार किया जाता है.”

“चीनी माता-पिता को अपने बच्चों के लिए खेल एक सुनहरा करियर ऑप्शन लगता है. वहीं, भारत में, खास तौर पर ग्रामीण क्षेत्रों में माता-पिता अपने बच्चों को पढ़ाने और बाद में नौकरी कराने पर खासा ध्यान देते हैं.”

चीन के स्कूलों में बच्चे 6 साल की उम्र से ही जिम्नास्टिक, खेलकूद आदि की ट्रेनिंग लेना शुरू कर देते हैं. अधिकांश चीनी माता-पिता अपने बच्चों को स्पोर्ट्स स्कूल में भेजते हैं,

चीन के लिए खेल युद्ध से कम नहीं
आगे लिखा है, “सब जानते हैं कि खेल की दुनिया में चीन ने ऐसा दबदबा कायम कर लिया कि वह ओलंपिक खेलों में ‘सुपरपावर’ बन गया. उसके लिए खेल का महत्व किसी युद्ध से कम नहीं. उसकी सफलता के पीछे एक खास मिशन है, जिसके तहत वह लगातार आगे बढ़ता गया. अपनी पदक तालिका को मजबूत बनाता गया.”

कैसे होती है चीन में ट्रेनिंग 
“दरअसल, 1980 के ओलंपिक खेलों के बाद से चीन की खेल प्रणाली काफी हद तक मजबूत हुई. ओलंपिक खेलों में बहुत अधिक स्वर्ण पदक हासिल करने के बारे में चीन सरकार ने सोचना शुरू किया. बहुत जल्दी सफलता हासिल करने के लिए युद्धस्तर पर तैयारी की. चीनी खिलाड़ियों की ट्रेनिंग वैज्ञानिक और मेडिकल विज्ञान के आधार पर ज्यादा जोर देकर करवाई जाती है, जिससे वो पदक प्राप्त करने में कामयाब होते हैं.”

चीन ने 1980 के बाद खेलों को लेकर गंभीरता से सोचना शुरू किया और खेलों को लेकर अपनी नीति में व्यापक बदलाव किए. अब चीन का एकमात्र इरादा किसी भी तरह ओलंपिक खेलों में ज्यादा से ज्यादा पदक जीतकर खुद को सुपर पॉवर के तौर पर दिखाने का है.

किन खेलों पर फोकस करता है चीन
लेख कहता है, “चीन खेल अकादमियों, टैलेंट स्काउट्स, मनोवैज्ञानिकों, विदेशी कोचों, और नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान पर लाखों डॉलर खर्च करता है. चीन उन खेलों में विकासशील कार्यक्रमों पर विशेष जोर देता है जिनमें बहुत अधिक इवेंट्स होते हैं. बहुत सारे पदक जीतने की संभावना होती हैं, जैसे शूटिंग, जिमनास्टिक, तैराकी, नौकायन, ट्रैक एंड फील्ड आदि.”

भारत में खेलों की गति को बहुत धीमी बताया
भारत की दिक्कत के बारे में इसमें लिखा है, “भारत में स्पोर्ट्स को हर सतह पर मुहिम की तरह आगे बढ़ने की जरूरत है. समाज के सभी वर्गों को इसे प्राथमिकता देनी होगी. भारत में खेल और खिलाड़ियों के स्तर को बेहतर करने के लिए उन्हें ऊंचे स्तर के परीक्षण और रोजगार दिलाना जरूरी है. हालांकि, भारत में धीरे-धीरे बेहतरी आ रही है, लेकिन वो गति बहुत धीमी है.”

कुछ सालों पहले ये तस्वीर इंटरनेशनल मीडिया में खूब चर्चित हुई थी. वैसे चीन ने खुद इस लेख में माना है कि वहां कम उम्र में बच्चों को कड़ी ट्रेनिंग दी जाती है, जो काफी सख्त होती है.

चीन में कैसे और कहां होती है ट्रेनिंग 
“चीन के 96 प्रतिशत राष्ट्रीय चैंपियनों सहित लगभग 3 लाख एथलीटों को चीन के 150 विशेष स्पोर्ट्स कैंप में ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे वुहान इंस्टीट्यूट ऑफ फिजिकल एजुकेशन, चच्यांग फिजिकल एजुकेशन एंड स्पोर्ट्स स्कूल और अन्य हज़ारों छोटे-बड़े ट्रेनिंग केंद्र. दक्षिण चीन के युन्नान प्रांत की राजधानी खुनमिंग में हैगन स्पोर्ट्स ट्रेनिंग बेस चीन का सबसे बड़ा खेल प्रशिक्षण कैंप है. अतिरिक्त 3,000 स्पोर्ट्स स्कूल टैलेंट की पहचान और उनका पोषण करने का जिम्मा संभालते हैं.”

कम उम्र के बच्चे कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं
लेख कहता है, “इन स्पोर्ट्स स्कूल में कम उम्र के बच्चे बेहद कड़ी ट्रेनिंग से गुजरते हैं. इस तकलीफ को सहकर ही वे चैंपियन बनने की कला सीखते हैं. तभी तो ओलिंपिक हो या एशियन गेम्स, हर इवेंट्स में ‘गोल्ड’ जीतने के लिए चीनी खिलाड़ी ऐड़ी-चोटी का जोर लगाते हैं. भले ही चीनी एथलेटिक्स अन्य देशों से आगे हों, लेकिन इस मुकाम को हासिल करने के लिए उन्हें कड़ी मेहनत और ट्रेनिंग से गुजरना पड़ता है. इसी कारण लगभग हर खेलों में चीनी खिलाड़ियों की धूम रहती है.”

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